
New Delhi (मिताली चंदोला, एडिटर, स्पेशल प्रोजेक्ट्स) : दिल्ली हाईकोर्ट ने समीर वानखेड़े के प्रमोशन मामले में केंद्र सरकार को करारा झटका देते हुए उस पर ₹20,000 का जुर्माना लगाया है। अदालत ने कहा कि सरकार ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया, जो न्यायिक प्रक्रिया के साथ गंभीर खिलवाड़ है।
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की बेंच ने केंद्र की रिव्यू याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता (केंद्र) ने अदालत के समक्ष सभी तथ्य ईमानदारी से पेश नहीं किए। यह मामला आईआरएस अधिकारी समीर वानखेड़े के प्रमोशन से जुड़ा है, जिन्हें ज्वाइंट कमिश्नर के पद पर पदोन्नति देने का आदेश पहले ही केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) दे चुका था।
हाईकोर्ट ने पाया कि जब केंद्र ने अपनी समीक्षा याचिका दाखिल की, उससे पहले ही CAT ने वानखेड़े के खिलाफ चल रही विभागीय कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद यह तथ्य अदालत से छिपाया गया। कोर्ट ने इस रवैये को “गंभीर चूक” बताया और कहा कि ऐसा आचरण किसी भी सरकारी पक्ष से स्वीकार्य नहीं है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब सरकार अदालत में पेश होती है, तो उससे पूर्ण पारदर्शिता और निष्पक्षता की अपेक्षा की जाती है। तथ्यों को छिपाना न केवल न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है, बल्कि अदालत का समय भी व्यर्थ करता है।
न्यायालय ने रिव्यू याचिका को खारिज करते हुए केंद्र सरकार को 20,000 बतौर जुर्माना भरने का निर्देश दिया।
यह फैसला सरकार को यह याद दिलाता है कि न्यायालय के समक्ष सच्चाई छिपाने की कोई गुंजाइश नहीं है — और ईमानदारी ही न्याय की पहली शर्त है।