भारत

ऑटिज्म : अगर बच्चा इकट्ठे कर रहा चॉकलेट के रैपर तो हो जाएं सतर्क

-एक वर्ष की आयु में भी नाम से बुलाने पर रिस्पॉन्ड नहीं करना, आई कांटेक्ट नहीं करना ऑटिज्म के लक्षण

नई दिल्ली, 22 अप्रैल ( टॉप स्टोरी न्यूज़ नेटवर्क ): अगर आपका बच्चा एक साल की उम्र में भी एक शब्द नहीं बोल पाता, मुस्कुरा नहीं पाता और आई कांटेक्ट (सामने वाले की आंख में देखना) नहीं कर पाता। हैलो, टाटा, बाय -बाय जैसे साधारण शब्द भी नहीं बोल पाता। या 16 महीने की आयु में एक सार्थक शब्द और 24 महीने की उम्र में 2 सार्थक शब्द भी नहीं बोल पाता है तो आपको सतर्क होने की जरूरत है। यह असामान्य लक्षण हैं। इन्हें नजरअंदाज न करें। यह ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) भी हो सकता है।

एम्स के चाइल्ड न्यूरोलॉजी डिवीजन की प्रभारी डॉ शैफाली गुलाटी ने सोमवार को कहा कि देश और दुनिया में ऑटिज्म या एएसडी के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह विकार साल 2006 में 166 बच्चों में से एक बच्चे को होता था जो बाद में बढ़कर 136 पर एक और साल 2011 में 89 बच्चों में से एक बच्चे की दर से फैलता जा रहा है। इसमें अक्सर बच्चे चॉकलेट के रैपर इकट्ठे करने से लेकर खिलौनों को लाइन में लगाने की क्रिया बार -बार करते हैं। इसके अलावा उनमें पैर के पंजे के बल चलने, बेवजह हाथ या पैर हिलाने, बालों को हाथ लगाने, साबुन की गंध सूंघने और अचानक आक्रामक होने के साथ चिड़चिड़ा स्वभाव पाया जाता है।

डॉ गुलाटी ने कहा, अगर बच्चे में ये लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो उसे तुरंत बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाएं। वह मेडिकल ऐप और टूल के जरिये बच्चे की जांच करेंगे और उसके उचित उपचार के लिए चिकित्सकीय परामर्श प्रदान करेंगे। जिससे बच्चे के स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इस विकार के पीछे अनुवांशिक, पर्यावरणीय और एपिजेनेटिक कारण हो सकते हैं। इस संबंध में एएसडी से पीड़ित बच्चों के माता -पिता पर शोध करने के बाद सामने आया कि 77.9% मांएं अवसाद से ग्रस्त थी। वहीं, पिता भी दवाओं के सेवन व स्ट्रेस से पीड़ित पाए गए। इन सभी परिस्थितियों का दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ता है।

डॉ गुलाटी ने कहा एएसडी के प्रति समाज में जागरूकता लाने के लिए हर साल अप्रैल में ऑटिज्म जागरूकता एवं स्वीकृति माह मनाया जाता है। इसके माध्यम से लोगों को एएसडी पीड़ित बच्चों के संग सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया जाता है। उन्होंने कहा एएसडी पीड़ित बच्चो की मदद के लिए एम्स के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एंड एडवांस्ड रिसर्च ऑन चाइल्डहुड न्यूरोडेवेलपमेंटल और आईआईटी दिल्ली के सहयोग से एक ह्यूमनॉयड रोबोट बनाया जा रहा है जो बच्चे को एएसडी से उबरने में मदद करेगा। इसके अलावा एएसडी के उपचार में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का भी सहारा लिया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button