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New Delhi : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जयपुर में स्नेह मिलन समारोह में जनसभा को किया संबोधित, बोले” आज राजनीति का जो वातावरण है और जो तापमान है वो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जयपुर में 'स्नेह मिलन समारोह' के कार्यक्रम को संबोधित...

New Delhi : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जयपुर में ‘स्नेह मिलन समारोह’ के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि वह न दबाव में रहते हैं और न दबाव देते हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति में आप अलग-अलग दलों में हो सकते हैं, पर इसका मतलब यह नहीं है कि दुश्मनी हो जाए।

राजनीति में दबाव और तनाव

उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज के दिन राजनीति का जो वातावरण है और जो तापमान है वो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। प्रजातन्त्र के स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है, चिंतन का विषय है। उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष प्रतिपक्ष में जाता रहता है, प्रतिपक्ष सत्ता पक्ष में आता रहता है पर इसका मतलब ये नहीं है कि दुश्मनी हो जाए।

राष्ट्रीय भावना

उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय भावना को दलगत राजनीति से ऊपर बताते हुए कहा कि जब हम देश के बाहर जाते हैं तो ना पक्ष होता है न प्रतिपक्ष होता है, हमारे सामने भारतवर्ष होता है और यह अब दिखा दिया गया। यह कदम है कि हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है, राष्ट्रहित हमारा धर्म है, भारतीयता हमारी पहचान है।

विधान मंडलों को सर्वोच्च आचरण करना होगा

उपराष्ट्रपति ने कहा कि विधान मंडलों को सर्वोच्च आचरण करना पड़ेगा; नहीं तो प्रजातंत्र के मंदिर के अंदर कोई पूजा करने नहीं आएगा — लोग दूसरी पूजा का स्थान देखेंगे। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति बहुत महत्वपूर्ण है, प्रजातन्त्र की जान है पर अभिव्यक्ति कुंठित होती है या उसपर कोई प्रभाव डाला जाता है या अभिव्यक्ति इस स्तर पर पहुँच जाती है कि दूसरे के मत का कोई मतलब नहीं है तो अभिव्यक्ति अपना अस्तित्व खो देती है।

अमेरिका में किसान परिवारों की आय

उपराष्ट्रपति ने बताया कि अमेरिका में जो आम घर है उसकी जो औसत सालाना आय है, वह किसान परिवार की औसत आय से कम है, किसान परिवार की ज्यादा है। उन्होंने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है जो हमें अपने किसानों के हित में नीति निर्धारण के लिए प्रेरित करना चाहिए।

संविधान सभा के कार्यों का उल्लेख

उपराष्ट्रपति ने कहा कि संविधान सभा ने करीब तीन साल तक बड़े परिश्रम के साथ हमें संविधान दिया। उन्होंने बताया कि उस समय गहरी समस्याएँ थीं, एकमत होना मुश्किल था, पर उन्होंने कभी टकराव नहीं किया वहाँ कभी अशांति और व्यवधान नहीं हुआ। वाद-विवाद से, मेल-मिलाप से – उन्होंने सहमति के माध्यम से बातचीत की, टकराव उनके दिमाग में कभी नहीं था।

लोकतंत्र में प्रतिपक्ष की भूमिका

उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्रतिपक्ष विरोधी पक्ष नहीं है। प्रजातन्त्र में आवश्यकता है अभिव्यक्ति हो, वाद-विवाद हो संवाद हो, वैदिक तरीके से जिसको अनंतवाद कहते हैं। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति को सार्थक करने के लिए वाद-विवाद जरूरी है और वाद-विवाद का मतलब है जो लोग आपके विचार से एकमत नहीं रखते, प्रबल संभान है कि उनका मत सही है इसीलिए दूसरे का मत सुनना आपकी अभिव्यक्ति को ताकत देता है।

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