
नई दिल्ली, 11 मार्च : ग्लूकोमा या काला मोतियाबिंद एक ऐसी बीमारी है जो दुनिया में नेत्रहीनता का सबसे बड़ा कारण बनकर उभर रही है। इस बीमारी से पीड़ित लोगों में नवजात शिशु से लेकर 40 वर्ष के प्रौढ़ और 60 वर्ष के वृद्ध तक शामिल हैं जिनकी संख्या आज देश में लगभग 1.20 करोड़ हो चुकी है। ये सभी लोग निरंतर अंधेपन की ओर बढ़ रहे हैं।
एम्स दिल्ली के डॉ राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र के ग्लूकोमा यूनिट के इंचार्ज डॉ तनुज दादा ने कहा, ग्लूकोमा आंख की बीमारी है जो मस्तिष्क को दृश्य संकेत भेजने वाले ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचाती है। इससे पीड़ित की नजर कमजोर होती चली जाती है और अंततः व्यक्ति अंधेपन का शिकार हो जाता है। ज्यादातर मामलों में, ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान आंख में बढ़े हुए दबाव (इंट्राओकुलर प्रेशर) के कारण होता है। जो स्ट्रेस और स्टेरॉयड से बढ़ता है। इसके अलावा हाई बीपी, लो बीपी, थायराइड और पारिवारिक इतिहास भी जिम्मेदार होता है।
डॉ दादा ने कहा, ग्लूकोमा को दृष्टि का चोर भी कहा जाता है जो धीरे -धीरे पीड़ित की आंख की रोशनी को चुरा लेता है। आमतौर पर 95% लोगों को काला मोतियाबिंद से पीड़ित होने का पता ही नहीं चलता। जब नजर बहुत ज्यादा धुंधली हो जाती है तब वह डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। लेकिन तब तक उनकी एक आंख की रोशनी जा चुकी होती है या सिर्फ 30-40% ही बची होती है। उन्होंने कहा, यह एक अनुवांशिक रोग है जो परिवार के सदस्यों को अन्य लोगों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा प्रभावित कर सकता है।
उन्होंने बताया कि ग्लूकोमा की पहचान के लिए अबतक कोई बड़ा लक्षण सामने नहीं आया है। इसलिए रोग की पहचान के लिए सरकारी अस्पताल में चार प्रकार की स्क्रीनिंग की जाती है जिसमें आंखों के दबाव, ऑप्टिक तंत्रिका, दृष्टि क्षेत्र और आंखों के अन्य हिस्सों की जांच शामिल है। इसके अलावा टोनोमेट्री, पेरीमेट्री, गोनियोस्कोपी और पैकीमेट्री जैसे टेस्ट भी किए जाते हैं। हालांकि कई मामलों में ग्लूकोमा पीड़ित को इंद्रधनुष जैसा रंग या आकार दिखाई देता है।
गोरेपन और पिंपल की क्रीम से भी ग्लूकोमा का खतरा ?
बोटॉक्स ट्रीटमेंट यानि स्किन टाइटनिंग इंजेक्शन, फेयरनेस क्रीम और पिंपल हटाने वाली क्रीम से भी ग्लूकोमा हो सकता है। इनमें स्टेरॉयड होते हैं जो आंखों की रोशनी के लिए घातक साबित हो सकते हैं।
कैसे करें ग्लूकोमा से बचाव ?
ग्लूकोमा से बचाव के लिए 40 साल की आयु के बाद हर दो साल में एक बार और 60 साल की आयु के बाद हर एक साल में एक बार आंखों की जांच कराएं। हरी पत्तेदार सब्जियां खाएं। इसमें नाइट्रेट होता है जो शरीर और आंख के लिए अच्छा होता है। स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। कैफीन, नमक और ट्रांस फैटी एसिड का सेवन सीमित करें। हाइड्रेटेड रहें, स्क्रीन टाइम सीमित करें। बीड़ी, सिगरेट, गुटखा समेत किसी भी प्रकार के तंबाकू का सेवन न करें।
ग्लूकोमा में प्राणायाम कारगर ?
प्राणायाम के जरिये ग्लूकोमा के प्रभाव को कम किया जा सकता है। नियमित रूप से अनुलोम -विलोम, भ्रामरी प्राणायाम और ध्यान करें लेकिन शीर्षासन न करें, इससे आंख का प्रेशर बढ़ सकता है। प्राणायाम में 4 सेकंड के लिए सांस लेना, 7 सेकंड के लिए सांस रोकना और 8 सेकंड के लिए सांस छोड़ना शामिल है। यह श्वास पैटर्न चिंता को कम करता है। सोने में मदद करना है। 4-7-8 श्वास तकनीक प्राणायाम का एक रूप है, जो सांस को नियंत्रित करने का अभ्यास है।
क्या है स्टेरॉयड ?
स्टेरॉयड (डेक्सामेथासोन, प्रेडनिसोलोन, मिथाइलप्रेडनिसोलोन और हाइड्रोकार्टिसोन) मानव शरीर में पाए जाने वाले हार्मोन हैं जो आम तौर पर एड्रेनल ग्रंथियों के जरिये उत्पन्न होता है। हमारा शरीर स्वाभाविक रूप से स्टेरॉयड का उत्पादन कम मात्रा में करता है। वे प्रतिरक्षा प्रणाली, सूजन, लालिमा और रक्तचाप को कम करने सहित कई कार्यों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। स्टेरॉयड को प्रयोगशाला में भी बनाया जा सकता है। इन्हें कई अलग-अलग स्थितियों और बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।
शरीर में स्टेरॉयड बढ़ने के नुकसान ?
नस में और मांसपेशी में स्टेरॉयड इंजेक्शन से हड्डी टूटने का खतरा बढ़ सकता है। एनाबोलिक स्टेरॉयड का लम्बे समय तक सेवन करने से कोरोनरी धमनी के रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। यानि दिल धमनी के साथ ठीक से तालमेल नहीं बैठा पाता और क्षमता कम होने के साथ दिल कम लचीला हो जाता है। स्टेरॉयड के अन्य संभावित दुष्प्रभावों में नींद न आना, सिरदर्द, पेट में हल्का दर्द, विकास में रुकावट, यौवन में देरी और मोतियाबिंद शामिल हैं।