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नई दिल्ली: आंखों की सेहत के लिए ठीक नहीं है ‘ रील ‘

नई दिल्ली: -युवाओं के चश्मे के नंबर में भी आ रहा बदलाव

नई दिल्ली, 1 अप्रैल : मानसिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालने वाली ‘ रील ‘ अब आंखों की सेहत के लिए भी नुकसानदायक साबित हो रही है। जिसके चलते ड्राई आई सिंड्रोम, मायोपिया प्रोग्रेस, आई स्ट्रेन और यहां तक कि शुरुआती दौर में ही भेंगापन के मामलों में तेज गति से वृद्धि हो रही है। खासकर उन बच्चों में जो घंटों रील देखते रहते हैं।

यह जानकारी एशिया पैसिफिक एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी और ऑल इंडिया ऑप्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी की संयुक्त बैठक के दौरान नेत्र विशेषज्ञों ने मंगलवार को यशोभूमि द्वारका में दी। डॉ. ललित वर्मा ने कहा, आजकल लोग मनोरंजन व अन्य कारणों से मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटॉप और कंप्यूटर की स्क्रीन पर अत्यधिक समय बिता रहे हैं। इस दौरान वह अपने समय का बड़ा हिस्सा (कई-कई घंटे) इंस्टाग्राम, टिकटॉक, फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रील देखने में खर्च कर रहे हैं, जो ड्राई आई सिंड्रोम जैसे नेत्र विकारों की वजह बन रहा है।

उन्होंने बताया, हाल ही में एक छात्र लगातार आंखों में जलन और धुंधली नजर की शिकायत लेकर हमारे पास आया था। जांच के बाद, हमने पाया कि घर पर लंबे समय तक स्क्रीन पर रील देखने के कारण उसकी आंखें सूखी थी उनमें नमी नहीं थी। यानि पर्याप्त आंसू नहीं आ रहे थे। उसे तुरंत आई ड्रॉप दी गई और 20-20-20 नियम का पालन करने की सलाह दी गई। उन्होंने कहा, रील देखने का अत्यधिक शौक सभी आयु वर्ग के लोगों को नेत्र विकारों से पीड़ित कर रहा है जिनमें बच्चों और युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है।

डॉ. हरबंश लाल ने कहा कि लगातार स्क्रीन पर ध्यान केंद्रित करने से पलकें झपकने की दर 50% कम हो जाती है, जिससे ड्राई-आई सिंड्रोम और एकोमोडेशन स्पाज्म (निकट और दूर की वस्तुओं के बीच फोकस बदलने में कठिनाई) की समस्या हो सकती है। उन्होंने कहा, जो बच्चे रोजाना घंटों तक रील से चिपके रहते हैं, उनमें शुरुआती मायोपिया विकसित होने का जोखिम होता है। वयस्कों को भी नीली रोशनी के संपर्क में आने से अक्सर सिरदर्द, माइग्रेन और नींद संबंधी विकार का सामना करना पड़ रहा है। यही नहीं स्क्रीन टाइम बढ़ने के कारण 30 साल की उम्र तक चश्मे के नंबर में बदलाव आ रहे हैं, जो कुछ दशक पहले 21 साल की उम्र तक ही होते थे।

रील में तल्लीन- दुनिया नजरअंदाज
डॉ. समर बसाक ने कहा, स्क्रीन पर अत्यधिक समय बिताने को लेकर हम एक चिंताजनक पैटर्न देख रहे हैं। अक्सर लोग रील या आभासी दुनिया में इतने लीन हो जाते हैं कि वे वास्तविक दुनिया की बातचीत को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे पारिवारिक रिश्ते खराब हो जाते हैं और शिक्षा और काम पर ध्यान कम हो जाता है। डॉ. पार्थ बिस्वास ने कहा, कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था से एक ऐसी दिक्कत हो रही है जिसे हम ‘रील विजन सिंड्रोम’ कहते हैं। समय आ गया है कि हम इसे गंभीरता से लें, इससे पहले कि यह एक पूर्ण विकसित सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन जाए।

क्या है 20-20-20 नियम?
इस नियम के तहत व्यक्ति हर 20 मिनट में 20 सेकंड का ब्रेक लें और 20 फीट दूर की वस्तु को देखें। पलक झपकने की दर बढ़ाएं, स्क्रीन देखते समय अधिक बार पलकें झपकाने का सचेत प्रयास करें, स्क्रीन का समय कम करें और डिजिटल डिटॉक्स लें क्योंकि नियमित स्क्रीन ब्रेक आंखों के दीर्घकालिक नुकसान को रोकने में मदद कर सकता है।

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