दिल्ली

Prakash Mehra: प्रकाश मेहरा की पत्रकारिता यात्रा: ‘वे टू जर्नलिज़्म’ से ‘जर्नलिज़्म विदआउट बॉर्डर’ तक

Prakash Mehra: प्रकाश मेहरा की पत्रकारिता यात्रा: ‘वे टू जर्नलिज़्म’ से ‘जर्नलिज़्म विदआउट बॉर्डर’ तक

रिपोर्ट: अजीत कुमार

प्रकाश मेहरा की पहली पुस्तक “वे टू जर्नलिज़्म” ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत पहचान दिलाई। यह किताब न सिर्फ बेस्टसेलर बनी, बल्कि पत्रकारिता में कदम रखने वाले युवाओं के लिए मार्गदर्शक साबित हुई। उनकी लेखनी ने पत्रकारिता की मूलभूत जिम्मेदारियों और चुनौतीपूर्ण राहों को उजागर किया।

अब उनकी नई पुस्तक “जर्नलिज़्म विदआउट बॉर्डर” अगले महीने प्रकाशित होने जा रही है। यह किताब पत्रकारिता की सीमाओं, चुनौतियों और भविष्य की दिशा को पूरी तरह नए दृष्टिकोण से पेश करती है। पाठकों के बीच इसे पहले ही “आगामी दशक की सबसे अलग सोच वाली किताब” कहा जा रहा है।

बड़े मंचों और राष्ट्रीय पहचान के बावजूद प्रकाश मेहरा की जड़ें उनके गाँव सवाड़ से जुड़ी हैं। यह गाँव सैनिकों की वीरता के लिए जाना जाता है, लेकिन आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहा है। प्रकाश मेहरा ने लगातार गाँव के मुद्दों को उठाया—शिक्षा व्यवस्था की कमियाँ, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव और प्रशासनिक सुस्ती। उनका मानना है कि “पत्रकारिता सिर्फ लिखना नहीं, अपनी मिट्टी के प्रति ज़िम्मेदारी निभाना भी है।”

सवाड़ में केंद्रीय विद्यालय की माँग वर्षों तक फाइलों में अटकी रही। ग्रामीणों ने हार नहीं मानी—उन्होंने निजी ज़मीनें दान कीं, अस्थायी टिनशेड बनवाए और हर बैठक में सक्रिय भाग लिया। इस आंदोलन की खबरों को दूर तक पहुँचाने में प्रकाश मेहरा की भूमिका निर्णायक रही। उन्होंने लगातार रिपोर्टिंग की, सीएम हेल्पलाइन पर मुद्दे उठाए और आरटीआई के माध्यम से सभी तथ्य सामने रखे। उनके शब्दों में, “मेरे गाँव ने शिक्षा के लिए कभी लड़ना नहीं छोड़ा। मैं बस उनकी आवाज़ को दूर तक ले जाने की कोशिश करता रहा।”

स्वास्थ्य सेवाएँ आज भी गाँव की सबसे बड़ी चुनौती हैं। गंभीर मामलों में सबसे नज़दीकी अस्पताल 10 किमी दूर और थराली 13 किमी दूर है। प्रकाश मेहरा बताते हैं, “आपात स्थिति में लोग किस तरह भटकते हैं, यह सच किसी को भी झकझोर दे।”

विकास और प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने पर कई बार उन्हें चौंकाने वाले जवाब मिले। एक वरिष्ठ अधिकारी का रूखा जवाब—“आप कुछ मानवता भी दिखाइए।”—आज भी उन्हें याद है। वे कहते हैं, “अगर जनता की समस्याएँ उठाना अमानवीय है, तो फिर विकास की आवाज़ तक पहुँचेगा कौन?”

आज प्रकाश मेहरा सिर्फ पत्रकार या लेखक नहीं हैं, बल्कि युवा सोच का प्रतीक बन चुके हैं। उनका मानना है कि “जहाँ समस्या है, वहां समाधान की लड़ाई भी होगी।” इसी जज़्बे के साथ वे अपनी लेखनी और आवाज़ के माध्यम से बदलाव की राह लिख रहे हैं। उनकी आने वाली पुस्तक “जर्नलिज़्म विदआउट बॉर्डर” पत्रकारिता के स्वरूप और सोच को नई दिशा देने की क्षमता रखती है।

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