दिल्ली की आबादी से लगभग एक चौथाई , नब्बे लाख की आबादी वाला यहूदियों की शरणास्थली , चारों और से मुस्लिम देशों से घिरा छोटा सा देश है इज़राइल । लेकिन आत्मबल हिमालय से ज़्यादा मज़बूत, भय का नामोनिशान नहीं, पूरा विश्व भी एक तरफ़ हो जाये फिर भी कोई उनका आत्मबल तोड़ नहीं पाता है , उनके आत्म रक्षा के संकल्प का बाल बाँका भी नहीं कर पाता है। उनके जैसी अपने देश और धर्म के प्रति प्रतिबद्धता पूरे विश्व में बहुत कम देखने को मिलती है। लगभग साढ़े तीन करोड़ की मुस्लिम आबादी से घिरे होने के बावजूद इज़राइली हर वक़्त अपने अस्तित्व की लड़ाई निरंतर लड़ रहे हैं।
सदियों से चल रहे बारंबार हमलों की श्रृंखला में इज़राइल पर सबसे ताज़ा हमला हमास ने 7 अक्तूबर, 2023 को किया जब एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद ले रहे मासूम लोगों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाकर 1240 लोगों की हत्या कर दी और 240 लोगों अपृहत कर लिया ।
इसका घटना के इज़रायली प्रतिशोध में गाजा पट्टी के आस पास अब तक लगभग 42,000 लोग अपने प्राण गँवा चुके है लेकिन हमास द्वारा प्रारंभ युद्ध समाप्त नहीं हो रहा। इस लड़ाई को हवा देने लेबनान स्थित हिज़्बुल्लाह संस्था के नसरुल्लाह के इशारे पर उनके लड़कों ने लगभग 8000 मिसाइल इज़रायल दागी, जिन्हें इज़राइल ने किसी नुक़सान से पहले ही निरस्त कर दिया और उधर मुस्लिम देशों की अगुआई करते हुए ईरान ने भी हमास और हिज़्बुल्लाह को खुला समर्थन देते हुए इज़राइल के ख़िलाफ़ वाक्युद्ध प्रारंभ कर रखा है।
लेकिन इस सबसे विचलित हुए बिना इज़राइल ने हमास और हजबुल्लाह के समूल नाश के अपने प्रण को मूर्तरूप देते हुए हज़बुल्ला और हमास की टॉप लीडरशिप को विभिन्न हमलों में नेस्तनाबूद कर अपने मज़बूत इरादों को ही दिखाया है। इसकी ताज़ी कड़ी में लेबनान में ज़मीन से दो सौ फुट नीचे आम आबादी के बीच बने तहखाने में छिपे बैठे हज़बुल्ला के सर्वोच्च कमांडर नस्रुल्लाह को मार गिराकर हजबुल्लाह की कमर तोड़ दी है। इसका असर यह हुआ कि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह खमनेई को कड़े सुरक्षा प्रबंधों के साथ ईरान के अंदर एक सुरक्षित स्थान पर भेज दिया गया है। यह इज़राइल की उस चेतावनी के बाद किया गया जिसमें कहा गया कि हमारे हथियार ईरान में कहीं भी हमला करने में सक्षम है।
नसरुल्लाह के ख़ात्मे से संबंधित घटनाओं को ध्यान से देखने की ज़रूरत है और भारत सहित पूरे विश्व को आतंकवाद से निपटने की नई नीति बनाने की आवश्यकता है। अब चिकनी चुपड़ी बातें करने का कोई ओचित्य नहीं है , इज़राइल की तरह एकनिष्ठ होकर आतंकवाद और उनके हिमायतियों पर निर्णायक हमले की तैयारी करनी ही होगी।
निष्प्रभावी होते राष्ट्रसंघ, आतंकवाद से जूझ रहे निर्णायक कार्यवाही ना कर कायरता में छुपे राष्ट्रों को इज़रायल से बहुत कुछ सीखना होगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ एक आध वक्तव्य देने के अलावा क्या करता है, अभी हाल ही में बांग्लादेश में हो रहे अल्पसंख्यकों ख़ासकर हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने क्या किया? इसके एक ठेकेदार अमेरिका तो आजकल बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार से गलबइयाँ कर रहे थे, पाकिस्तान के अल्पसंख्यक कहाँ लुप्त हो गए। इज़रायल की तरह अपना अपना गदा स्वयं उठाना होगा।
जब नैत्यानुह का संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण चल रहा था तो लगभग आधे देश दुमदबाकर उठकर बहिष्कार कर गये, वह आतंकवाद से पीड़ित इज़रायल का पक्ष सुनने को तैयार नहीं थे, लेकिन इज़राइल ने अपने प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान ही हज़बुल्ला के प्रमुख नसरुल्लाह का काम तमाम कर दिया और बाहर आकर प्रतीक्षा कर रहे पत्रकारों को इसकी सूचना दी। यह उन्होंने तब किया जब अमेरिका सहित विश्व के बहुत से ताकतवर देश इज़राइल पर इक्कीस दिन का युद्ध विराम करने का दबाव डाल रहे थे। शक्ति में इतनी ताक़त होती है की आज अमेरिका इज़राइल की तरफ़दारी करते हुए कह रहा है की इज़राइल को अपनी सुरक्षा का अधिकार है।
अब दूसरी तरफ़ भारत को देखो । इंडी गठबंधन की देश विरोधी विभाजित करने वाली नीतियों को सभी जानते हैं। राहुल का विदेशी धरती पर अनर्गल बयान सभी ने सुना है, ओवेसी का शपथ लेते जय फ़लिस्तीन ज़िंदाबाद कहना सबने सुना था, अब आतंकवादी नसरुल्लाह के ख़ात्मे पर कश्मीर घाटी , बंगाल में और अन्य मुस्लिम बहुल इलाक़ों में जलूस और इस घटना का विरोध करते हुए भारत की धरती पर क्यूँ होते हैं, बोलने को आज़ादी का मतलब ये नहीं होता को आप आतंकवादियों के समर्थन में सड़क पर उतर आयें।
हमारी सरकार भी मोदी जी के नेतृत्व में नेत्यांहूँ के जैसा कठोर कदम आतंकवादियों और उनके समर्थकों के ख़िलाफ़ क्यूँ नहीं उठा रही, किसका डर है, नो साल पहले किए सर्जिकल स्ट्राइक का ज़िक्र तो कल भी एक भाषण में किया था लेकिन उसके बाद इन आतंकियों ने कितने निर्दोष लोगों और सुरक्षा कर्मियों को निशाना बनाया है इससे ज़ाहिर है कि अतंकवादियों हौंसले पस्त नहीं हुए उन्हें और उनके हमदर्दों को ख़त्म करने के लिए आवश्यक हो तो बार बार जहां से भी आतंक आ रहा है उसे समाप्त किया जाए। अभी नहीं तो कभी नहीं वरना निर्दोषों पर, धार्मिक जलूसों पर, रानी लक्ष्मी बाई की मूर्ति लगाने पर हिंसा और आंदोलन होते रहेंगे।
इज़राइल की तरह आत्मबल दिखाने का यही समय है ; सही समय है, कोई भी कमजोर का साथ नहीं देता है।
राकेश शर्मा