नई दिल्ली: दिल्ली वालों के फेफड़ों पर ही नहीं जोड़ों पर भी हमला कर रहा स्मॉग
नई दिल्ली: -दिल्ली के निवासी झेल रहे हैं, श्वसन संकट और ऑटोइम्यून रोगों की दोहरी मार

नई दिल्ली, 9 अक्तूबर : वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए धीमा जहर साबित हो रहा है जिसके चलते हमारे फेफड़ों पर ही नहीं शरीर के जोड़ों पर भी बुरा असर पड़ रहा है। इस वजह से दिल्ली -एनसीआर में रहने वाले लोग रूमेटाइड आर्थराइटिस (आरए) या गठिया रोग से पीड़ित हो रहे हैं। यह चौंकाने वाला खुलासा देश के प्रमुख रूमेटोलॉजिस्टों ने वीरवार को किया।
विशेषज्ञों ने कहा, दुनिया के शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से एक, दिल्ली चिंता का केंद्र बनकर उभरा है। यूरोप, चीन और अब भारत में हुए हालिया अध्ययनों से पता चलता है कि पीएम 2.5-खतरनाक सूक्ष्म कण जो फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश करते हैं -के संपर्क में आने से न केवल हृदय और फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं, बल्कि रुमेटॉइड आर्थराइटिस जैसी बीमारी भी हो सकती है। वह द्वारका स्थित यशोभूमि में आयोजित इंडियन रूमेटोलॉजी एसोसिएशन के 40वें वार्षिक सम्मेलन में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा, पारंपरिक रूप से जेनेटिक्स और इम्यून सिस्टम का सही काम न करने से जुड़ा रुमेटॉइड आर्थराइटिस अब वायु प्रदूषण जैसे कारकों से भी जुड़ता जा रहा है। शहर की जहरीली हवा में मौजूद पीएम 2.5 जैसे कण न सिर्फ वायु प्रदूषण में इजाफा कर रहे हैं। बल्कि आरए या गठिया के मामलों को चुपचाप बढ़ावा दे रहे हैं। आरए एक क्रोनिक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें इम्यून सिस्टम शरीर के अपने टिश्यू, विशेष रूप से जोड़ों पर हमला करता है, जिससे लगातार दर्द सूजन, अकड़न और विकलांगता होती है।
एम्स दिल्ली के रुमेटोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. उमा कुमार ने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा,हम प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले उन रोगियों में रूमेटॉइड आर्थराइटिस के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं जिनका ऑटोइम्यून रोग का कोई पारिवारिक इतिहास या आनुवंशिक प्रवृत्ति नहीं है। प्रदूषक सूजन पैदा करते हैं, जोड़ों की क्षति को बढ़ाते हैं और रोग को बढ़ने में मदद करते हैं। ये पोलूटेंट्स सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव को बढ़ावा देते हैं, जिससे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया अतिसक्रिय हो जाती है। यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल है जिसे हम अब और अनदेखा नहीं कर सकते।
फोर्टिस अस्पताल के रूमेटोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. बिमलेश धर पांडेय ने कहा, प्रदूषण गठिया, विशेष रूप से रूमेटाइड गठिया से जुड़ा हुआ है, क्योंकि वायु प्रदूषक सूजन, ऑक्सीडेटिव तनाव और ऑटो एंटीबॉडी उत्पादन का कारण बन सकते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि पीएम 2.5 का, नाइट्रोजन ऑक्साइड और ओजोन के संपर्क में आने से गठिया का खतरा बढ़ जाता है और लक्षण बिगड़ जाते हैं, खासकर अतिसंवेदनशील व्यक्तियों में। व्यस्त सड़कों के पास रहने ,लगातार यातायात से जुड़ा प्रदूषण गठिया के बढ़ते जोखिम से भी जुड़ा है।
आरएमएल अस्पताल के रूमेटोलॉजिस्ट डॉ. पुलिन गुप्ता ने एक और चिंताजनक पहलू पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, हम न केवल रूमेटॉइड आर्थराइटिस के बढ़ते मामले देख रहे हैं, बल्कि गंभीर मामले भी देख रहे हैं। पीएम 2.5 की संपर्क में आने वाले मरीजों में आक्रामक बीमारी तेजी से फैल रही है। शहरी क्षेत्रों में हरियाली कम होने से समस्या और बिगड़ रही है, जिससे निवासियों को सुरक्षात्मक पर्यावरणीय सुरक्षा कवच से वंचित होना पड़ रहा है।
चीन में किए गए शोध से पता चला है कि लंबे समय तक पीएम 2.5 के संपर्क में रहने से आरए विकसित होने का जोखिम 12-18% बढ़ जाता है। इसी तरह यूरोपीय समूहों ने बताया कि अत्यधिक प्रदूषित शहरों में रहने वाले लोगों में स्वप्रतिरक्षी विकारों से संबंधित बीमारियां काफी अधिक थी। ये निष्कर्ष वही दर्शाते हैं जो डॉक्टर अब भारत में देख रहे हैं जहां दिल्ली के निवासी श्वसन संकट और ऑटोइम्यून रोगों की दोहरी मार झेल रहे हैं।
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