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Gujarat : हिन्दू-मुस्लिम एकता की अनोखी मिसाल: इमरानभाई हिंगोरा की मानवता भरी कहानी

गुजरात के अमरेली ज़िले के सावरकुंडला शहर में हाल ही में एक ऐसी अनोखी और इंसानियत से भरी घटना सामने आई है, जिसने पूरे...

Gujarat News : (अभिषेक बारड) गुजरात के अमरेली ज़िले के सावरकुंडला शहर में हाल ही में एक ऐसी अनोखी और इंसानियत से भरी घटना सामने आई है, जिसने पूरे समाज में हिन्दू-मुस्लिम एकता का एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया है। यह कहानी है एक साधारण कारीगर इमरानभाई हिंगोरा की, जिन्होंने मानवता की मिसाल पेश करते हुए अपने कर्तव्य को दिल से निभाया।

बेहद दयनीय हालत में देखा

दरअसल, करीब पांच साल पहले इमरानभाई अपने घर के पास से गुजर रहे थे। तभी उन्होंने लोहाणा समाज की एक वृद्ध महिला ज्योतिबेन त्रिभुवनदास माधवाणी को बेहद दयनीय हालत में देखा। वह न केवल बीमार थीं बल्कि अकेली भी थीं। इमरानभाई ने तुरंत उन्हें अस्पताल ले जाकर इलाज कराया और फिर उन्हें अपने घर में आश्रय दिया। इसके साथ ही उन्होंने निःस्वार्थ सेवा का कार्य शुरू कर दिया। पांच वर्षों तक इमरानभाई ने ज्योतिबेन की मां के समान सेवा की। उन्होंने उनकी दवाओं से लेकर देखभाल और रोजमर्रा की ज़रूरतों तक की पूरी जिम्मेदारी ली और हर परिस्थिति में बेटे की तरह साथ निभाया। वहीं, ज्योतिबेन ने भी उन्हें बेटे जैसा स्नेह दिया और उन पर पूरा विश्वास जताया।

अस्थि विसर्जन भी विधिपूर्वक दामोदर कुंड में किया

हाल ही में जब ज्योतिबेन का निधन हुआ, तब इमरानभाई ने फिर से मानवता की अद्भुत मिसाल पेश की। एक मुस्लिम युवक होने के बावजूद उन्होंने पूरी हिन्दू परंपरा और रीति-रिवाजों के अनुसार उनकी अंतिम क्रिया सम्पन्न कराई। सावरकुंडला के श्मशान में ज्योतिबेन को अग्निदान दिया गया और उनके अस्थि विसर्जन भी विधिपूर्वक दामोदर कुंड में किया गया। इस समय इमरानभाई एक सगे बेटे की तरह फूट-फूट कर रोए, जिससे उनका सच्चा प्रेम और भावनात्मक जुड़ाव झलकता था।

ज्योतिबेन ने इमरानभाई का नाम दिया

ज्योतिबेन के पास करीब 20 लाख रुपये जमा थे। जब वे बैंक में इस राशि को जमा कराने गईं, तो बैंक मैनेजर ने नामित वारिस के बारे में पूछा। ज्योतिबेन ने इमरानभाई का नाम दिया। यह सुनकर मैनेजर चकित रह गया। फिर उन्होंने इमरानभाई को बुलाया और उस दिन का दृश्य बेहद भावुक रहा, जब इमरानभाई को आधिकारिक वारिस घोषित किया गया।

ज़रूरतमंदों को भोजन पहुंचाता है

ज्योतिबेन बीमार थीं और तीन महीने बाद उनका निधन हुआ। इमरानभाई ने उनके अंतिम संस्कार के बाद बैंक में मिली 20 लाख की रकम में से एक पैसा भी अपने निजी उपयोग के लिए नहीं रखा। उन्होंने उसमें से 10 लाख रुपये ‘वीरबाई मां टिफिन सेवा केंद्र’ को दान किए, जो सावरकुंडला में ज़रूरतमंदों को भोजन पहुंचाता है। बाकी 10 लाख में से कुछ राशि सेवाभावी संस्थाओं को दी और शेष रकम ज्योतिबेन के रिश्तेदारों को सौंप दी।

यह घटना केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं

इस पूरी घटना में इमरानभाई ने जो निस्वार्थता, धर्मनिरपेक्षता और मानवता के मूल्य दिखाए, वे सचमुच भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतिबिंब हैं। यह घटना केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे समाज के लिए यह प्रेरणा है कि धर्म से ऊपर इंसानियत होती है। इमरानभाई हिंगोरा की सेवा और भावनात्मक जुड़ाव आज के समय में विशेष महत्व रखते हैं, जब समाज में धार्मिक विभाजन की ख़बरें आम हो गई हैं। सावरकुंडला की धरती ने हमेशा साम्प्रदायिक सौहार्द को मजबूत करने वाली संस्कृति दी है, और इमरानभाई की इस घटना ने इस परंपरा को और सशक्त बनाया है।

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