अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस, नई दिल्ली: बच्चे के खान – पान की आदतें दर्शाती हैं मानसिक विकारों का खतरा
अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस, नई दिल्ली: - बच्चों में भोजन संबंधी समस्याओं को पहचानकर संवेदी संवेदनशीलता और विकलांगता में लाई जा सकती है कमी

अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस, नई दिल्ली, 2 दिसम्बर : अगर आपका बच्चा कम उम्र का है और वह सब्जी खाते ही थूक देता है या उल्टी कर देता है। पैर का तलवा जमीन पर टिकाकर चलने की बजाय पैर के पंजों के बल पर चलता है या फिर कैंची जैसी आड़ी – तिरछी चाल चलता है तो आपको सतर्क होने की जरूरत है। यह संवेदी प्रसंस्करण संबंधी समस्याओं के लक्षण हो सकते हैं, जो ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर, अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर, बौद्धिक विकलांगता, सेरेब्रल पाल्सी, विशिष्ट भाषा विकलांगता और डाउन सिंड्रोम जैसे विकारों में पाए जाते हैं।
दरअसल, एक अध्ययन में सामने आया है कि जिन बच्चों की खान – पान की आदतें, चलने – फिरने के तरीके और व्यवहार सामान्य बच्चों से अलग होते हैं। उनमें आगे चलकर मानसिक व शारीरिक विकास संबंधी परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं। यह अध्ययन सफदरजंग अस्पताल की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ रचना सहगल और नर्सिंग अधिकारी भावना वर्मा के साथ राजकुमारी अमृत कौर नर्सिंग महाविद्यालय की डॉ मधुमिता डे ने संपन्न किया है। इस दौरान 6 से 11 वर्ष आयु के 150 विशेष बच्चों में संवेदी संवेदनशीलता सामान्य बच्चों से अधिक पाई गई। यानि एएसडी, एडीएचडी और बौद्धिक विकलांगता वाले बच्चों में वेस्टिबुलर, श्रवण और स्पर्श संबंधी संवेदनशीलता सबसे अधिक पाई गई।
ये संवेदनशीलताएं भोजन के प्रति अरुचि, खान-पान की चुनिंदा चीजों के इस्तेमाल और व्यवहार संबंधी घटनाओं से जुड़ी थीं। इसके अलावा मां के कामकाजी होने और उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि कमजोर होने के चलते भी बच्चों में पोषण व भोजन संबंधी समस्याएं ज्यादा पाई गईं। इन बच्चों में ऐसी आदतें भी पाई गईं जिनमें भोजन से इनकार करना, शोर – शराबे से दिक्कत होना, बिना वजह किसी व्यक्ति के प्रति नापसंदगी जताना आदि शामिल है।
इस संबंध में प्रमुख शोधार्थी भावना वर्मा ने कहा कि उक्त बातों पर प्रारंभिक हस्तक्षेप से बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास को काफी हद तक बाधित होने से रोका जा सकता है। भावना ने कहा कि यदि इन बच्चों की भोजन संबंधी समस्याओं से जुड़ी संवेदी संवेदनशीलता पर निरंतर ध्यान दिया जाए और उनमें संवेदी व पोषण हस्तक्षेप थैरेपी से सुधार लाया जाए तो उनकी विकासात्मक विकलांगता की गंभीरता में अधिक सुधार लाया जा सकता है। यानि बच्चे को दूसरों पर पूर्णतया निर्भर होने से बचाया जा सकता है।
क्या होता है संवेदी प्रसंस्करण?
इसका मतलब है, शरीर और आस-पास के माहौल से मिलने वाली संवेदी जानकारी को व्यवस्थित करना और अलग करना। यह प्रक्रिया मस्तिष्क में कई संवेदी तौर-तरीकों से मिलने वाले इनपुट को संसाधित करने से जुड़ी होती है। इनमें दृष्टि, श्रवण, स्पर्श, गंध, स्वाद, और वेस्टिबुलर सिस्टम जैसी चीज़ें शामिल होती हैं।