नई दिल्ली, 20 जुलाई : अगर आप अपने दांतों के गिरने या टूटने के कारण परेशान हैं और डेंटल इंप्लांट कराना चाहते हैं लेकिन जबड़े की हड्डी कमजोर होने के चलते इंप्लांट नहीं करवा पा रहे हैं तो आप सीधे मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज (एमएआईडीएस) पहुंचिए। यहां आपको ना सिर्फ अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित दंत समाधान मिलेगा बल्कि मजबूत दांतों के साथ आकर्षक मुस्कान भी मिलेगी।
दरअसल, इस समस्या से निपटने के लिए बोन ग्राफ्टिंग एक बेहतर विकल्प है जो हड्डी के स्तर को संरक्षित करता है। साथ ही डेंटल इंप्लांट (दंत प्रतिस्थापन) की स्थिरता के लिए उचित जगह भी उपलब्ध कराता है। एमएआईडीएस की प्राचार्या डॉ अरुणदीप कौर लांबा ने बताया कि हमारे मुंह के अंदर जबड़ों की जो हड्डी दांतों को घेरती है और उन्हें सहारा देती है। वह कोई दांत निकल जाने या गिर जाने पर क्षीण होने लगती है। क्योंकि उस क्षेत्र में हड्डी के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए दांत की चबाने वाली शक्ति नहीं रह जाती है। रिज के क्षरण से जहां आस-पास के क्षेत्र प्रभावित हो जाते हैं। वहीं, आगे चलकर व्यक्ति के अन्य दांत भी खराब हो जाते हैं।
डॉ अरुणदीप कौर लांबा ने बताया कि मुंह के दंत विहीन क्षेत्रों में जबड़े की हड्डी अवशोषित होती रहती है और धीरे धीरे पहले की तुलना में बहुत पतली हो जाती है। साइनस के करीब पहुंच जाती है। ऐसे मामलों में किसी भी प्रकार के डेंटल इम्प्लांट को जबड़े में रखने से पहले अक्सर साइनस लिफ्ट किया जाता है, जिसे बोन ग्राफ्टिंग से संपन्न किया जाता है। इस संबंध में एमएआईडीएस का टिश्यू बैंक बेहद उपयोगी है जहां बोन ग्राफ्टिंग के लिए सभी जरूरी उपकरण, तकनीक और अनुभवी डॉक्टर मौजूद हैं। उन्होंने बताया, बोन ग्राफ्ट के लिए जरुरी हड्डी मरीज के शरीर के अंगों से या अस्थि रोग विभाग से ली जाती है। फिर उसे मरीज की जरूरत के मुताबिक क्लीन रूम में विकसित किया जाता है। इस बोन ग्राफ्ट की बाजार में काफी मांग है जिसे अन्य अस्पतालों व क्लीनिकों को वाजिब दाम में उपलब्ध कराया जा सकता है। फिलहाल, आधुनिक क्लीन रूम की स्थापना की जा रही है ।
क्यों नष्ट हो जाती है जबड़े की हड्डी की संरचना?
व्यक्ति के दांतों की मौजूदगी ही उसके जबड़े की हड्डी के स्तर को स्वस्थ रखती है। सामान्य चबाने का दबाव हड्डी को उत्तेजित करता है, जो मस्तिष्क को उचित पोषक तत्व प्रदान करने के लिए संकेत भेजता है। गायब दांत के मामले में, उस क्षेत्र की हड्डी में अब पर्याप्त रक्त की आपूर्ति नहीं होती है क्योंकि अब कोई जीवित दांत नहीं है और कोई संकेत नहीं होने पर मस्तिष्क पोषक तत्व भेजना बंद कर देता है। इससे समय के साथ जबड़े की लकीरें चौड़ाई और ऊंचाई दोनों खो देती हैं।
डेंटल बोन ग्राफ्टिंग क्या है?
बोन ग्राफ्टिंग एक दंत प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य खोए हुए दांत के कारण खाली जगह को भरना है। बोन ग्राफ्ट व्यक्ति के जबड़े के उस क्षेत्र में हड्डी के स्तर को स्थिर करने में मदद करते हैं जहां दांत गायब है या टूट चुका है। लेकिन उपचार यहीं समाप्त नहीं होता है। एक बार जब बोन ग्राफ्ट पूरी तरह से ठीक हो जाता है, तभी इम्प्लांट प्लेसमेंट प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है। अस्थि प्रत्यारोपण में आमतौर पर रोगी के अपने शरीर की हड्डी का उपयोग किया जाता है। अन्य विकल्प शव, पशु या सिंथेटिक सामग्री होती हैं।
दंत विज्ञान में जल्द होगी पीएचडी की शुरुआत
एमएआईडीएस की प्रिंसिपल डॉ अरुणदीप कौर लांबा ने बताया कि जल्द ही कॉलेज में पीएचडी की सुविधा शुरू होने जा रही है। इसके लिए दिल्ली विश्वविद्यालय से मंजूरी मिल चुकी है। उम्मीद है कि मौजूदा शैक्षिक वर्ष से ही इंस्टीट्यूट में पीएचडी की पढ़ाई शुरू हो जाएगी। फिलहाल, डेंटल स्नातक, डेंटल परास्नातक के कोर्स उपलब्ध हैं। इसके साथ ही कॉलेज में डेंटल टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब भी स्थापित किया गया है, जिसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सहयोग से विकसित किया गया है।