नई दिल्ली, 19 सितम्बर : ओरल बीमारियां भले ही जानलेवा न हों, लेकिन वे जीवन की गुणवत्ता को गहराई से प्रभावित करती हैं। लगभग 85% ओरल समस्याएं जागरूकता, प्रिवेंटिव रिसर्च और तकनीक के माध्यम से रोकी जा सकती हैं। आज जीवन स्तर में सुधार हो रहा है लेकिन ओरल हेल्थ के बिना वेलनेस अधूरा है।
यह बातें दंत चिकित्सक और गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. महेश वर्मा ने शुक्रवार को आईएडीआर के सम्मेलन में कहीं। वर्मा ने कहा, ओरल हेल्थ को लेकर हमारी चुनौती बड़ी है-भारत के करोड़ों लोग या तो दंत चिकित्सा तक पहुंच नहीं पाते या उसे अफोर्ड नहीं कर पाते। तकनीक और नवाचार के इस अंतर को कम करना जरूरी है। इसके लिए 36 अलग-अलग क्षेत्रों में दंत शोध किया जा सकता है, जिसमें पुनर्जनन उपचार, मृत ऊतकों को पुनर्जीवित करने, मटेरियल साइंसेज और पब्लिक हेल्थ शामिल है। ये इसे हेल्थकेयर में सबसे विविध और असरदार शोध क्षेत्रों में से एक बनाता है। तीन दिवसीय इस सम्मेलन में 600 से अधिक प्रतिनिधि, भाग ले रहे हैं। जिनमें 20 देशों से 150 अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागी शामिल हैं। सम्मेलन का मुख्य फोकस है -ओरल और क्रैनियोफेशियल साइंसेज में शोध आधारित सहयोग को बढ़ावा देना।
डॉ. क्रिस्टोफर फॉक्स ने कहा,ओरल बीमारियां दुनिया भर में 3.7 अरब से अधिक लोगों को प्रभावित करती हैं, जिससे यह विश्व की सबसे आम स्वास्थ्य समस्या बन चुकी हैं। लेकिन फिर भी इन्हें अन्य बीमारियों की तुलना में कम महत्व दिया जाता है। ओरल हेल्थ केवल कैविटी या मसूड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पोषण, आत्मविश्वास और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों से गहरे जुड़ी है। डॉ. पामेला येलिक ने कहा, मैंने अपने रिसर्च में देखा है कि जेनेटिक असमानताओं और री- जेनेरेटिव थेरेपी पर किया गया बेसिक साइंस कैसे प्रोडक्ट्स में बदला जा सकता है, जो दांतों को रिपेयर कर सके और रिप्लेसमेंट की जरूरत कम करे। यह कुछ साल पहले तक अकल्पनीय था। उन्होंने कहा, ओरल बीमारियां उम्र नहीं देखतीं और वे शरीर की अन्य बीमारियों की संवेदनशीलता बढ़ाती हैं।
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