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Northern Railway: उत्तर रेलवे ने स्क्रैप बिक्री में रचा नया इतिहास, वित्त वर्ष 2024-25 में कमाए ₹781.07 करोड़

Northern Railway: उत्तर रेलवे ने स्क्रैप बिक्री में रचा नया इतिहास, वित्त वर्ष 2024-25 में कमाए ₹781.07 करोड़

रिपोर्ट: रवि डालमिया

उत्तर रेलवे ने वित्त वर्ष 2024-25 में स्क्रैप की बिक्री से अब तक का सर्वाधिक राजस्व अर्जित कर एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। यह उपलब्धि न केवल उत्तर रेलवे के लिए, बल्कि भारतीय रेलवे के समस्त ज़ोनल रेलवे और उत्पादन इकाइयों (PUs) के लिए भी एक मील का पत्थर है। उत्तर रेलवे ने इस अवधि में कुल ₹781.07 करोड़ की स्क्रैप बिक्री की, जो कि रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित ₹530 करोड़ के वार्षिक लक्ष्य का 147.36% है। यह आंकड़ा उत्तर रेलवे को पूरे भारतीय रेल नेटवर्क में पहले स्थान पर पहुंचाता है, और इसे स्क्रैप निपटान के क्षेत्र में सर्वोच्च प्रदर्शनकर्ता बनाता है।

उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक अशोक कुमार वर्मा ने इस ऐतिहासिक उपलब्धि की घोषणा करते हुए कहा कि यह न केवल राजस्व सृजन की दिशा में एक बड़ी छलांग है, बल्कि कार्यस्थल की स्वच्छता, व्यवस्था और सुरक्षा के लिहाज़ से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि स्क्रैप निपटान एक सतत प्रक्रिया है, जो एक ओर तो आय का स्रोत बनती है और दूसरी ओर कार्यक्षमता बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है।

इस वित्तीय वर्ष में उत्तर रेलवे अकेला ऐसा जोन रहा जिसने ₹700 करोड़ से अधिक की स्क्रैप बिक्री दर्ज की है। इससे पहले, यह लगातार चौथा वर्ष है जब उत्तर रेलवे ने ₹600 करोड़ से अधिक की कुल स्क्रैप बिक्री की है और लगातार चार वर्षों से प्रथम स्थान पर बना हुआ है। मार्च 2025 में समाप्त हुई ई-नीलामी प्रक्रिया के तहत कुल 592 नीलामियों के माध्यम से 8 विभिन्न स्थानों से 3244 लॉट बेचे गए। इस पूरी प्रक्रिया को मिशन मोड में अंजाम दिया गया, जिसमें विभिन्न विभागाध्यक्षों, मण्डल रेल प्रबंधकों (DRMs) और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की समर्पित भागीदारी रही।

स्क्रैप निपटान के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की सामग्री शामिल रही, जिनमें रेलवे ट्रैक के आस-पास जमा स्क्रैप जैसे रेल टुकड़े, स्लीपर, टाई बार, निष्क्रिय संरचनाएं जैसे स्टाफ क्वार्टर, केबिन, शेड, जल टंकी आदि का समुचित निपटान किया गया। ये संरचनाएं पहले न केवल अनुपयोगी स्थान घेरे हुए थीं, बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी खतरा उत्पन्न कर रही थीं। उत्तर रेलवे ने इस कार्य को प्राथमिकता देते हुए इन संरचनाओं के त्वरित निष्पादन को सुनिश्चित किया।

इसके अतिरिक्त, उत्तर रेलवे ने रेलवे लाइनों के पास लंबे समय से निष्क्रिय पड़े PRC/PSC कंक्रीट स्लीपर भी बड़ी संख्या में बेचे। इससे रेलवे संचालन के लिए आवश्यक क्षेत्र मुक्त हुआ और साथ ही राजस्व की प्राप्ति भी हुई। एक और अभिनव कदम के तहत, इस वर्ष उत्तर रेलवे ने विभिन्न सेक्शनों में निष्क्रिय पड़े ERC (Elastic Rail Clip) स्क्रैप को कच्चे माल के रूप में रेल व्हील फैक्ट्री (RWF) बेंगलुरु और रेल व्हील प्लांट (RWP) बेला, बिहार को भेजा, ताकि उनका उपयोग नए पहियों और एक्सल के निर्माण में किया जा सके।

इस ऐतिहासिक स्क्रैप बिक्री से प्राप्त राजस्व का वर्गीकरण इस प्रकार है: P-Way स्क्रैप के रूप में 81,570 मीट्रिक टन स्क्रैप ₹304.76 करोड़ में बेचा गया, जिसमें 37,049 मीट्रिक टन फेरस स्क्रैप (₹128.37 करोड़) और 2,016 मीट्रिक टन नॉन-फेरस स्क्रैप (₹53.13 करोड़) शामिल है। अस्वीकृत रोलिंग स्टॉक जैसे कि 600 वैगन, 114 कोच, और 6 अनुपयोगी लोकोमोटिव से ₹33.62 करोड़ की आमदनी हुई। इसके अतिरिक्त, दुर्घटनाग्रस्त 25 वैगन और 6 कोच का भी त्वरित निपटान किया गया।

पहिया एवं एक्सल स्क्रैप की बात करें तो 12,706 मीट्रिक टन स्क्रैप ₹30.63 करोड़ में बेचा गया, जबकि 1,259 मीट्रिक टन ERC स्क्रैप ₹4.18 करोड़ मूल्य में RWF और RWP को भेजा गया। PRC/PSC कंक्रीट स्लीपर की 77,453 इकाइयाँ ₹3.27 करोड़ में और परित्यक्त संरचनाओं की 2,127 इकाइयाँ ₹9.30 करोड़ में ई-नीलामी के माध्यम से बेची गईं।

उत्तर रेलवे की यह उपलब्धि ‘शून्य स्क्रैप’ की दिशा में एक निर्णायक कदम मानी जा रही है। इसने न केवल राजस्व वृद्धि में योगदान दिया है, बल्कि रेलवे परिसरों को स्वच्छ, व्यवस्थित और सुरक्षित बनाने में भी मदद की है। आने वाले वर्षों में इस प्रक्रिया को और अधिक सुव्यवस्थित एवं डिजिटल बनाने की योजना है, ताकि पारदर्शिता और दक्षता को नए आयाम मिल सकें।

यह उदाहरण दर्शाता है कि अगर नीतिगत निर्णयों को ठोस क्रियान्वयन के साथ लागू किया जाए, तो किसी भी संस्था की कार्यक्षमता और परिणामों में कितना बड़ा परिवर्तन संभव है। उत्तर रेलवे की यह उपलब्धि निश्चित रूप से अन्य ज़ोनल रेलवे और सार्वजनिक उपक्रमों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बनेगी।

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