नई दिल्ली, 9 जुलाई: रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) एक मूक महामारी है जो हमारे राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभर रही है। एएमआर के कारण वर्ष 2019 में 2,97,000 मौतें दर्ज की गईं। वहीं, एएमआर से जुड़े मामलों में 10,42,500 मौतें हुईं। इस संकट से निपटने के लिए एक ठोस राष्ट्रीय प्रयास की आवश्यकता है।
यह बातें इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एएमआर अध्यक्ष डॉ. नरेंद्र सैनी ने मंगलवार को कहीं। इस दौरान नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल, डॉ. आर वी अशोकन, डॉ अनिल कुमार नायक और डॉ. वेंकटेश कार्तिकेयन प्रमुख रूप से मौजूद रहे। दरअसल, आईएमए ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर चिकित्सा पेशेवरों का राष्ट्रीय गठबंधन (एनएएमपी-एएमआर) बनाया है। जिसमें देश भर से 52 चिकित्सा विशेषज्ञ संगठन व संघ शामिल हैं।
इस अवसर पर डॉ वीके पॉल ने कहा एएमआर की उपेक्षा विकसित भारत को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है, जिससे हमारी समृद्धि, जीडीपी और विभिन्न स्वास्थ्य पहलू प्रभावित होंगे। सरकार एएमआर के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपी) 2.0 विकसित कर रही है। इसे राष्ट्रीय आंदोलन में बदलने के लिए सभी संगठनों को एक बैनर के नीचे एकजुट होने की जरुरत है। डॉ पॉल ने कहा, एएमआर से होने वाली मृत्यु की दर को कम करने के लिए मनुष्यों और जानवरों दोनों में एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित उपयोग पर अंकुश लगाएं।
डॉ. अतुल गोयल ने कहा, यह समझना सबसे जरुरी है कि एंटीबायोटिक्स का उपयोग कब और कैसे करना है। हमारी चिकित्सा शिक्षा को मजबूत करने से चिकित्सा पद्धति की गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद मिलेगी। डब्ल्यूएचओ भारत की उप प्रमुख पेडेन ने एएमआर को वैश्विक ख़तरा बताया जो 2050 तक मौत के संभावित प्रमुख कारण के रूप में उभर सकता है। उन्होंने कहा, प्रत्येक मेडिकल एसोसिएशन और संगठन को एएमआर का चैंपियन बनने का प्रयास करना चाहिए।
क्या है एएमआर?
रोगाणुरोधी प्रतिरोध या एएमआर तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक, और परजीवी जैसे रोगाणु, रोगाणुरोधी दवाओं के असर को नकार देते हैं। इन दवाओं में एंटीबायोटिक्स, एंटीफ़ंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल, और एंटीहेलमिंटिक्स शामिल हैं। जब ऐसा होता है, तो दवाएं अप्रभावी हो जाती हैं और संक्रमण का इलाज करना मुश्किल या असंभव हो जाता है। इससे बीमारी फैलने, गंभीर बीमारी, विकलांगता, और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। एएमआर विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को कभी-कभी ‘सुपरबग्स’ भी कहा जाता है।