
नई दिल्ली, 1 मई : अक्सर कुछ रोगों की सटीक पहचान न होने के चलते पीड़ित मरीज का इलाज दुश्वार हो जाता है। ऐसे ही एक दुर्लभ रोग ‘प्राथमिक सिलिअरी डिस्किनेशिया’ (पीसीडी) की पहचान के लिए एम्स दिल्ली ने नई तकनीक या पद्धति विकसित की है जो ना सिर्फ रोग की सटीक पहचान करती है। बल्कि किफायती भी है।
दरअसल, सिलिअरी विकारों का पता लगाने के लिए, डॉक्टर कई तरह के परीक्षणों का उपयोग करते हैं, जिनमें वीडियो माइक्रोस्कोपी, रेडियोलेबल कण परीक्षण, वीर्य विश्लेषण और इमेजिंग परीक्षण शामिल हैं। मगर ये परिणाम अक्सर एक्यूरेट नहीं होते हैं जिसके चलते पीड़ित को उचित समय पर इलाज नहीं मिल पाता है। जो आगे चलकर मरीज की जान के लिए खतरा पैदा कर देता है।
एम्स के एनाटॉमी विभाग के डॉ. सुभाष चंद्र यादव ने बताया कि हमने सिलिअरी विकारों का पता लगाने के लिए बाल रोग विभाग के प्रोफेसर काना राम जाट के साथ मिलकर एक नई पद्धति का विकास किया है। जिसे टीईएम-आधारित अल्ट्रास्ट्रक्चरल इमेजिंग पद्धति नाम दिया गया है। यह पद्धति या विधि इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के जरिये पीसीडी की सटीक पहचान करती है। उन्होंने कहा, रोग की सटीक पहचान के बाद ही मरीज का इलाज प्रभावी ढंग से संभव हो पाता है। इससे मरीज को वक्त पर उचित इलाज मिलने का रास्ता साफ हो जाता है।
डॉ यादव के मुताबिक हमारी नई तकनीक मरीज के श्वसन संबंधी विसंगतियों, गुर्दे की सिस्टिक बीमारी, अंधापन, तंत्रिका ट्यूब दोष, बौद्धिक अक्षमता, कंकाल संबंधी असामान्यताएं (जैसे पॉलीडेक्टली और असामान्य रूप से छोटे अंग), एक्टोडर्मल दोष, साइटस इनवर्सस (एक ऐसी स्थिति जहां आंतरिक अंग प्रतिबिम्बित होते हैं) और बांझपन सहित दुर्लभ सिलियरी विकारों से संबंधित स्थितियों की एक श्रृंखला का सटीक रूप से पता लगा सकती है। यह शोध हाल ही में प्रतिष्ठित जर्नल माइक्रोस्कोपी एंड माइक्रो एनालिसिस (ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय) में प्रकाशित हुआ है।
डॉ. सुभाष चंद्र यादव ने कहा, यह उन्नत पद्धति लगभग 70% संदिग्ध मामलों में गतिशील सिलिया में संरचनात्मक दोषों की पहचान करती है। यह अत्याधुनिक संपूर्ण-जीनोम अनुक्रमण से भी ज्यादा प्रभावी है। इस विधि से संदिग्ध सिलियरी विकारों वाले 200 रोगियों की जांच की गई और 135 मामलों में रोग निदान करने में सफलता मिली। उन्होंने कहा, हमारी नई पद्धति पारंपरिक तरीकों की तुलना में रोग पहचान क्षमता को लगभग 640 गुना बढ़ा देती है।
क्या होता है पीसीडी?
डॉ यादव ने बताया कि पीसीडी या ‘प्राथमिक सिलिअरी डिस्किनेशिया’ 10 हजार में से एक या दो बच्चों को होता है। यह मरीज की श्वसन प्रणाली को प्रभावित करने वाला एक दुर्लभ और अक्सर गलत निदान किया जाने वाला आनुवंशिक विकार है। जो कई अंगों को प्रभावित करता है और समय के साथ मरीज की स्थिति को और भी खराब कर देता है। पीसीडी से पीड़ित बच्चों में बलगम जमने की समस्या होती है, जिससे वायुमार्ग में सूजन और फेफड़ों, नाक, साइनस और कानों में संक्रमण हो जाता है।
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