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नई दिल्ली: महज 10 साल में दो बार अंगदान, मां ने बेटे का किया कल्याण 

नई दिल्ली: -60 वर्षीय बुजुर्ग ने 2015 में लिवर और 2025 में किडनी दान करके बनाई मिसाल

नई दिल्ली, 28 मई: अपने बच्चे के जीवन की रक्षा के लिए यमराज से लड़ जाने वाली मां की कहानी लगभग सभी ने सुनी होगी। लेकिन आधुनिक दौर में भी ऐसी मां मौजूद है जिसने एक बार नहीं तीन -तीन बार अपने बेटे को मौत के मुंह से बाहर निकाला है।

दरअसल, 18 वर्षीय युवक विजय किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित है जिसके चलते उसकी दोनों किडनी फेल हो गई थी। वह डायलिसिस पर निर्भर था। ऐसे में उसे डायलिसिस से छुटकारा पाने के लिए एक किडनी की जरुरत थी जो उसकी मां शिमला बाई (60 वर्ष) ने अपने स्वास्थ्य और जीवन की परवाह किए बगैर डोनेट कर दी। इसके बाद इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज (आईएलबीएस) में विजय की किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी की गई जिसे गुर्दा प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ. अभ्युत्थान सिंह जादौन ने अंजाम दिया।

महिला के त्याग का सिलसिला 1997 में शुरू हुआ जब उसने विजय को जन्म दिया और गंभीर स्वास्थ्य समस्या के कारण अपनी बच्चेदानी निकलवानी पड़ी। इसके बाद 2015 में यानि अब से करीब 10 वर्ष पहले विजय को लिवर की जानलेवा बीमारी होने का पता चला। तब डॉक्टरों ने उसे लिवर ट्रांसप्लांट कराने की सलाह दी मगर डोनर नहीं मिला। ऐसे में विजय की मां शिमला बाई एक बार फिर देवदूत बनकर सामने आई। उस ने अपने लिवर का बड़ा हिस्सा विजय को डोनेट कर दिया और विजय की जान बचाई।

डॉ. जादौन ने कहा, ऐसा कम ही होता है कि कोई व्यक्ति अपने शरीर का कोई अंग दान करने के बाद पूर्णतया स्वस्थ हो। लेकिन शिमला बाई ना सिर्फ स्वस्थ थीं बल्कि फिट भी थी। मगर अंगदाता महिला की पिछली बड़ी सर्जरी (लिवर निकालने) के कारण उसके शरीर से किडनी निकालना बेहद जटिल और चुनौती पूर्ण था। इसके लिए लेप्रोस्कोपिक डोनर नेफ्रेक्टोमी तकनीक की मदद ली गई और विजय के शरीर में किडनी ट्रांसप्लांट कर दी गई। सर्जरी के चार दिन बाद डोनर महिला को और 10 दिन बाद रेसिपेंट युवक को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। फिलहाल दोनों की हालत स्थिर है।

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