
New Delhi : (पूजा मक्कड़, पब्लिक हेल्थ कम्युनिकेटर) जब दिल की बीमारी के नाम पर लोग घबरा जाते हैं, तब एक नाम उनके विश्वास की डोर थामे खड़ा होता है डॉ. अशोक सेठ। 40 वर्षों से अधिक का अनुभव, हजारों सफल एंजियोप्लास्टीज़ और लाखों दिलों की धड़कनों को नया जीवन देने वाले इस डॉक्टर की कहानी अपने-आप में प्रेरणा है। लेकिन उनका रास्ता सिर्फ सफलता की सीढ़ियाँ नहीं था, उसमें संघर्ष, अस्वीकार, नस्लभेद और अंततः करुणा से भरा विज्ञान था। डॉ. अशोक सेठ इस समय दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्टस हार्ट इंस्टीट्यूट के चेयरमैन हैं। दुनिया के जाने माने दिल के डॉक्टरों में इनका नाम शुमार होता है। पद्म श्री, पद्म भूषण और बीसी रॉय अवार्ड जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़े जा चुके हैं। लेकिन उनके डॉक्टर बनने के सफर में कई बाधाएं सामने आई। गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट यानी पाचन तंत्र के डॉक्टर बनते बनते डॉ सेठ दिल के नामी डॉ बने और आज दिल की बीमारी के हर नए इलाज को देश में लाने के काम में लगे हैं।
शुरुआती ज़िंदगी जब डॉक्टर बनना सपना नहीं, मिशन था
डॉ. अशोक सेठ के पिता एक टीबी विशेषज्ञ थे। घर में मरीजों की सेवा और ठीक होने पर मरीज जब उनके पिता को दुआएं देकर जाते और खुश होते तो इसका उन पर गहरा असर हुआ। वे बताते हैं कि बचपन से ही डॉक्टर बनने की इच्छा उनके अंदर थी। पर उस इच्छा को पूरा करना इतना आसान नहीं था। जब उन्होंने मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए आवेदन किया, तो उन्हें तीन बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। यह एक युवा छात्र के लिए बहुत बड़ा धक्का था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अंततः उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में दाख़िला मिला और यहीं से उनके सपनों ने उड़ान भरनी शुरू की।
AMU में ही मिली निजी जीवन की साथी
डॉ अशोक सेठ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे। तभी उनकी मुलाकात पूनम शुक्ला से हुई जो आगे चलकर उनकी हमसफर और जीवन साथी बनी। वे आज डॉ पूनम शुक्ला सेठ के तौर पर जानी जाती हैं। उनसे मिलने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं हैं। दरअसल डॉ पूनम शुक्ला के पिता प्रोफेसर टी शुक्ला उस समय अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के नेत्र विज्ञान इंस्टीट्यूट के चेयरमैन थे। वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जेएन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल भी रहे, जहां से डॉ अशोक सेठ ने मेडिकल की पढ़ाई की है। डॉ सेठ हल्के फुल्के अंदाज़ में बताते हैं कि प्रिंसिपल की बेटी से प्यार का इजहार करने के लिए जो मजबूत दिल चाहिए होता है वो उस समय भी उनके पास था। डॉ. पूनम शुक्ला सेठ एक साइकोलॉजिस्ट के तौर पर फोर्टिस एस्कॉर्टस इंस्टीट्यूट से जुड़ी हुई हैं और सोशल वर्क में सक्रिय रहती हैं।
जब प्रतिभा ने रिजेक्शन को मात दी
AMU में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने Anatomy में गोल्ड मेडल जीतकर यह दिखा दिया कि काबिलियत को अवसर की ही आवश्यकता होती है। यही गोल्ड मेडल उन्हें आगे इंग्लैंड ले गया, जहां से उन्होंने दिल की बीमारी के इलाज हो रहे नए रिसर्च समझे और वहां के विशेषज्ञों के साथ उसे सीखा।
इंग्लैंड में नस्लभेद और भारत लौटने का फैसला
इंग्लैंड में रहते हुए उन्हें नस्लभेद का सामना करना पड़ा। वे बताते हैं, “कई बार मरीज सिर्फ इसलिए इलाज नहीं कराना चाहते थे क्योंकि मैं भारतीय था।” यह अनुभव कड़वा ज़रूर था, लेकिन उनके हौसले को कमजोर नहीं कर सका। इसी दौरान उनकी मां बीमार पड़ गईं, और उन्होंने अपनी अंतरराष्ट्रीय मेडिकल प्रैक्टिस छोड़कर भारत लौटने का फैसला किया, यह वो मोड़ था जिसने उन्हें भारत के लाखों दिलों से जोड़ दिया।
जब एक दिन में की 45 एंजियोप्लास्टी
भारत लौटने के बाद डॉ. सेठ ने Interventional Cardiology में महारत हासिल की, यानी ऐसी कार्डियोलॉजी जहां बिना चीर-फाड़ के दिल की सर्जरी संभव हो। वे बताते हैं कि एक बार उन्होंने एक ही दिन में 45 मरीजों की एंजियोप्लास्टी की, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। “आज दिल की बीमारी का इलाज इस हद तक विकसित हो गया है कि एक इंजेक्शन से कोलेस्ट्रॉल तक कंट्रोल किया जा सकता है।” डॉ सेठ ने बताया कि हार्ट अटैक के 75% मरीजों को बिना चीर फाड़ के ठीक किया जा सकता है। स्टेंट लगाने की तकनीक ने दिल की बीमारी के इलाज को आसान कर दिया है। लेकिन अब इलाज में हो रही क्रांति आगे बढ़ रही है। अब ऐसे इंजेक्शन बनाए जा रहे हैं जो ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्राल की दवाओं का विकल्प बन सकते हैं। मरीज रोज दवा लेने के झंझट से बच पाएगा। इस पर विदेशों में रिसर्च चल रही है और इसी वर्ष ये इंजेक्शन इस्तेमाल में लाए जा सकेंगे। हालांकि भारत के लिहाज से इंजेक्शन महंगे हो सकते हैं।
नए डॉक्टरों के लिए संदेश
डॉ. सेठ यह भी कहते हैं कि आज की युवा पीढ़ी मेडिकल प्रोफेशन को लेकर हिचकिचा रही है। वे इस बदलाव के पीछे कई कारण बताते हैं:
– 10–15 साल की लंबी पढ़ाई और ट्रेनिंग
– तनावपूर्ण जीवन और निजी समय की कमी
– अन्य करियर ऑप्शन्स की तुलना में आर्थिक असमानता
वह कहते हैं, “मेडिकल सिर्फ करियर नहीं, सेवा है। अगर सिर्फ पैसे या ग्लैमर के लिए आओगे तो टूट जाओगे।” डॉ. सेठ अपने परिवार को प्राथमिकता देते हैं। वह रोज़ सुबह योग, सैर और पढ़ाई के लिए समय निकालते हैं। वे कहते हैं, “अगर आप खुद स्वस्थ नहीं रहेंगे तो किसी और को क्या स्वस्थ करेंगे?” “हर मरीज को सिर्फ एक केस की तरह मत देखो, उसे एक इंसान की तरह देखो। तब ही तुम सच्चे डॉक्टर कहलाओगे।” वह युवा डॉक्टरों को सीख देते हैं कि तकनीक ज़रूरी है, लेकिन संवेदना उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है। मरीज को पूरा समय देकर जब तसल्ली से आप उसकी बात सुनेंगे तो उसकी आधी बीमारी आप ठीक कर पाएंगे। मरीज और डॉक्टर के बीच पैसे से पहले भरोसे का रिश्ता होना बहुत जरुरी है।