नई दिल्ली, 2 जनवरी : रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को तकनीकी ‘इको-सिस्टम’ के साथ तालमेल बैठाते हुए आगे बढ़ने और बदलते समय की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद तैयार करने चाहिए।
यह बात रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने डीआरडीओ के 67वें स्थापना दिवस के अवसर पर वरिष्ठ वैज्ञानिकों और अधिकारियों से बातचीत के दौरान कही। उनके साथ रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत भी मौजूद रहे। इस अवसर पर रक्षा मंत्री ने लंबी दूरी की हाइपरसोनिक एंटी शिप मिसाइल की डिजाइन टीम को भी सम्मानित किया।
रक्षा मंत्री ने सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक तकनीकों तथा उपकरणों से लैस करके देश की स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करने और निजी क्षेत्र के साथ सहयोग के माध्यम से रक्षा क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए डीआरडीओ की प्रशंसा भी की। साथ ही उम्मीद जताई कि ‘सुधारों के वर्ष 2025′ में डीआरडीओ निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।उन्होंने वैज्ञानिकों से तकनीकी रूप से उन्नत देशों द्वारा अपनाए जा रहे उत्पादों और प्रक्रियाओं पर नजर रखने तथा डीआरडीओ को दुनिया के सबसे मजबूत अनुसंधान एवं विकास संगठनों में से एक बनाने के उद्देश्य से विशिष्ट तकनीक विकसित करने का आग्रह किया। राजनाथ सिंह ने कहा कि डीआरडीओ की प्रत्येक प्रयोगशाला को दो-तीन महत्वपूर्ण परियोजनाओं की पहचान करनी चाहिए और उन्हें इस वर्ष पूरा करना चाहिए। ताकि ‘अगले स्थापना वर्ष तक, हमारे पास ऐसी 100 परियोजनाएं हों, जो पूरी की जा चुकी हों।’
सिंह ने निजी क्षेत्र के साथ सहयोग बढ़ाने की दिशा में डीआरडीओ के प्रयासों की सराहना की, जिसमें संगठन द्वारा अपनी तकनीकें प्रदान करना और अपने पेटेंट तक मुफ्त पहुंच प्रदान करना शामिल है। उन्होंने संगठन से ऐसे और क्षेत्रों की पहचान करने का आग्रह किया, जो निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ा सकते हैं क्योंकि एक राष्ट्र तभी प्रगति कर सकता है जब सभी हितधारक मिलकर काम करें। उन्होंने कहा, डीआरडीओ अन्य समान संगठनों, शिक्षाविदों, उद्योग आदि के लिए उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकता है, जो देश में तकनीकी क्रांति लाने में मदद कर सकते हैं। एक नया इको-सिस्टम बनाया जा सकता है, जो रक्षा क्षेत्र के साथ-साथ दोहरी प्रौद्योगिकी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए नागरिकों के जीवन में भी बड़ा बदलाव ला सकता है।’