
नई दिल्ली, 7 नवम्बर : डेंटल इम्प्लांट्स आधुनिक दंत चिकित्सा की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है जिसके बिना आज दंत चिकित्सा की कल्पना नहीं की जा सकती। यह नकली दांतों को प्राकृतिक दांतों जैसा मजबूत बनाने की प्रक्रिया है जिसका लाभ 16 साल के किशोरवय बच्चों से लेकर 94 साल तक के बुजुर्ग उठा रहे हैं।
यह बातें ग्लोबल अमेरिकन एकेडमी ऑफ इम्प्लांट डेंटिस्ट्री (जीएएआईडी) सम्मेलन के चेयरमैन और गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के कुलपति व दंत रोग विशेषज्ञ प्रो डॉ महेश वर्मा ने वीरवार को नई दिल्ली में कही। उन्होंने कहा, देश में दंत विज्ञान के क्षेत्र में इम्प्लांट्स के लिए विशेष रूप से समर्पित कोई शैक्षिक शाखा नहीं है, फिर भी गहन शोध की मदद से इसमें उल्लेखनीय प्रगति हुई है जिसकी मदद से भारतीय दंत चिकित्सक डेंटल इम्प्लांट्स के क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रहे हैं। उनके साथ सचिव डॉ. बृज सभरवाल भी मौजूद रहे।
उन्होंने बताया कि मेक इन इंडिया के तहत एक भारतीय स्टार्टअप ने आई फिक्स डेंटल इम्प्लांट विकसित किया है जिसकी गुणवत्ता और स्थायित्वता के कारण दुनियाभर में काफी मांग है। प्रो. वर्मा ने बताया कि इम्प्लांट डेंटिस्ट्री में तकनीकी प्रगति के चलते टाइटेनियम स्क्रू जैसे उपकरण सामने आए हैं जो व्यक्ति के जबड़े की हड्डी से आसानी से जुड़ जाते हैं और प्राकृतिक दांतों की तरह काम करते हैं। इसके साथ ही इम्प्लांट्स की गुणवत्ता में सुधार, शीघ्र स्वास्थ्य लाभ और बेहतर परिणाम देने वाली नई विधियां भी विकसित हुई हैं। प्रमुख नवाचारों में डिजिटल और गाइडेड इम्प्लांट सर्जरी, डेंटल सीटी स्कैन, 3डी प्रिंटिंग और कंप्यूटर द्वारा तैयार की गई सटीक प्लेट्स शामिल हैं।
प्रो वर्मा ने कहा, हमें दंत स्वास्थ्य की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। हमारे पास आज ऐसी तकनीक है जो प्राकृतिक और सुंदर दिखने वाले दांत प्रदान कर सकती है। एआई तकनीकों के उपयोग से आज दांतों की प्राकृतिक बनावट, आकार और रंग से मिलते-जुलते इम्प्लांट्स आसानी से बनाए जा रहे हैं। इसके अलावा बायोमीमेटिक सामग्री और बायोडिग्रेडेबल समाधान भी उपलब्ध हैं। यानि अब आप आसानी से ‘दर्द रहित डिजाइनर मुस्कान’ हासिल कर सकते हैं और दुनिया को आकर्षित कर सकते हैं। उन्होंने कहा, दुनिया में सबसे किफायती डेंटल इंप्लांट की सुविधा सिर्फ भारत में उपलब्ध है।
कौन लगवा सकता है डेंटल इम्प्लांट ?
देश में स्वदेशी इम्प्लांट के साथ -कोरियन, जर्मन, अमेरिकन और स्विस इम्प्लांट्स भी प्रचलन में हैं। इन्हें स्वस्थ किशोरों से लेकर स्वस्थ बुजुर्ग तक लगवा सकते हैं। पहले यह 4 से 6 महीने में बनकर तैयार होता था और अब महज कुछ घंटों में तैयार हो जाता है जिसे जबड़े में लगाने की प्रक्रिया 30 मिनट में संपन्न हो जाती है।
डेंटल इम्प्लांट का खर्च ?
डेंटल इम्प्लांट की कीमत उसकी सामग्री पर भी निर्भर करती है। यह टाइटेनियम एलॉय से लेकर जिरकोनिया जैसे नए मैटेरियल से बना हो सकता है। आमतौर पर 20 से 35 हजार रुपये में एक दांत इम्प्लांट हो जाता है जो जीवन भर चलता है। लेकिन हर 6 महीने में इम्प्लांट की सर्विस जरूरी है।
देश में डेंटिस्ट की संख्या ?
फिलहाल, भारत में करीब 4 से 5 लाख दंत चिकित्सक हैं जो विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ ) के मानक अनुपात के मुकाबले चार गुना कम है। डब्ल्यूएचओ कहता है 700 की आबादी पर एक दंत चिकित्सक होना चाहिए जबकि भारत में 2800 लोगों की आबादी पर एक दंत चिकित्सक उपलब्ध है।