भारत

मेडिकल क्षेत्र में सबसे आगे हिंदुस्तानी, खतरनाक ब्लैक फंगस का इलाज खोजा

-एक सुपरहीरो की तरह शरीर को बैक्टीरिया और वायरस के हमलों से बचाने में मदद करता है लैक्टोफेरिन

नई दिल्ली, 27 जून: ब्लैक फंगस या म्यूकोरमाइकोसिस के चलते होने वाली मौत और आंख या नाक गंवाने के मामले अब बीते दिनों की बात बनने वाले हैं। दरअसल, एम्स दिल्ली के डॉक्टरों ने एक ऐसे प्रोटीन की खोज की है जो दुनिया को ना सिर्फ ब्लैक फंगस जैसे गंभीर फंगल संक्रमण से निजात दिलाने की क्षमता रखता है। बल्कि ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों को सर्जरी के बिना भी ठीक कर सकता है। इस प्रोटीन का नाम ‘लैक्टोफेरिन’ है जिसके इस्तेमाल से ब्लैक फंगस के चलते होने वाली मौतों की संख्या में भी कमी लाई जा सकती है।

एम्स दिल्ली के बायोफिजिक्स विभाग की प्रोफेसर और मुख्य शोधकर्ता डॉ सुजाता शर्मा ने वीरवार को बताया कि आम तौर पर म्यूकोरमाइकोसिस के मामलों में 30-80% मरीजों की मृत्यु हो जाती, खासकर उन मामलों में जहां रोग की पहचान में देरी होती है या अन्य गंभीर बीमारियां होती हैं। यह विभिन्न लक्षणों के साथ प्रकट हो सकता है जिनमें आंख, नाक, मस्तिष्क, गुर्दे और फेफड़े पर पड़ने वाले प्रभाव शामिल हैं।

उन्होंने बताया, कोविड-19 महामारी से पहले, म्यूकोरमाइकोसिस के मामले बहुत कम थे और मुख्य रूप से अनियंत्रित डायबिटीज या कीमोथेरेपी से गुजर रहे कैंसर रोगी में देखे जाते थे। लेकिन कोविड-19 महामारी के दौरान कई देशों में म्यूकोरमाइकोसिस के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। जो स्टेरॉयड के अनुचित उपयोग, कोविड-19 वायरस के चलते प्रतिरक्षा प्रणाली को पहुंचे नुकसान, अंग प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों और एचआईवी पीड़ितों से जुड़े थे।

डॉ शर्मा ने कहा, ब्लैक फंगस का एकमात्र इलाज ‘एम्फोटेरिसिन बी’ नाम की दवा से ही सीमित है लेकिन सीमित उपचार और उच्च मृत्यु दर की वजह से नई दवाओं के आविष्कार की जरूरत महसूस की जा रही थी। इसके मद्देनजर एम्स दिल्ली के बायोफिजिक्स विभाग के शोधकर्ताओं ने माइक्रोबायोलॉजी विभाग के सहयोग से म्यूकोरमाइकोसिस का इलाज ढूंढ निकाला है। शोधार्थियों ने ‘लैक्टोफेरिन’ नामक एक प्राकृतिक प्रोटीन की खोज की है जो ब्लैक फंगस का इलाज करने में सक्षम है।

उन्होंने बताया कि एम्स के शोधार्थियों डॉ सुजाता शर्मा (स्वयं), डॉ. गगनदीप सिंह, प्रो. इमैकुलाटा ज़ेस, डॉ. प्रदीप शर्मा और प्रो. तेज पी. सिंह ने प्रयोगशाला में लैक्टोफेरिन और इसके कुछ निर्माण खंड, जिन्हें ‘पेप्टाइड्स’ कहा जाता है, के साथ एम्फोटेरिसिन बी दवा मिलाकर ब्लैक फंगस को नष्ट करने में कामयाबी पाई है। डॉ शर्मा ने बताया कि लैक्टोफेरिन वही प्रोटीन है जो प्रसव के बाद मां के पहले दूध (कोलोस्ट्रम) में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह प्रोटीन (लैक्टोफेरिन) न सिर्फ ब्लैक फंगस की कोशिका की क्रिया को बाधित करता है। बल्कि उसकी मृत्यु का कारण भी बनता है। साथ ही फंगस के प्रति मरीज की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को भी बढ़ाता है।

क्या है लैक्टोफेरिन?
शोधकर्ताओं ने कहा लैक्टोफेरिन एक सुपरहीरो अभिभावक की तरह है जो आपके शरीर को बैक्टीरिया और वायरस जैसे हानिकारक आक्रमणकारियों से बचाने में मदद करता है। म्यूकोरमाइकोसिस जैसे खतरनाक फंगल संक्रमणों के इलाज में इसकी क्षमता उजागर होने के बाद मेडिकल क्षेत्र एक नई दिशा की ओर अग्रसर हो रहा है। यह प्रोटीन हमारे शारीरिक स्रावों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, और यह एक वरदान है क्योंकि इससे अवांछित दुष्प्रभावों का कोई जोखिम नहीं होता है। साथ ही, एक प्राकृतिक अणु होने के नाते यह आसानी से उपलब्ध है। हम जानवरों में इसका परीक्षण करने और इसे म्यूकोरमाइकोसिस के लिए एक संभावित चिकित्सीय अणु के रूप में विकसित करने की प्रक्रिया में हैं।

क्या है ब्लैक फंगस
म्यूकोर्मिकोसिस या ब्लैक फंगस एक दुर्लभ संक्रमण है। यह म्यूकोर्मिसेट्स नामक मोल्ड के संपर्क में आने के कारण होता है जो आमतौर पर मिट्टी, पौधों, खाद और सड़ते फलों व सब्जियों में पाया जाता है। गंभीर मामलों में, संक्रमित या मृत ऊतक को हटाने और फंगस को आगे फैलने से रोकने के लिए सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। इस सर्जरी में नाक और आंखों के कुछ हिस्सों को हटाना शामिल हो सकता है और इससे स्थायी शारीरिक और मानसिक क्षति हो सकती है।

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