Individualistic Family Trends: समाज की नई दिशा, संयुक्त और एकल परिवारों के बाद बढ़ रहे व्यक्तिवादी परिवार

Individualistic Family Trends: समाज की नई दिशा, संयुक्त और एकल परिवारों के बाद बढ़ रहे व्यक्तिवादी परिवार
नई दिल्ली, भारतीय समाज में परिवार की संरचना बदल रही है और इस बदलाव के साथ व्यक्तिवादी परिवारों का बढ़ना एक प्रमुख ट्रेंड बन गया है। एम्स दिल्ली के मनोचिकित्सक डॉ. नंद कुमार का कहना है कि आज के युवाओं में ‘आई, मी और मायसेल्फ’ एटीट्यूड तेजी से दिखाई दे रहा है और यह रवैया धीरे-धीरे इंडिविजुअल फैमिली यानी व्यक्तिवादी परिवार के रूप में समाज में जगह बना रहा है। यह बदलाव भारतीय सामाजिक परिप्रेक्ष्य में एक गंभीर चिंता का विषय माना जा रहा है।
डॉ. कुमार के अनुसार, आजकल युवा अकेले रहना अधिक पसंद कर रहे हैं। वे न केवल शादी-ब्याह के परंपरागत रास्ते को अपनाने से परहेज कर रहे हैं, बल्कि किसी संगी साथी के साथ प्रतिबद्ध या कमिटेड होने से भी दूरी बना रहे हैं। उनका व्यवहार अक्सर ‘मैं, मुझे, खुद’ जैसे दृष्टिकोण से जुड़ा होता है, जो कभी-कभी दूसरों के प्रति सम्मान की कमी या नकारात्मकता के रूप में दिखाई देता है। वहीं, यह रवैया कभी-कभी आत्म-सम्मान और व्यक्तिगत सीमाओं की सुरक्षा से भी जुड़ा होता है।
युवाओं के इस रवैये का कारण यह है कि वे अपने रिश्तों में स्पष्ट सीमाएं रखना चाहते हैं और अपनी भलाई का समझौता नहीं करना चाहते। वे ऐसे रिश्तों को प्राथमिकता देते हैं, जहां उनकी कद्र और सम्मान हो। यह बदलाव पारंपरिक संयुक्त परिवारों और बाद में एकल परिवारों की संरचना के बाद आया है और व्यक्तिवादी परिवारों की ओर समाज के झुकाव को दर्शाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि व्यक्तिवादी परिवारों की बढ़ती संख्या समाज में रिश्तों और सामाजिक सहनशीलता पर असर डाल सकती है। हालांकि, यह युवा पीढ़ी की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की भी पहचान है। इस बदलाव को समझना और सही दिशा में मार्गदर्शन करना आवश्यक है ताकि समाज में संतुलन बना रहे और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ-साथ पारिवारिक मूल्यों को भी सुरक्षित रखा जा सके।





