NNMB Report 2025: ग्रामीण भारत में पांच गुना बढ़ा मोटापा, विशेषज्ञों ने दी चेतावनी

NNMB Report 2025: ग्रामीण भारत में पांच गुना बढ़ा मोटापा, विशेषज्ञों ने दी चेतावनी
जंक फूड, मीठे पेय और अव्यवस्थित जीवनशैली से बढ़ा खतरा, विशेषज्ञ बोले – सिर्फ डाइट नहीं, फिजिकल एक्टिविटी और स्ट्रेस मैनेजमेंट भी जरूरी
नई दिल्ली, कभी सिर्फ शहरी समस्या माने जाने वाला मोटापा (Obesity) अब ग्रामीण भारत में भी तेज़ी से पैर पसार रहा है। राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्यूरो (NNMB) की रिपोर्ट के अनुसार, बीते 37 वर्षों में ग्रामीण इलाकों में मोटापे के मामलों में पांच गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रिपोर्ट बताती है कि 1975-79 से 2010-12 के बीच ग्रामीण पुरुषों का औसत बीएमआई 18.4 से बढ़कर 20.2 और महिलाओं का बीएमआई 18.7 से बढ़कर 20.5 तक पहुंच गया। इसका मतलब है कि पुरुषों में ओवरवेट के मामले 2% से बढ़कर 10%, और महिलाओं में 3% से बढ़कर 13% हो गए हैं।
ऊर्जा की कमी और बढ़ता मोटापा – एक दोहरी चुनौती
रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण भारत में अब भी 35% पुरुष और महिलाएं ऊर्जा की कमी (Chronic Energy Deficiency) से पीड़ित हैं। यह अध्ययन 10 राज्यों के 120 गांवों में किए गए सर्वे पर आधारित है। हालांकि, दिलचस्प बात यह रही कि एकल परिवारों में मोटापा अपेक्षाकृत कम देखा गया। रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि मोटापा रोकने के लिए सिर्फ डाइट कंट्रोल पर्याप्त नहीं, बल्कि इसके साथ फिजिकल एक्टिविटी, हेल्दी ईटिंग और स्ट्रेस मैनेजमेंट भी बेहद जरूरी हैं।
विशेषज्ञों की राय – अव्यवस्थित जीवनशैली बनी मुख्य वजह
राष्ट्रीय पोषण संस्थान (NIN), हैदराबाद के पोषण सूचना एवं शिक्षा प्रमुख डॉ. सुब्बाराव एम. गवरवरपु के अनुसार, मोटापा बढ़ने के पीछे कई कारण हैं — जिनमें हाई-कैलोरी फास्ट फूड, मीठे पेय, कम शारीरिक गतिविधि, और जेनेटिक फैक्टर शामिल हैं। उन्होंने कहा, “किशोरावस्था और वयस्क उम्र में मोटापा न केवल टाइप-2 डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, और हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ाता है, बल्कि यह नींद में रुकावट, हड्डियों की कमजोरी, और प्रजनन क्षमता पर असर डाल सकता है।”
एनएनएमबी के आंकड़े आज भी नीतिगत रूप से अहम
डॉ. सुब्बा राव ने कहा कि एनएनएमबी की पुरानी रिपोर्टें भारत में पोषण की स्थिति का विश्वसनीय आकलन करती हैं। इन रिपोर्टों में 1975 से 2012 तक के आंकड़े शामिल हैं जिनमें बच्चों और वयस्कों में कुपोषण, बौनापन और मोटापा जैसे संकेतकों का विश्लेषण किया गया था। हालांकि अब यह ब्यूरो बंद हो चुका है, पर इसका डेटा आज भी पोषण नीति निर्माण में अहम भूमिका निभा रहा है।
नए सर्वे ‘संपदा’ से आएगा ताज़ा मूल्यांकन
उन्होंने आगे बताया कि हाल ही में ‘संपदा’ नामक एक राष्ट्रीय सर्वे किया गया है जिसमें देशभर में लोगों की खान-पान की आदतें, पोषण गुणवत्ता, और खाद्य सुरक्षा से जुड़े डेटा एकत्र किए गए हैं। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद भारत में मोटापे की असली तस्वीर सामने आने की उम्मीद है।
भारत में बदलती खान-पान संस्कृति ने बढ़ाया खतरा
डॉ. राव के मुताबिक, जंक फूड, मीठे पेय और प्रोसेस्ड फूड की उपलब्धता और कम कीमतों ने ग्रामीण इलाकों तक इन उत्पादों की खपत बढ़ा दी है। शारीरिक श्रम और पारंपरिक खान-पान की जगह अब पैकेज्ड और हाई-कैलोरी भोजन ने ले ली है। संयुक्त परिवारों में खान-पान की लापरवाही और शारीरिक निष्क्रियता के कारण मोटापे की समस्या और बढ़ गई है।
वैश्विक स्तर पर भी मोटापा तेजी से फैला
साल 1980 से 2020 के बीच विश्वभर में मोटापे की दर 6.4% से बढ़कर 12% हो गई। चीन में 1989 से 2011 के बीच पुरुषों का औसत बीएमआई 2.65 और महिलाओं का 1.90 अंक बढ़ा। वहीं बांग्लादेश में 1999 से 2014 के बीच महिलाओं में ओवरवेट के मामले चार गुना बढ़े।
भारत भी इस वैश्विक प्रवृत्ति से अछूता नहीं है — यहां पुरुषों में मोटापे के मामले लगभग चार गुना (400%) और महिलाओं में 91% तक बढ़े हैं।
स्वस्थ भारत की दिशा में जरूरी कदम
विशेषज्ञों का कहना है कि मोटापे से निपटने के लिए सरकारी नीतियों, शिक्षा और जनजागरूकता को साथ लाना होगा। स्कूल स्तर पर फिजिकल एजुकेशन, गांवों में हेल्थ कैंप्स, और सोशल मीडिया पर हेल्दी ईटिंग कैंपेन जैसे कदम देश में मोटापे के खिलाफ असरदार साबित हो सकते हैं।





