दिल्ली

मीनाक्षी लेखी, हर्षवर्धन, रमेश बिधूड़ी, प्रवेश सिंह वर्मा… दिल्ली के इन बड़े चेहरों को BJP ने बेटिकट क्यों कर दिया?

बीजेपी ने दिल्ली की सात में से पांच सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. मनोज तिवारी को छोड़ दें तो पार्टी ने पांच में से चार सीटों पर नए चेहरे मैदान में उतारे हैं. मीनाक्षी लेखी, डॉक्टर हर्षवर्धन, प्रवेश सिंह वर्मा और रमेश बिधूड़ी जैसे नेता बेटिकट हो गए हैं. पार्टी ने दिल्ली के इन बड़े नेताओं को बेटिकट क्यों कर दिया?

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लोकसभा चुनाव के लिए 195 उम्मीदवारों की भारी-भरकम लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की सात में से पांच सीटों के लिए भी उम्मीदवारों के नाम हैं. दिल्ली की पांच में से चार सीटों पर पार्टी ने इस बार नए चेहरों को मैदान में उतारा है. नॉर्थ ईस्ट दिल्ली सीट से मनोज तिवारी को छोड़ दें तो अब तक घोषित नामों में 2019 के चुनाव में जीते किसी भी चेहरे को पार्टी ने रिपीट नहीं किया है. विदेश राज्यमंत्री मंत्री मीनाक्षी लेखी, रमेश बिधुड़ी और प्रवेश सिंह वर्मा के साथ ही डॉक्टर हर्षवर्धन जैसे दिग्गज नेता भी अपना टिकट नहीं बचा पाए.

बीजेपी की लिस्ट आने के बाद से ही इसे लेकर चर्चा का बाजार गर्म है. मीनाक्षी लेखी, हर्षवर्धन, रमेश बिधुड़ी और परवेश सिंह वर्मा जैसे नेताओं के टिकट कटने को लेकर कोई बयानबाजियों को वजह बता रहा है तो कोई परफॉर्मेंस को कमजोर कड़ी. लगातार दो बार सांसद इन नेताओं के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी की बात भी हो रही है तो कार्यकर्ताओं से जुड़ाव को भी मानक बताया जा रहा. बीजेपी की राजनीति का जो सांचा रहा है, उसे देखते हुए ऐसा लगता नहीं है कि बात बस इतनी सी ही है. सवाल यह उठ रहे हैं कि फिर इन नेताओं के टिकट काटने की पीछे पार्टी की रणनीति क्या है?

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि दिल्ली के लिए बीजेपी के उम्मीदवारों की लिस्ट में मुझे विधानसभा चुनाव की तैयारी नजर आ रही है. दिल्ली बीजेपी यूनिट अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रही है, धरना-प्रदर्शन कर रही है लेकिन लोकल लीडरशिप में बड़े चेहरों के अभाव से उसका उतना इम्पैक्ट पड़ता नजर नहीं आ रहा जितनी पार्टी को उम्मीद है. एक बड़ा कारण दिल्ली बीजेपी में केजरीवाल को चुनौती दे पाने वाले बड़े कद के नेता का अभाव भी है. पिछले कुछ दिनों में शराब घोटाले और अन्य मुद्दों को लेकर जिस तरह से आम आदमी पार्टी के दामन पर कथित भ्रष्टाचार के दाग लगे हैं, बीजेपी की रणनीति अब उसे और आगे ले जाने की होगी लेकिन उसके लिए बड़े कद का नेता भी होना चाहिए.

दिल्ली चुनाव में अभी करीब एक साल का समय बचा है. बीजेपी की जिस तरह की कार्यशैली रही है, पार्टी उन राज्यों और उन सीटों पर फोकस कर चुनाव आने का इंतजार किए बिना तैयारी में जुट जाती है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी लगातार दूसरी बार प्रचंड बहुमत के साथ सरकार चला रही है. ऐसे में 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी और कथित शराब घोटाले, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे वरिष्ठ मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं तो वहीं संजय सिंह जैसे फायरब्रांड नेता भी जेल में हैं.

बीजेपी को 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी और केजरीवाल सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 1998 से चला आ रहा सत्ता का सूखा समाप्त होने की उम्मीद नजर आ रही है. बीजेपी की यह उम्मीद आधारहीन भी नहीं. 2015 के विधानसभा चुनाव में 32.3 फीसदी वोट शेयर के साथ महज तीन सीटों पर सिमट गई बीजेपी ने 2020 में 38.7 फीसदी वोट शेयर के साथ आठ सीटें जीत ली थीं. बीजेपी का वोट शेयर 2015 के मुकाबले छह फीसदी से अधिक बढ़ा तो वहीं आम आदमी पार्टी के वोट शेयर में भी 2015 के मुकाबले मामूली इजाफा हुआ था. 2015 में जहां आम आदमी पार्टी को 54.5 फीसदी वोट मिले थे वहीं 2020 में बढ़कर ये 55 फीसदी पर पहुंच गया था.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी ईडी की रडार पर हैं और बीजेपी नेतृत्व को लग रहा है कि अगर लोकल लीडरशिप मजबूत रही तो आम आदमी पार्टी को सत्ता से हटाया जा सकता है. बीजेपी ऐसी पार्टी है जो किसी नेता को कभी केंद्र से राज्यों की राजनीति में भेज देती है तो कभी राज्यों से नेताओं को दिल्ली में लाकर एक्टिव कर देती है.

बीजेपी की इमेज भूमिका में बदलाव करते रहने वाली पार्टी की है. अब सवाल यह भी है कि हर्ष वर्धन को तो पार्टी दिल्ली की राजनीति में भी आजमा चुकी है. फिर उनके साथ रमेश बिधुड़ी, प्रवेश सिंह वर्मा के टिकट काटने के पीछे क्या रणनीति हो सकती है?  इसे समझने से पहले इसे लेकर जो बातें चल रही हैं, उनकी चर्चा भी जरूरी है. दरअसल, मीनाक्षी लेखी का टिकट कटने के बाद हाल ही में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हुई जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी ने इसे किसानों के अपमान से जोड़ दिया.

आरएलडी के प्रवक्ता रोहित अग्रवाल ने यह कहा था कि किसानों का अपमान करने वाली मीनाक्षी लेखी का टिकट कटा. दरअसल, मीनाक्षी लेखी ने ‘किसान संसद’ में एक मीडियाकर्मी पर हुए कथित हमले को लेकर कहा था कि वे किसान नहीं, मवाली हैं. ये आपराधिक कृत्य है. इस बयान को लेकर मीनाक्षी लेखी विपक्ष और किसान नेताओं के निशाने पर आ गई थीं. विवाद बढ़ा तो उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया था.

इसी तरह रमेश बिधूड़ी का टिकट कटने के लिए संसद में बसपा सांसद दानिश अली पर उनकी टिप्पणी को आधार बताया जा रहा है. प्रवेश सिंह वर्मा को टिकट नहीं देने के पीछे दिल्ली दंगों के समय हेट स्पीच को वजह बताया जा रहा है. लेकिन इस तरह की चर्चा इसलिए भी बेदम नजर आती है क्योंकि पार्टी ने रमेश बिधूड़ी को उसी समय राजस्थान चुनाव में टोंक का प्रभारी बना दिया था जब उनके बयान पर सियासी घमासान मचा था.

रमेश बिधूड़ी गुर्जर जाति से आते हैं. दिल्ली में गुर्जर समाज की अनुमानित आबादी करीब सात फीसदी है. रमेश बिधूड़ी अपने बयानों से भले ही विवादों में रहते हों, गुर्जर समाज में उनकी पैठ मजबूत मानी जाती है. अगर उन्हें विधानसभा चुनाव में किसी सीट से मैदान में उतारा जाता है तो इसका संदेश न सिर्फ उस सीट, बल्कि आसपास की सीटों पर भी जाएगा. इसी तरह प्रवेश सिंह वर्मा पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं. प्रवेश भी अपने बयानों से विवादों में रहते हैं. अब अगर बीजेपी इन नेताओं को दिल्ली चुनाव में उम्मीदवार बनाने की सोच रही है तो साफ है कि रणनीति जनता को एक संदेश देने की ही होगी. बड़े नेताओं, सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारने का यह फॉर्मूला हालिया चुनावों में सफल भी रहा था.

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