नई दिल्ली, 21 अगस्त : तमिलनाडु, असम, केरल और कोलकाता में चार अलग -अलग घटनाओं में डॉक्टरों संग हत्या जैसी वारदात होने के चलते देशभर के डॉक्टर ना सिर्फ चिंतित हैं। बल्कि कार्यस्थल पर स्वयं को असुरक्षित भी महसूस कर रहे हैं। जिसे स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए केंद्रीय सुरक्षा अधिनियम के जरिये दूर किया जा सकता है।
यह बातें इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को लिखे पत्र में कहीं। इस पत्र में आईएमए अध्यक्ष डॉ आरवी अशोकन और महासचिव डॉ अनिल जयनायक ने संयुक्त रूप से कहा, “जीवन का अधिकार” एक मौलिक अधिकार है। इसलिए डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को सुरक्षा प्रदान करना राज्य का परम कर्तव्य है। इस संबंध में केंद्र सरकार को अध्यादेश लाने की जरूरत है ताकि पॉक्सो जैसे विशेष कानून की तर्ज पर डॉक्टर सुरक्षा कानून बनाया जा सके।
उन्होंने कहा, हालांकि 25 राज्य सरकारों ने डॉक्टर सुरक्षा को लेकर कानून बनाए हैं लेकिन देश भर में डॉक्टरों के खिलाफ होने वाली हिंसा को रोकने में नाकाम रहे हैं। इनके तहत बहुत कम एफआईआर दर्ज की गई हैं और बहुत कम सजाएं हुई हैं। डॉक्टरों और अस्पतालों पर हिंसा पर एक केंद्रीय अधिनियम लाने की तत्काल आवश्यकता है। आईएमए के मुताबिक, महामारी रोग संशोधन अधिनियम, 2020 के संशोधन खंड और केरल सरकार के कोड ग्रे प्रोटोकॉल “स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा की रोकथाम प्रबंधन” को शामिल करने वाले मसौदा विधेयक 2019 को एक अध्यादेश घोषित किया जाए ताकि डॉक्टरों के मन में विश्वास पैदा हो सके।
उन्होंने तीन ऐसे उदाहरण भी पेश किए जो राज्यों से संबंधित थे। मगर केंद्र सरकार ने उनमें दखल दिया। पहला, क्लिनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम 2010 दूसरा, स्वास्थ्य देखभाल सेवा कार्मिक और नैदानिक प्रतिष्ठान (हिंसा और संपत्ति को नुकसान का निषेध) विधेयक 2019 (मसौदा कानून) और तीसरा महामारी रोग संशोधन अध्यादेश 2020 है।