
आईबीडी से पीड़ित रोगी न करें संकोच, बेझिझक बताएं रोग
-मल संबंधी समस्याओं को लेकर विशेषज्ञ से करें परामर्श, शुरू करें उपचार
नई दिल्ली 18 मई : सूजन आंत्र रोग या इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) पाचन स्वास्थ्य से संबंधित समस्या है। इसके शुरुआती लक्षणों में पेट में दर्द, ऐंठन और सूजन के अलावा अक्सर दस्त होने या शौच के दौरान ब्लीडिंग होने की समस्या शामिल है। इलाज में कोताही बरतने से आंत का कैंसर हो सकता है।
यह जानकारी एम्स दिल्ली के जीआई सर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ. निहार रंजन दास ने विश्व आईबीडी दिवस 19 मई की पूर्व संध्या पर दी। उन्होंने बताया कि आईबीडी पाचन तंत्र को प्रभावित करता है जिसका संबंध आंत और मल त्याग से होता है। इसमें वजन घटना और एनीमिया जैसे लक्षण भी पाए जाते हैं। इस वर्ष डब्ल्यूएचओ ने 2025 की थीम ‘आईबीडी की कोई सीमा नहीं है: वर्जनाओं को तोड़ना, इसके बारे में बात करना’ विषय को बनाया है। इसका उद्देश्य आईबीडी से प्रभावित लोगों को समाज से अलग-थलग महसूस नहीं होने देना और उन्हें उपचार की सही जानकारी उपलब्ध कराने के प्रयास करना है।
डॉ दास ने कहा, आईबीडी की समस्या देश में तेजी से बढ़ रही है जिसके पीछे जंक फूड का सेवन और खराब लाइफ स्टाइल प्रमुख कारण है। ये बीमारी दो दशक से देश में पाई जा रही है। इससे पहले ये पश्चिमी देशों में पाई जाती थी। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को पतली लैट्रिन, लैट्रिन में खून आना या आंव गिरना जैसी समस्या होती है। अगर रोगी को 15 दिन से ज्यादा दस्त या पतली लैट्रिन आने और ब्लीडिंग होने की समस्या होती है तो वह इसे हल्के में ना लें और डॉक्टर से परामर्श करें। इस दौरान रोगी अपने रोग के लक्षण ना छिपाएं और बिना संकोच डॉक्टर को बताएं ताकि उसे उचित इलाज मिल सके।
डॉ दास के मुताबिक आईबीडी आनुवांशिक भी हो सकता है, जिन लोगों के माता-पिता या घर में किसी को आईबीडी की दिक्कत रही है, उनमें आईबीडी विकसित होने का जोखिम हो सकता है। इसके अलावा पाचन तंत्र में बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण के कारण प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया ट्रिगर हो सकती है, जिसके कारण भी पाचन तंत्र में सूजन आ जाती है। आईबीडी के लक्षण अलग-अलग होते हैं और वे व्यक्ति से व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं। कुछ सामान्य लक्षणों में पेट दर्द, दस्त, थकान, वजन कम होना और बुखार शामिल हैं।
दो तरह का होता है आईबीडी
आईबीडी एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है जो आंतों में सूजन का कारण बनता है। ये दो तरह का होता है। क्रोहन और अल्सरेटिव कोलाइटिस। क्रोहन रोग पाचन तंत्र में कहीं भी हो सकता है लेकिन आमतौर पर आंत के निचले हिस्से को प्रभावित करता है।ये आंत के अंदर तक जख्म बना देता है जो आगे जाकर सिकुड़न व ब्लीडिंग बढ़ा देता है और न्युट्रीशन को कम कर देता है जबकि अल्सरेटिव कोलाइटिस केवल बड़ी आंत को प्रभावित करता है। इसमें बड़ी आंत (कोलन) और मलाशय की परत में सूजन और घाव (अल्सर) हो जाता है। इसका इलाज दवाओं से संभव है। इसके लिए मरीज को बायोलॉजिकल और स्टेरॉयड वाली दवाएं दी जाती हैं।
10 से 15 फीसदी मामलों में सर्जरी विकल्प
डॉ. निहार रंजन दास ने कहा, अगर मरीज को दवाओं से आराम नहीं आता है ब्लीडिंग और अन्य दिक्कतें बनी रहती है तो घबराएं नहीं। इसके लिए सर्जरी का विकल्प मौजूद है। इसमें रोगी की बड़ी आंत को निकाल दिया जाता है और उसे रीकंस्ट्रक्ट किया जाता है। यानि आंत को दोबारा बनाकर लगाया जाता है। रोग की स्थिति के मद्देनजर कभी -कभी ये सर्जरी तीन चरणों में भी करनी पड़ती है। लेकिन मरीज ठीक हो जाता है।
कैसे करें बचाव ?
जंक फूड का सेवन न करें।
रोगी की स्थिति के आधार पर दवाइयों और लाइफस्टाइल में बदलाव के माध्यम से इसे कंट्रोल किया जा सकता है।
खूब सारे तरल पदार्थों का सेवन करें।
नियमित रूप से व्यायाम करें।
यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे छोड़ दें।
अगर आपको कुछ समय से पेट में दिक्कत हो रही है तो इस बारे में किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।