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Bombay Shaving CEO Shantanu Deshpande का भारतीय कार्य संस्कृति पर सवाल: असंतोष और असमानता पर खुला विचार

Bombay Shaving CEO शांतनु देशपांडे ने भारतीय कार्य संस्कृति और असमानता पर सवाल उठाए। जानिए उन्होंने कैसे 'लटकने वाली गाजर' प्रणाली और आर्थिक असंतोष पर विचार साझा किए।

बॉम्बे शेविंग कंपनी के सीईओ Shantanu Deshpande  ने भारतीय कार्य संस्कृति और असमानता पर एक महत्वपूर्ण चर्चा छेड़ दी है। LinkedIn पर साझा की गई उनकी पोस्ट में उन्होंने भारतीय कर्मचारियों की कार्य संस्कृति, असंतोष, और आर्थिक असमानता पर अपने विचार प्रकट किए।

Shantanu Deshpande का अवलोकन

देशपांडे का मानना है कि भारतीय कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग अपनी नौकरी से असंतुष्ट है।

  • यदि उनकी आर्थिक ज़रूरतें पूरी हो जाएं, तो वे अपनी नौकरी छोड़ने में देर नहीं करेंगे।
  • असंतोष किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है; यह ब्लू-कॉलर वर्कर्स, सरकारी कर्मचारी, स्टार्टअप्स, और बीमा विक्रेताओं तक फैला हुआ है।

“लटकने वाली गाजर” वाली कार्य संस्कृति

  • Shantanu Deshpande ने भारतीय कार्य संस्कृति की तुलना “लटकने वाली गाजर” प्रणाली से की।
  • उनका कहना है कि अधिकांश लोग सुबह से रात तक केवल वेतन के लिए काम करते हैं।
  • यह व्यवस्था कर्मचारियों को थकावट और असंतोष की ओर धकेलती है।

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आर्थिक असमानता पर सवाल

Shantanu Deshpande ने भारत की धन असमानता पर भी टिप्पणी की।

  • भारत की संपत्ति का 18% हिस्सा मात्र 2,000 परिवारों के पास है।
  • इन परिवारों का करों में योगदान 1.8% से भी कम है।
  • उन्होंने इसे “पागलपन” बताते हुए इसे बदलने की अपील की।

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“इक्विटी बिल्डर” और समाधान की राह

Shantanu Deshpande ने खुद को “इक्विटी बिल्डर” बताते हुए कहा:

  • समाज में “कड़ी मेहनत करो और ऊपर चढ़ो” की धारणा को बढ़ावा दिया जाता है, क्योंकि और कोई विकल्प नहीं दिखता।
  • उन्होंने विशेषाधिकार प्राप्त लोगों से दयालु और उदार बनने की अपील की।
  • उनका सुझाव है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को आगे बढ़ने में मदद की जाए।

 

सीख और निष्कर्ष

Shantanu Deshpande  की पोस्ट भारतीय कार्य संस्कृति और आर्थिक असमानता की चुनौतियों को उजागर करती है।

  • यह संदेश देती है कि समानता और सहयोग से ही समाज को बेहतर बनाया जा सकता है।
  • विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग को दयालुता और उदारता का परिचय देना चाहिए।

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