
नई दिल्ली, 14 मई : छोटे बच्चों की आंख में कैंसर होने यानि रेटिनोब्लास्टोमा के मामले दुनिया में तेजी से बढ़ रहे हैं जिसके चलते प्रतिवर्ष लाखों बच्चे अपनी आंख गंवा रहे हैं। हालांकि, रेटिनोब्लास्टोमा का उपचार 100% संभव है लेकिन जागरूकता के अभाव में यह रोग एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है।
यह जानकारी डॉ भावना चावला ने रेटिनोब्लास्टोमा जागरूकता माह के दौरान एम्स दिल्ली में दी। इस अवसर पर डॉ शैलेश गायकवाड़, डॉ दीपक अग्रवाल, डॉ रीमा दादा और डॉ रचना सेठ मौजूद रहे। डॉ चावला ने बताया कि यह एक दुर्लभ प्रकार का नेत्र कैंसर है जो तीन से पांच वर्ष आयु तक के बच्चों में पाया जाता है। इसके मुख्य लक्षणों में पुतली में सफेद चमक (ल्यूकोकोरिया), भेंगापन (टेढ़ी दृष्टि) और आंख में लाली या दर्द होना शामिल हैं। इस रोग में वृद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ एम्स दिल्ली में ही 350 से ज्यादा बच्चे इलाज के लिए प्रतिवर्ष लाए जाते हैं।
डॉ चावला ने बताया कि इससे पीड़ित बच्चे की आंख में ट्यूमर पनपने लगता है जिसकी वजह से बच्चे की आंख बाहर की ओर निकली दिखाई देती है। बच्चा सीधे सामने की ओर देखने में सक्षम नहीं होता है और उसकी नजर भी कमजोर हो जाती है। अगर ये कैंसर आंख के साथ दिमाग में भी चला जाता है तो बच्चे को सिरदर्द, भूख न लगना, उल्टी होना आदि अन्य लक्षण हो सकते हैं, ऐसे में उपचार कठिन हो जाता है। अगर रेटिनोब्लास्टोमा का असर आंख तक है तो सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन से इलाज 100% संभव है लेकिन इस दौरान बच्चे की आंख निकालनी पड़ती है।
क्यों होता है रेटिनोब्लास्टोमा रोग ?
एम्स के अनुवांशिक विज्ञान विशेषज्ञ डॉ रीमा दादा ने बताया कि छोटे बच्चों की आंखों से रोशनी छीन लेने वाले रेटिनोब्लास्टोमा के पीछे दो कारण हैं। एक अनुवांशिक और दूसरा गैर अनुवांशिक। अनुवांशिक यानि पीढ़ी दर पीढ़ी रोग की एक बड़ी वजह पिता के शुक्राणु की गुणवत्ता में खराबी होना है जो शराब, तंबाकू और सेलफोन के इस्तेमाल से होती है। इसके अलावा बड़ी उम्र (35-40 वर्ष) में शादी करना भी एक वजह है। डॉ रीमा ने कहा, जब पुरुष में शुक्राणु बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाए तो उसे अधिकतम 10 वर्षों के भीतर शादी कर लेनी चाहिए।
रोग पहचान में देरी से आंख को स्थायी नुकसान
एम्स के न्यूरो साइंस सेंटर के चीफ और वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ शैलेश गायकवाड़ ने बताया कि 3 से 5 साल के बच्चे अपनी समस्याओं को व्यक्त नहीं कर पाते। शिकायत नहीं कर पाते जिस वजह से बच्चों में रेटिनोब्लास्टोमा रोग की पहचान करने में देरी होती है और ये देरी बच्चे की आंख को हमेशा के लिए खत्म कर देती है। ये कभी -कभी जानलेवा भी बन जाता है।
2 बच्चों की सर्जरी गामा नाइफ से संपन्न
एम्स के न्यूरोसर्जन डॉ दीपक अग्रवाल ने बताया, हाल ही में दो बच्चों की सर्जरी गामा नाइफ से की गई है। इसमें कैंसर प्रभावित ट्यूमर या घाव को विकिरण से लक्षित किया जाता है जो कैंसर सेल को नष्ट कर देती है। इसमें चीरा लगाने की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे संक्रमण और रक्तस्राव का जोखिम कम होता है।
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