
नई दिल्ली, 15 जुलाई : दुर्घटना व अन्य कारणों से अपना पैर गंवा चुके दिव्यांग लोगों को चलने -फिरने में मदद करने वाला कृत्रिम पैर या प्रोस्थेसिस अब 20 हजार रुपये में भी मिल सकेगा।
दरअसल, डीआरडीओ की रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला, हैदराबाद और एम्स, बीबीनगर ने एक ऐसा कृत्रिम पैर विकसित किया है जो ना सिर्फ किफायती है। बल्कि आम कृत्रिम पैर के मुकाबले हल्का, मजबूत और टिकाऊ भी है। स्वदेशी तकनीक से निर्मित नकली पैर दो लाख रुपये में मिलने वाले नकली पैर के मुकाबले 10% तक सस्ता भी है। यानि यह नकली पैर दिव्यांगों को 20 हजार रुपये में उपलब्ध होगा जिससे पैर के विच्छेदन वाले लोगों को चलने -फिरने में आसान मदद मिल सकेगी।
इस कार्बन फुट प्रोस्थेसिस का अनावरण प्रतिष्ठित वैज्ञानिक एवं डीआरडीएल के निदेशक डॉ. जी.ए. श्रीनिवास मूर्ति और एम्स बीबीनगर के कार्यकारी निदेशक डॉ. अहंतेम संता सिंह ने सोमवार को किया। उन्होंने बताया कि यह नकली पैर अंतरराष्ट्रीय मॉडलों के बराबर है जो क्षमता प्रदर्शन और बायोमैकेनिकल परीक्षण में खरे उतरे हैं। यह 125 किलोग्राम तक के भार को वहन कर सकता है। अलग-अलग वजन वाले दिव्यांगों के मद्देनजर तीन प्रकार के नकली पैर विकसित किए गए हैं।