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नई दिल्ली: अंगदाताओं की कहानी, परिजनों की जुबानी

नई दिल्ली: -अपने प्रियजन की मृत्यु के बाद अंगदान करने वाले लोगों ने समाज को दी मिसाल

नई दिल्ली, 01 अगस्त : जीते जी रक्तदान और मरने के बाद अंगदान का नारा कोई आम नारा नहीं है। बल्कि लाखों लोगों को नया जीवन देने के प्रति समाज को प्रेरित करने वाला संदेश है। इस संदेश से प्रेरित लोगों और उनके परिजनों ने जब निस्वार्थ भाव से अंगदान करने का फैसला किया तो ना सिर्फ अंग विफलता से पीड़ित हजारों लोगों को नया जीवन मिला। बल्कि नेत्रहीनता से जूझ रहे लोगों के जीवन में नया सवेरा आ गया।

ऐसे ही अंगदाताओं के परिजनों से नवोदय टाइम्स ने शुक्रवार को एम्स दिल्ली में मुलाकात की और उनके द्वारा अपने प्रियजन के अंगदान के बाबत बात की। आइए जानते हैं अंगदाताओं की कहानी उनके परिजनों की जुबानी…

मात्र 28 वर्ष की उम्र में तीन लोगों को नई जिंदगी दे गए राजुल
दिल्ली के संगम विहार में अपने परिवार के साथ रहने वाले 28 वर्षीय राजुल अपने घर पर ही अचानक छत से नीचे गली में गिर गए. इससे उनके सिर में गंभीर चोट लगी। उन्हें इलाज के लिए दिल्ली एम्स के ट्रॉमा सेंटर में लाया गया. राजुल की पत्नी आरती ने बताया कि 27 फरवरी को उनके पति के साथ यह हादसा हुआ। उसके बाद वह 8 मार्च तक एम्स में वेंटिलेटर पर रहे। राजू की पत्नी आरती ने बताया कि 8 मार्च तक जब उन्हें होश नहीं आया तो एम्स में डॉक्टरों ने जांच के बाद उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया. उसके बाद हमें अंगदान की सलाह दी गई।

डॉक्टर ने समझाया कि राजू अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन अगर आप लोग चाहे तो इसके अंगदान से कई और लोगों को नया जीवन मिल सकता है। डॉक्टरों की बात हमारी समझ में आई और फिर हमने उनके अंगदान का फैसला लिया। हमने एम्स में अपने पति के हार्ट, किडनी और लिवर को डोनेट किया। इसके बाद तीन अलग-अलग लोगों को उनके तीन ऑर्गन ट्रांसप्लांट किए गए और उन्हें नई जिंदगी मिली।

आरती ने आगे कहा कि इससे हमें यह सीख मिली कि कम से कम किसी के जाने के बाद भी और तीन लोगों को नई जिंदगी मिली इसलिए सभी लोगों को अंगदान करना चाहिए। आरती ने बताया कि वह संगम विहार में अपने सास ससुर के साथ रहती हैं। उनकी ढाई साल की एक बच्ची है। वह उसका पालन पोषण करती हैं। पति के जाने का दुख और उनकी कमी तो कभी पूरी नहीं हो सकती, लेकिन थोड़ी तसल्ली है कि उनके जाने के बाद भी वह तीन और लोगों को नई जिंदगी देने की वजह बने।

गोपाल सिंह के अंगदान से भी चार लोगों को मिली नई जिंदगी
इसी तरह 1983 में जन्मे गोपाल सिंह ने नरेंद्र इंजीनियरिंग वर्क्स में एक मेहनती कर्मचारी और एक प्यारे पति और पिता के रूप में दूसरों की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। दुख की बात है कि 27 मई, 2025 को एक दुर्घटना में उनकी जान चली गई. घटनास्थल पर अफरा-तफरी के बावजूद, एक बहादुर राहगीर ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया, लेकिन गोपाल को 30 मई को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया। दुख की घड़ी में भी उनके परिवार ने अपनी सूझबूझ दिखाते हुए उनके अंगों को दान करने का फैसला किया, जिससे कई व्यक्तियों को नया जीवन मिला।

इसी तरह मात्र 26 वर्ष की उम्र में अनीश बनर्जी को एक दुर्घटना में मस्तिष्क में गंभीर चोट लगी, जिससे 30 मई, 2025 को डॉक्टरों ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया। साहस और प्रेम के एक असाधारण कार्य में अनीश के परिवार ने अंग दान के माध्यम से उनकी विरासत का सम्मान करने का हृदय विदारक निर्णय लिया। अनीश के अंगदान से चार और लोगों को नया जीवन मिला।

 

 

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