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Delhi News : संघर्षविराम का मृगतृष्णा, भारत-पाक संबंधों और ट्रंप की भ्रमित कूटनीति की पड़ताल : डॉ. अनिल सिंह,

भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्षविराम, जो जम्मू-कश्मीर में...

Delhi News : भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्षविराम, जो जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमले और उसके बाद सीमा पर हुई तीव्र गोलाबारी की प्रतिक्रिया स्वरूप सामने आया, न केवल एक अस्थायी सैन्य विराम है, बल्कि एक बहुपरतीय कूटनीतिक घटना है।जिसे दोनों देशों ने अपनी-अपनी रणनीति के अनुसार परिभाषित और व्याख्यायित किया है।

डॉ. अनिल सिंह (लेखक)

युद्धविराम की अवधारणा: सैद्धांतिक बनाम व्यवहारिक दृष्टिकोण

लेखक डॉ. अनिल सिंह ने बताया कि सैद्धांतिक रूप से संघर्षविराम युद्ध के दौरान अस्थायी विराम होता है, जो मानवीय राहत या शांति वार्ता के लिए जगह बनाता है। किंतु भारत-पाक जैसे संबंधों में यह केवल विराम नहीं, बल्कि एक ‘रणनीतिक संधि’ का रूप ले लेता है। जहां दोनों पक्ष इसे अपने सामरिक हितों के अनुरूप ढालते हैं। भारत ने बार-बार स्पष्ट किया है कि वह संघर्षविराम का सम्मान तभी करेगा जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को जड़ से समाप्त किया जाए। यह कोई कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक स्पष्ट शर्त है: पहले आतंकवाद रुके, तभी कोई वार्ता संभव है।

पाकिस्तान की नीति: सामरिक विवशता या रणनीतिक चाल?

हालिया भारतीय वायु हमलों में पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों और हवाई अड्डों को भारी नुकसान हुआ है। पाकिस्तान के लिए संघर्षविराम, एक ‘शांति प्रयास’ नहीं बल्कि एक ‘रणनीतिक मजबूरी’ है। उपप्रधानमंत्री के स्तर पर की गई स्वीकारोक्ति से यह संकेत भी मिला कि पाकिस्तान अब सैन्य नहीं, कूटनीतिक विकल्पों पर विचार करने को विवश है।

ट्रंप की भूमिका: शांति के स्वघोषित अग्रदूत से निष्क्रिय पर्यवेक्षक तक

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया मंच X पर खुद को इस संघर्षविराम का सूत्रधार बताया। उन्होंने दावा किया कि उनकी पहल पर भारत और पाकिस्तान के बीच ‘पूर्ण संघर्षविराम’ हुआ। लेकिन कुछ ही समय में उन्हें अपना बयान वापस लेना पड़ा और स्वीकार करना पड़ा कि उन्होंने केवल ‘सहायता’ की, कोई प्रत्यक्ष वार्ता नहीं करवाई। यह घटनाक्रम बताता है कि वैश्विक नेता अक्सर कूटनीतिक परिदृश्यों को अपनी छवि निर्माण के लिए इस्तेमाल करते हैं, जबकि वास्तविक ज़मीनी स्थिति इससे कहीं अधिक जटिल होती है।

18 मई के बाद का परिदृश्य: अस्थिर विराम?

यद्यपि संघर्षविराम की घोषणा हो चुकी थी, फिर भी पाकिस्तान ने सप्ताहांत में गोलाबारी कर उसे तोड़ने का प्रयास किया। भारत ने स्पष्ट रूप से कड़ा रुख अपनाते हुए इसका करारा जवाब दिया।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की रणनीति अब कहीं अधिक स्पष्ट और निर्णायक हो गई है। किसी भी वार्ता का आधार केवल दो ही बिंदु होंगे: आतंकवाद की समाप्ति और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) की वैधता का प्रश्न।

यदि इस संघर्षविराम को स्थायित्व देना है, तो दोनों देशों को निम्नलिखित कदमों पर सहमति बनानी होगी:

1. विश्वसनीय विश्वास-निर्माण उपाय (CBMs), जैसे कि सैन्य संपर्क चैनल, निगरानी व्यवस्था और पारदर्शी संवाद।

2. आतंकी नेटवर्क का पूर्ण सफाया, विशेष रूप से जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों पर कार्रवाई।

3. अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ठोस भागीदारी, जो केवल बयानबाज़ी न होकर संरचनात्मक समर्थन पर आधारित हो।

निष्कर्ष: युद्ध की नहीं, निर्णायक नीति की ज़रूरत

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम की यह कड़ी हमें यह याद दिलाती है कि शांति की राह केवल गोलाबारी रोकने से नहीं बनती—बल्कि आतंकवाद, विश्वास की कमी और द्विपक्षीय छल-प्रपंच की नींव को तोड़ने से बनती है। ट्रंप की भूमिका से उपजा भ्रम इस बात का प्रतीक है कि दक्षिण एशिया को केवल ‘मध्यस्थता’ नहीं, बल्कि ईमानदारी से निभाई गई ज़िम्मेदारी की आवश्यकता है। आख़िरकार, स्थायी शांति तभी संभव है जब पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ ईमानदार कार्रवाई करे और भारत, एक मजबूत लेकिन जिम्मेदार शक्ति के रूप में, भविष्य के लिए कूटनीतिक संभावना को खुला रखे, बशर्ते राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता न हो।

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