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नई दिल्ली: ‘स्क्रीन’ के प्रयोग से स्कूली बच्चों की ‘एकाग्रता क्षमता’ में भारी गिरावट

नई दिल्ली: -स्कूली बच्चों की मदद के लिए सीबीएसई को भेजा मेट प्रोजेक्ट शुरू करने का प्रस्ताव

नई दिल्ली, 15 अप्रैल : मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटॉप और कंप्यूटर पर लगातार स्क्रॉल करने की आदत से जहां स्कूली बच्चों की आंखों को नुकसान पहुंच रहा है। वहीं बच्चों की ध्यान लगाकर काम करने (पढ़ाई -लिखाई, खेलकूद व अन्य गतिविधियां) की क्षमता या एकाग्रता की अवधि भी प्रभावित हो रही है।

एम्स दिल्ली के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. नंद कुमार ने मंगलवार को एक प्रेसवार्ता में बताया कि बच्चों की घटती एकाग्रता और किशोरावस्था में हो रहे मानसिक व शारीरिक बदलावों के मद्देनजर मेंटल हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया देश भर के स्कूलों में खास प्रोजेक्ट मेट शुरू करने जा रहा है। इसका उद्देश्य बच्चों को खेल-खेल में मानसिक रूप से स्वस्थ बनाना है। इस अवसर पर डॉ दीपिका, डॉ निशात अहमद और डॉ विश्वनाथ आचार्य भी मौजूद रहे।

डॉ. नंद कुमार ने कहा, आजकल बच्चे इंटरनेट पर रील, यूट्यूब वीडियो, मैसेजिंग आदि के चलते स्क्रीन पर ज्यादा समय बिता रहे हैं। वह कई- कई घंटे स्क्रॉल करते रहते हैं जिससे उनकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता लगातार घटती जा रही है। उन्होंने एक शोध के हवाले से बताया कि बीते कुछ वर्ष पूर्व बच्चों के एकाग्र होकर कार्य करने की समय अवधि 30 मिनट थी जो घटकर महज 7- 9 सेकंड हो गई है। यानि अब महज 9 सेकंड बाद ही बच्चे का ध्यान भटकने लगता है। यह ‘गोल्ड फिश’ की एकाग्रता क्षमता से भी कम है।

उन्होंने कहा, ऐसे में ‘प्रोजेक्ट मेट’ बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने में मदद कर सकता है। हमारी कोशिश है कि जैविक और मानसिक विकास को एक साथ जोड़ा जाए, ताकि बच्चे खुद को बेहतर समझ सकें और मानसिक दबाव से बच सकें। डॉ कुमार ने बताया कि इस प्रोजेक्ट की शुरुआत मेघालय के कुछ स्कूलों में की जा चुकी है, जहां इसके अच्छे नतीजे देखने को मिले हैं। अब इसे सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूलों में शुरू करने का प्रस्ताव दिया गया है। प्रोजेक्ट के तहत कक्षा 6, 7 और 8 के छात्रों के लिए चार अलग-अलग वर्कशॉप आयोजित की जाएंगी। हर वर्कशॉप की अवधि दो घंटे की होगी।

ब्रेन और ब्रीदिंग
पहली वर्कशॉप की शुरुआत प्राणायाम को खेल की तरह पेश कर बच्चों को सांस पर ध्यान केंद्रित करने से होगी। इसे ब्रीदिंग के जरिए दिलचस्प बनाया गया है। इसमें बच्चों को यह भी बताया जाएगा कि किशोरावस्था में उनके दिमाग में क्या बदलाव होते हैं और कैसे इससे उनकी सोच और भावनाएं प्रभावित होती हैं।

रिश्ते और मैं
दूसरी वर्कशॉप में बच्चों को यह समझाया जाएगा कि अपने आप से और दूसरों से रिश्ता कैसा होना चाहिए, जैसे दोस्तों के साथ, माता-पिता और घरवालों के साथ उनके संबंध कैसे मजबूत बनाए जा सकते हैं। उन्हें कम से कम 5 अच्छे दोस्त बनाने के लिए प्रेरित किया जाएगा।

हैप्पी गट, हैप्पी ब्रेन
तीसरी वर्कशॉप हैप्पी गट, हैप्पी ब्रेन पर आधारित होगी। इसमें पाचन तंत्र और मस्तिष्क के संबंध को समझाया जाएगा। डॉ. नंद कुमार मुताबिक आंत को दूसरा मस्तिष्क कहा जाता है क्योंकि 90% सेरोटोनिन (हैप्पी हार्मोन) आंत में ही बनता है और मस्तिष्क में सिर्फ 10% बनता है। इससे बच्चों को यह समझाया जाएगा कि अच्छा खान-पान कैसे मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।

डिजिटल गैजेट निगरानी
चौथी वर्कशॉप में अभिभावकों और परिजनों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उन्हें बच्चों के डिजिटल गैजेट या मोबाइल फोन की निगरानी के लिए जागरूक किया जाएगा। इससे वह जान सकेंगे कि बच्चे क्या देख रहे हैं और कहां नियंत्रण की आवश्यकता है ? डॉ. नंद कुमार ने कहा, इस कार्यक्रम को पूरे देश के स्कूलों में लागू किया जाए तो यह बच्चों की मानसिक सेहत सुधारने में अहम भूमिका निभा सकता है।

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