उत्तर प्रदेश, गाजियाबाद: गाजियाबाद में तेजी से गिर रहा है भूजल स्तर
उत्तर प्रदेश, गाजियाबाद: गाजियाबाद में तेजी से गिर रहा है भूजल स्तर
अमर सैनी
उत्तर प्रदेश, गाजियाबाद। जिले में भूजल के अत्यधिक दोहन से स्थिति भयावह होती जा रही है। स्थिति यह है कि जिले में पिछले छह वर्षों में भूजल का स्तर 8.2 मीटर नीचे चला गया है। अंदाजा लगाईए कि हर साल भूजल का स्तर करीब दो मीटर गिरता रहा तो आने वाली पीढ़ी को पानी कहां से मिलेगा। शहरी क्षेत्र में हालात ज्यादा खराब होते दिख रहे हैं। सबसे तेज गति से विजयनगर क्षेत्र भूजल स्तर गिर रहा है। विजय नगर में छह वर्षों के दौरान सबसे अधिक 11 मीटर की गिरावट दर्ज हुई है। जाहिर तौर पर विजयनगर वाले सबसे ज्यादा भूजल दोहन कर रहे हैं। कम गति से भूजल स्तर गिरने की बात करें तो यह भोजपुर ब्लॉक में है, लेकिन हालात भोजपुर के भी चिंताजनक हैं।
किसी क्षेत्र में लगातार तीन साल तक भूजल स्तर में 20 सेमी की गिरावट दर्ज होती है तो उस क्षेत्र को नोटिफाइड एरिया घोषित कर दिया जाता है। सिचाई विभाग के मुताबिक गाजियाबाद नगर निगम क्षेत्र को इस लिहाज से 1998 में नोटिफाइड एरिया घोषित किया गया था। यानी कमर्शियल उपयोग के लिए भूजल का उपयोग करने वालों को भूजल दोहन का 200 प्रतिशत वाटर रिचार्ज करना होगा, लेकिन ऐसा हुआ क्या? गाजियाबाद में तमाम इंडस्ट्रीज भूजल का दोहन तो कर रही है लेकिन वाटर रीचार्ज का काम केवल कागजों तक ही सीमित है। यही कारण है कि भूजल स्तर नीचे की ओर से खिसकता जा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि इंडस्ट्रियल एरिया के साथ ही घनी आबादी वाले हिस्सों में अत्यधिक भूजल दोहन होने के कारण तेजी से भूजल स्तर गिर रहा है। गाजियाबाद के भूजल विभाग के मुताबिक लोनी में 2018 और 2024 के बीच में भूजल स्तर करीब 15 मीटर गिरा है, लेकिन अच्छी बात यह है कि लोनी में वाटर रिचार्ज अपेक्षाकृत अच्छा दर्ज हुआ है, मानसून के बाद लिए गए डेटा ने इस बात की पुष्टि की है। पूरे जिले की बात करें तो 2018 में भूजल स्तर18.8 मीटर की गहराई पर मिला था, 2024 में यह 27 मीटर की गहराई पर मिला। यानि इन छह वर्षों में 8.2 मीटर की गिरावट दर्ज हुई।
विजयनगर और वैशाली में हालत ज्यादा खराब
गाजियाबाद नगर निगम के विजय नगर और वैशाली इलाके में गिरावट ज्यादा दर्ज हुई। विजय नगर में 2018 से 2024 के बीच प्री-मॉनसून में 8.6 मीटर और पोस्ट-मॉनसून आकलन में 6.7 मीटर की गिरावट दर्ज की गई। श्री गुरु नानक कन्या इंटर कॉलेज के एक अन्य स्टेशन में उसी समय सीमा में भूजल की उपलब्धता में 12 मीटर से अधिक की गिरावट देखी गई। वैशाली स्टेशन पर, 2024 में मानसून से पहले की गई गणना में गिरावट 6.2 मीटर थी। विभागीय डेटा के मुताबिक रजापुर ब्लॉक में अपेक्षाकृत कर गिरावट दर्ज की गई।
जलापूर्ति की डिमांड और सप्लाई में बड़ा अंतर
आबादी का बोझ कम होने के कारण भोजपुर और मुरादनगर ब्लॉक में भूजल स्तर में गिरावट कम दर्ज हुई। दूसरी ओर गाजियाबाद नगर निगम क्षेत्र में आबादी का बोझ बढ़ रहा है। गाजियाबाद महानगर में पानी की दैनिक जरूरत 345 मिलियन लीटर है जबकि नगर निगम की सप्लाई मात्र 320 मिलियन लीटर। यानि रोजाना 25 मिलियन लीटर की भरपाई भूजल से की जाती है। लगातार भूजल दोहन का नतीजा भूजल स्तर में गिरावट के रूप में सामने है।
जिले में वाटर रिचार्ज का 123 प्रतिशत दोहन
भूजल स्तर गिरने का बड़ा कारण यह है कि गाजियाबाद में जितना वाटर रिचार्ज होता है, उसका 123 प्रतिशत निकाल लिया जाता है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक यूपी के सभी 75 जिलों की बात करें तो औसतन जितना वाटर रिचार्ज होता है उसका 70 प्रतिशत भूजल दोहन होता है। गाजियाबाद भूजल दोहन के मामले में अन्य सभी जिलों से कोसों आगे है। केंद्र सरकार के जल शक्ति अभियान 2024 के अनुसार, गाजियाबाद भारत के 151 जल संकटग्रस्त जिलों में शुमार हो चुका है।
ड्रेनेज सिस्टम के नाम पर शहर में कुछ नहीं
वाटर रिचार्ज के मामले में जिले के पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण यह है कि यहां ड्रेनेज सिस्टम के नाम पर कुछ नहीं है। बरसास का अधिकतर पानी सीवर में चला जाता है, जबकि जरूरत इस बात की है कि छतों और सड़कों से बरसात का पानी ड्रेनेज के जरिए वाटर रिचार्ज के काम आए। सड़क के किनारे भी पक्के कर दिए गए हैं, कहीं नेचुरल वाटर रिचार्ज सिस्टम काम नहीं करता और कागज का पेट भरने के लिए जो रेन वाटर हार्वेंस्टिंग सिस्टम लगाए गए हैं कि उन्हें जमीन का पेट भरने की परवाह कहां है।
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