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हीट स्ट्रोक : पीड़ित को तुरंत इलाज मिले तो 80% की बच सकती है जान

-सूरज की तपिश और गर्म हवा के थपेड़ों से झुलस रहे हैं लोग

नई दिल्ली, 26 मई: इन दिनों चिलचिलाती गर्मी से जहां देशभर में हीट स्ट्रोक की घटनाएं बढ़ रही हैं। वहीं, सूरज की तपिश और गर्म हवा के थपेड़े लोगों को झुलसा रहे हैं। गर्मी के प्रकोप से लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचने के चलते उन्हें मतली, चक्कर आना, सिरदर्द एवं मांसपेशियों में ऐंठन के साथ-साथ त्वचा में रूखापन व लाली के अलावा भ्रम और दौरे जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है।

राम मनोहर लोहिया अस्पताल के आपातकालीन चिकित्सा विभाग के डॉ अमलेंदु यादव ने कहा कि लू से पीड़ित मरीजों की सुविधा के लिए देश की पहली हीट स्ट्रोक यूनिट आरएमएल की पुरानी इमरजेंसी बिल्डिंग के भूतल पर कमरा नंबर 10 में स्थापित की गई है। इसमें दो बेड, दो बाथ टब और 250 किग्रा प्रतिदिन आइस क्यूब बनाने वाली एक हिम प्रशीतक मशीन सहित अन्य आपातकालीन चिकित्सा उपकरण उपलब्ध हैं। साथ ही उच्च प्रशिक्षित पेशेवरों की एक टीम तैनात है। डॉ यादव ने कहा, लू के चलते अक्सर जनहानि होने के मामले सामने आते हैं, अगर उन्हें समय पर और तेजी से इलाज मिल जाए तो हीट स्ट्रोक से होने वाली मृत्यु दर में 80% तक कमी लाई जा सकती है।

क्या होता है हीट स्ट्रोक ?
आरएमएल के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. अजय चौहान ने बताया कि व्यक्ति के शरीर का सामान्य तापमान 37 डिग्री सेंटीग्रेड या 98.6 फारेनहाइट होता है। जब भीषण गर्मी के चलते मौसम का तापमान 45 डिग्री के पार हो जाता है और शरीर का तापमान 42 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। तब शरीर की कूलिंग व्यवस्था ठप हो जाती है और खून गर्म होने लगता है। उसमें मौजूद प्रोटीन पकने ( जैसे उबलते पानी में अंडा पकता है ) लगता है। साथ ही स्नायु कड़क होने लगते हैं और सांस लेने के दौरान काम करना बंद कर देते हैं। वहीं, शरीर का पानी कम हो जाने से रक्त गाढ़ा होने लगता है, ब्लड प्रेशर कम हो जाता है, महत्वपूर्ण अंग विशेषतः ब्रेन तक ब्लड सप्लाई रुक जाती है। व्यक्ति को पसीना आना बंद हो जाता है और वह अपने शरीर का नियंत्रण खो देता है। व्यक्ति कोमा में भी चला जाता है। उसके शरीर के एक- एक अंग कुछ ही क्षणों में काम करना बंद कर देते हैं और उसकी मृत्यु तक हो जाती है।

बचाव के लिए क्या करें ?
दोपहर 12 से 3 बजे के बीच घर, कमरे या ऑफिस के अंदर रहने का प्रयास करें। थोड़ी थोड़ी देर में पानी पीते रहें। कम से कम 3 लीटर पानी जरूर पिएं। ठंडे पानी से नहाएं। हीट स्ट्रोक होने पर व्यक्ति को ठंडे पानी में लिटाएं। उसके शरीर के तापमान में कमी लाने का प्रयास करें। तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। इसके अलावा मांस का प्रयोग छोड़ें या कम से कम सेवन करें। फल और सब्जियों को भोजन में ज्यादा स्थान दें। शयन कक्ष और अन्य कमरों मे 2 आधे पानी से भरे ऊपर से खुले पात्रों को रख कर कमरे की नमी बरकरार रखें। अपने होठों और आंखों को नम रखने का प्रयास करें। धूप में जाने से पहले कॉटन के कपडे से सिर और आंखों को ढकें, चश्मा, हैट या कैप पहने। जहां तक संभव हो ब्लड प्रेशर पर नजर रखें। हीट स्ट्रोक किसी को भी हो सकता है।

कैसे होता है हीट वेव पीड़ित का उपचार
डॉ. चौहान ने बताया हीट वेव से पीड़ित व्यक्ति को हीट स्ट्रोक यूनिट में भर्ती किया जाता है। इसमें सबसे पहले मरीज के शरीर के तापमान में कमी लाने का प्रयास किया जाता है। मरीज को ठंडे पानी से भरे बाथ टब में 30 मिनट तक रखा जाता है और शरीर का तापमान 1 से 5 डिग्री तक नीचे लाया जाता है। टब के पानी को ठंडा करने के लिए आइस क्यूब या बर्फ के टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।

लू पीड़ित को चढ़ाया जाता है ठंडा ग्लूकोज
लू से पीड़ित मरीज को आईवी फ्लूड के माध्यम से ठंडक प्रदान की जाती है। इसके लिए ग्लूकोज को फ्रिज में 1-5 डिग्री सेंटीग्रेड तक ठंडा करके मरीज को चढ़ाया जाता है।

हार्ट रेट व ईसीजी पर रखी जाती है नजर
हीट वेव से पीड़ित व्यक्ति की दिल की धड़कन असामान्य हो जाती है। उपचार के दौरान मरीज की ईसीजी (इलेक्ट्रो कार्डियो ग्राम) के साथ हार्ट रेट और श्वसन दर पर भी नजर रखी जाती है। लू से पीड़ित मरीज के स्वास्थ्य की देखभाल आईसीयू की तरह ही की जाती है।

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