
नई दिल्ली, 22 जुलाई : शरीर की मुद्रा या पोश्चर से जुड़ी समस्याएं डॉक्टरों विशेषकर सर्जनों को प्रभावित कर रही हैं। इसके पीछे रोबोटिक सर्जरी एक बड़ा कारण बनकर उभर रही है जिसमें सर्जन को रोबोटिक हैंड, स्क्रीन और मरीज की निगरानी के लिए लंबे समय तक स्थिर मुद्रा में रहना पड़ता है। नतीजतन गर्दन, कंधे और कमर के साथ उंगलियों में दर्द सहना पड़ता है।
यह जानकारी ‘शल्यचिकित्सकों के लिए एर्गोनॉमिक चुनौतियां और निवारक रणनीतियां’ शीर्षक से आयोजित सीएमई के दौरान आरएमएल अस्पताल के फिजियोथेरेपी विभाग की एचओडी डॉ. पूजा सेठी ने मंगलवार को दी। उन्होंने बताया, देश के करीब 47% से 87% सर्जन कार्पल टनल सिंड्रोम से लेकर गर्दन और कमर दर्द से पीड़ित पाए जा रहे हैं। जबकि 99% इतालवी सर्जन अपने दर्द के पीछे गलत पोस्चर को और 63% लैप्रोस्कोपी को जिम्मेदार मानते हैं। इस अवसर पर निदेशक डॉ. अशोक कुमार, चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विवेक दीवान, एएमएस डॉ. मनोज झा और डॉ. श्वेता शर्मा सहित अनेक मेडिकल छात्र मौजूद रहे।
डॉ. दीवान ने बताया कि सर्जनों की समस्या को लेकर आरएमएल अस्पताल आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर ऐसे सर्जिकल उपकरण बनाने के प्रयास कर रहा है जो सर्जरी के दौरान सर्जन की कार्यक्षमता में इजाफा कर सके। ताकि उन्हें कमरदर्द, गर्दन दर्द और कार्पल टनल सिंड्रोम (सीटीएस) जैसी समस्याओं से राहत मिल सके। प्लास्टिक सर्जन डॉ. मनोज झा ने कहा, अंग प्रत्यारोपण, पुनः अंग प्रत्यारोपण, लैप्रोस्कोपिक, बैरिएट्रिक और कैंसर आदि सर्जरी में काफी लंबा वक्त लगता है। जो सर्जन की कार्य क्षमता को प्रभावित करता है। ऐसे में एर्गोनॉमिक डिजाइन सर्जनों को दर्द से राहत प्रदान करने के साथ कार्यक्षमता में इजाफा कर सकता है।
आईआईटी दिल्ली के गौरव कार के मुताबिक हम सर्जनों के पोस्चर में सुधार के लिए पहले चरण में लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में इस्तेमाल होने वाले टूल्स (सीजर, क्रेस्पर और नीडल होल्डर आदि) पर काम रहे हैं। पहले टूल्स के डिजाइन विशेषकर हैंडल में सुधार लाने का काम किया जा रहा है जिससे सर्जिकल उपकरणों को लंबे समय तक प्रयोग करने के बावजूद हाथ की उंगलियों, गर्दन, कमर और कंधे पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ेगा।
क्या है कार्पल टनल सिंड्रोम ?
वरिष्ठ डॉ. श्वेता शर्मा ने बताया कि सीटीएस या कार्पल टनल सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें कलाई में स्थित कार्पल टनल में मीडियन तंत्रिका पर दबाव पड़ता है, जिससे हाथ और उंगलियों में दर्द, झुनझुनी और सुन्नता हो जाती है। यह समस्या विशेष रूप से रात में बढ़ जाती है। साथ ही किसी वस्तु को पकड़ने की क्षमता या हाथ की पकड़ कमजोर हो जाती है।
35 सर्जनों ने कराई पोस्चर की जांच
सीएमई के दौरान करीब 35 सर्जनों के पोस्चर की जांच एक सॉफ्टवेयर के जरिये की गई ताकि उनके शरीर पर पड़ने दुष्प्रभावों का अग्रिम परिणाम जानकर उपचार शुरू किया जा सके। सीएमई में शल्यचिकित्सकों के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए व्यायामों का व्यावहारिक प्रदर्शन भी किया गया जो दर्द की स्थिति में सर्जनों के लिए लाभदायक साबित होंगे।
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