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नई दिल्ली: स्वदेशी रोबोट से घुटने की सफल सर्जरी करने वाला पहला अस्पताल बना आरएमएल 

नई दिल्ली: -फिलहाल देश के बड़े अस्पतालों में विदेशी रोबोट की मदद से संपन्न की जा रही ऑर्थोपेडिक सर्जरी

नई दिल्ली, 30 अक्तूबर : डॉ. राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल ने देश के चिकित्सा इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। यहां पहली बार स्वदेशी तकनीक से बने मीसो नामक रोबोट की मदद से हड्डी की सर्जरी (ऑर्थोपेडिक सर्जरी) की गई है। यह उपलब्धि मेक इन इंडिया मिशन के तहत देश के चिकित्सा क्षेत्र के आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है।

आरएमएल अस्पताल के हड्डी रोग विभाग के सलाहकार प्रोफेसर डॉ. अजय शुक्ला ने बताया, इस स्वदेशी रोबोट की मदद से 50 से 65 साल उम्र के 5 मरीजों (4 महिला और 1 पुरुष) की नी रिप्लेसमेंट सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया है। अब तक विभिन्न आयु वर्ग के 50 से ज्यादा मरीजों को रोबोटिक सर्जरी के माध्यम से हड्डी रोगों से राहत प्रदान की जा चुकी है।डॉ. शुक्ला ने कहा, इस तकनीक से हड्डी रोग संबंधी सर्जरी ज्यादा सटीक, सुरक्षित और तेज हो गई है।

मीसो भारत में बना स्मार्ट सर्जिकल रोबोट
मीसो पूरी तरह से भारत में डिजाइन और निर्मित रोबोटिक सिस्टम है, जो विशेष रूप से हड्डी व जोड़ से जुड़ी सर्जरी के लिए तैयार किया गया है। अब तक भारत में ज्यादातर रोबोटिक सर्जरी विदेशी तकनीक पर निर्भर रही हैं, जिनकी लागत करोड़ों में होती थी। लेकिन मीसो के आने से अब मरीजों को सस्ता और अत्याधुनिक इलाज मिल सकेगा। डॉ शुक्ला ने बताया, मीसो को भारतीय डॉक्टरों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है। इसकी मदद से डॉक्टर जटिल सर्जरी को भी बेहद सटीक तरीके से कर सकते हैं। रोबोट हर मिलीमीटर तक की सटीकता सुनिश्चित करता है, जिससे मरीजों की रिकवरी भी तेज होती है।

पहले ही चरण में शानदार नतीजे
आरएमएल अस्पताल में मीसो रोबोट की मदद से की गई शुरुआती सर्जरी पूरी तरह सफल रही हैं। अब तक जिन मरीजों की सर्जरी की गई है, उनमें से अधिकतर को अगले ही दिन चलने में सक्षम पाया गया। पारंपरिक सर्जरी में मरीज को ठीक होने में जहां कई दिन लग जाते थे, वहीं रोबोटिक सर्जरी के बाद रिकवरी का समय लगभग आधा हो गया है। डॉ शुक्ला ने बताया, रोबोट के इस्तेमाल से इंसानी त्रुटि की संभावना बहुत कम हो जाती है। इससे हड्डी जोड़ने, घुटना बदलने और रीढ़ से जुड़ी सर्जरी करने में उत्कृष्ट परिणाम मिल रहे हैं।

विदेशी तकनीक पर निर्भरता होगी कम
आरएमएल में इस उपलब्धि के बाद माना जा रहा है कि आने वाले वर्षों में भारत का चिकित्सा क्षेत्र विदेशी सर्जिकल सिस्टम पर निर्भरता से मुक्त हो सकेगा। मीसो की लागत विदेशी रोबोटिक सिस्टम की लागत (करीब 15 से 20 करोड़ रुपये) की तुलना में लगभग एक-तिहाई है, जिससे यह सरकारी अस्पतालों और छोटे शहरों के मेडिकल कॉलेजों में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। यानी मीसो रोबोट को लगभग 5 से 6 करोड़ में इंस्टॉल किया जा सकता है।

देश में स्वदेशी रोबोटिक तकनीक का प्रसार
रोबोटिक सर्जरी में, सर्जन एक चीरा लगाते हैं और रोबोटिक भुजा क्षतिग्रस्त उपास्थि (कार्टिलेज) एवं हड्डी को हटाने और कृत्रिम अंगों को सही जगह पर लगाने में मदद करती है। पारंपरिक सर्जरी के मुकाबले छोटे चीरे लगाए जाने से मरीज को दर्द कम होता है और खून भी कम बहता है। 3डी तकनीक के उपयोग से ऑपरेशन अधिक सटीक होता है। उम्मीद है कि जल्द ही इस स्वदेशी तकनीक को देश के अन्य बड़े अस्पतालों जैसे एम्स, सफदरजंग, पीजीआई चंडीगढ़ और जेएनयू मेडिकल कैंपस में भी लागू किया जाएगा। डॉ. अजय शुक्ला ने कहा, यह सिर्फ एक सर्जरी नहीं, बल्कि मेडिकल क्षेत्र में देश की तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम है।

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