
New Delhi : (डॉ. अनिल सिंह, संपादक, स्टार व्यूज़, एवम संपादकीय सलाहकार टॉप स्टोरी न्यूज़ पेपर, पूर्व कार्यकारी संपादक, आज तक और स्टार न्यूज़, लेखक, “प्रधानमंत्री: भारतीय राजनीति में विमर्श” 2025) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 29 जुलाई 2025 को लोकसभा में दिया गया भाषण केवल विपक्ष का उत्तर नहीं था, बल्कि यह भारत की संप्रभु कार्रवाई, राष्ट्रीय उत्तरदायित्व और संसदीय मर्यादा का एक स्पष्ट और रणनीतिक उद्घोष था। यह भाषण उस समय आया जब देश पहलगाम आतंकी हमले और उसके जवाब में चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की पृष्ठभूमि में खड़ा है। मोदी ने संसद के मंच से राष्ट्र के समक्ष राजनीति से परे जाकर राष्ट्रीय सुरक्षा, लोकतांत्रिक नैतिकता और भारत की वैश्विक स्थिति को रेखांकित किया।
प्रधानमंत्री के इस संबोधन में तीन स्पष्ट और आपस में जुड़े हुए सूत्र थे, लोकतंत्र में अनुशासन की आवश्यकता, भारत का बढ़ता वैश्विक आत्मविश्वास, और विरोध के नाम पर हो रहे राजनीतिक गैर-जिम्मेदाराना आचरण की तीखी आलोचना। उनका स्वर न तो रक्षात्मक था और न ही आक्रामक। यह संतुलित, तथ्यों पर आधारित और आत्मविश्वास से भरा हुआ था। उन्होंने आरंभ में ही स्पष्ट कर दिया कि संसद केवल शोर-शराबे का मंच नहीं बल्कि दायित्व का पवित्र स्थान है। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र का अर्थ है व्यवहारिक मर्यादा, न कि व्यर्थ का हंगामा।”
उन्होंने किसी का नाम लिए बिना विपक्ष—विशेष रूप से इंडिया ब्लॉक—की उस प्रवृत्ति की आलोचना की जिसमें संसद को केवल विरोध के मंच के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि “भारत की जनता हमें नारेबाज़ी के लिए नहीं, समाधान के लिए संसद भेजती है।” यह वाक्य संसद की बार-बार की बाधित कार्यवाही से त्रस्त नागरिकों के दिलों को गहराई से छूता है।
प्रधानमंत्री का भाषण पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी एक स्पष्ट संदेश था। उन्होंने कहा कि “भारत अब हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करता और न ही अपनी गरिमा पर आंच सहन करेगा।” 1947 की मानसिकता में जी रहे देशों के प्रति उनका परोक्ष संदेश था कि भारत अब इतिहास के उकसावों में नहीं उलझेगा, बल्कि रणनीतिक संप्रभुता के साथ निर्णायक कदम उठाएगा।
उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले के बाद की घटनाओं की विस्तार से जानकारी दी। जैसे ही पाकिस्तान की संलिप्तता की पुष्टि हुई, भारत ने मात्र 22 मिनट में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ प्रारंभ कर दिया। उन्होंने यह भी बताया कि 9 मई को पाकिस्तान की ओर से दागे गए करीब 1000 मिसाइलों और ड्रोन को भारतीय वायु रक्षा प्रणाली ने सफलतापूर्वक मार गिराया। यह भारत की रणनीतिक तैयारी और तकनीकी आत्मनिर्भरता का प्रमाण था।
प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कार्रवाई में कोई बाहरी दबाव नहीं था। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस द्वारा फोन आने के बावजूद, भारत ने पूरी तरह स्वतंत्र निर्णय लिया। “भारत अपने निर्णय स्वयं करता है,” उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तान के डीजीएमओ ने कार्रवाई के बाद भारत से युद्धविराम के लिए गुहार लगाई—यह दर्शाता है कि भारत की जवाबी कार्रवाई न केवल सटीक थी, बल्कि उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ा।
प्रधानमंत्री ने इस कार्रवाई को केवल सैन्य नहीं, बल्कि नैतिक जीत के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि भारत आतंकवादियों और उन्हें शरण देने वाले देशों में कोई फर्क नहीं करता। उनका कथन—“जिन्होंने भारत को ललकारा, हम उन्हें उसी मिट्टी में मिला देंगे”—दृढ़ निश्चय का प्रतीक था।
विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब देते हुए उन्होंने किसी तरह का उत्तेजक भाषण नहीं दिया। राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोप कि सरकार ने सेना की कार्रवाई की सीमा को राजनीतिक कारणों से सीमित किया, पर मोदी ने नीति और रणनीति के स्तर पर शांतिपूर्ण और सटीक उत्तर दिया। पी. चिदंबरम और प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा उठाए गए खुफिया विफलता और युद्धविराम के स्वरूप जैसे सवालों को भी उन्होंने जिम्मेदारी से संबोधित किया।
प्रधानमंत्री ने संसद के भीतर मर्यादा के पतन की ओर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि संसद को नारेबाज़ी का मंच नहीं, जनहित के लिए विधायी कार्य का स्थान होना चाहिए। उन्होंने विपक्ष को ‘नाटक का पात्र’ नहीं, लोकतंत्र का जिम्मेदार प्रतिनिधि बनने की सलाह दी।
अपने भाषण में मोदी ने सरकार की आगामी योजनाओं की झलक भी दी—डिजिटल इंडिया 2.0, रक्षा आधुनिकीकरण, ग्रामीण कौशल विकास और कृषि डिजिटलीकरण जैसे एजेंडे प्रस्तुत करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि यह सरकार काम करती है, केवल वादे नहीं करती।
यह भाषण तत्काल और दीर्घकालीन दोनों प्रकार के राजनीतिक प्रभाव रखता है। आगामी विधानसभा चुनावों से पूर्व यह भाषण भाजपा को फिर से ‘काम करने वाली पार्टी’ के रूप में स्थापित करता है। वहीं विपक्ष को वह असहज कर देता है जो केवल विरोध की राजनीति में व्यस्त है।
वैश्विक स्तर पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की स्वायत्तता, तकनीकी क्षमता और रणनीतिक संयम का परिचय दिया। “भारत लोकतंत्र की जननी है, जो सेवा के माध्यम से खुद को नवीनीकृत करता है, न कि नारों के माध्यम से”—यह पंक्ति पश्चिमी आलोचकों के लिए एक परिपक्व जवाब थी, जो भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को केवल उसके राजनीतिक विरोधों के माध्यम से आंकते हैं।
इस भाषण में पहले के मोदी की तुलना में एक सशक्त परंतु संयमित नेता की छवि उभरकर सामने आई। उन्होंने विपक्ष की आलोचना की, पाकिस्तान को चेतावनी दी, परन्तु अतिरंजना नहीं की। यह एक निर्णायक नेता की शैली थी, जो न केवल अपने आलोचकों को जवाब देता है, बल्कि पूरे देश को दिशा भी देता है।
संक्षेप में, यह भाषण केवल एक राजनीतिक उत्तर नहीं था—यह लोकतंत्र के प्रति जवाबदेही, राष्ट्रीय एकता, और भारत की वैश्विक गंभीरता का घोष था। प्रधानमंत्री ने याद दिलाया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ज़रूरी है, लेकिन ज़िम्मेदारी के बिना वह लोकतंत्र को कमजोर कर देती है। यह एक राजनेता की नहीं, बल्कि एक राष्ट्र-नायक की वाणी थी—जो न केवल संसद में, बल्कि देश और विश्व के विवेक में देर तक गूंजेगी।