
नई दिल्ली, 24 जून : एम्स आने वाले गंभीर मरीजों को जीवन रक्षक उपकरण निजी वेंडर से खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इस आशय के आरोप एक गैर-सरकारी संस्था सह्याद्रि राइटिस्ट्स फोरम ने अपनी शिकायत में लगाए हैं।
वहीं मामले की गंभीरता के मद्देनजर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) भी हरकत में आ गया है। उसने एम्स प्रशासन को नोटिस जारी किया है। साथ ही अगले 15 दिन के भीतर एक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) तलब की है। दरअसल, एनजीओ की शिकायत में आरोप लगाया गया है कि कुछ डॉक्टरों ने आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किए बिना, अपनी पसंद के विक्रेताओं से उपकरण खरीदे और खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता सहित अन्य नियमों का पालन नहीं किया। इससे जहां वित्तीय अनियमितताओं को बढ़ावा मिला। वहीं, जीवनरक्षक उपकरणों की गुणवत्ता भी प्रभावित हुईं।
शिकायत के अनुसार, एम्स के न्यूरो रेडियोलॉजी विभाग के डॉक्टर, दिमाग की नसों के इलाज में इस्तेमाल होने वाले एक खास इक्विपमेंट फ्लो डायवर्टर, के लिए मरीजों या उनके तीमारदारों को एक निजी वेंडर का फोन नंबर थमा देते थे। यह सीधे तौर पर सरकारी खरीद नियमों का उल्लंघन है। ये नियम इसलिए बनाए गए है ताकि मरीजों को मेडिकल इक्विपमेंट के बाजार में होने वाली लूट से बचाया जा सके और उन्हें सही कीमत पर इलाज मिल सके।
आरोप है कि फ्लो डायवर्टर के लिए यह निजी वेंडर एम्स के मरीजों से 5 लाख रुपये से अधिक ले रहा था और इसमें टैक्स शामिल नहीं था। वहीं, सरकारी अस्पताल में या इक्विपमेंट 4 लाख रुपये में मिल रहा था। यानी सीधे-सीधे एक ही इक्विपमेंट के लिए वेंडर एक लाख रुपये से ज्यादा पैसे मांग रहा था। एनएचआरसी ने एम्स डायरेक्टर को भेजे अपने नोटिस में कहा है, शिकायत में लगाए गए आरोप पहली नजर में पीड़ितों के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन प्रतीत होते हैं। आयोग ने प्रभावित मरीजों के लिए मुआवजे और दोषियों के लिए सख्त कार्रवाई की मांग की है।
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