नई दिल्ली, 21 अक्तूबर: यूं तो डॉक्टरों को दुनियाभर में जीवन रक्षक का दर्जा दिया जाता रहा है लेकिन जब उनकी सेवाएं और कौशल अजीबोगरीब हालातों में भी मरीज को राहत प्रदान करने सक्षम साबित होते हैं। तब वह भारतीय समाज की मान्यता के मुताबिक जीवन दाता के रूप में भी दिखाई देते हैं।
दरअसल, भारत से ब्रिटेन की हवाई उड़ान के दौरान एक 65 वर्षीय बुजुर्ग मूत्र त्यागने में समस्या के चलते बार बार वॉशरूम जा रहे थे। उन्हें एक्यूट यूरिनरी रिटेंशन की समस्या थी जिसके चलते मरीज अपने मूत्राशय या ब्लैडर को पेशाब से पूरी तरह खाली कर पाने में सक्षम नहीं हो पाते। नतीजतन, मरीज को काफी तकलीफ का सामना करना पड़ता है। ऐसे में एक सहयात्री डॉ रिची गुप्ता ने बुजुर्ग की मेडिकल समस्या को भांप लिया। उन्होंने एयर हॉस्टेस को सूचित किया कि वह डॉक्टर हैं और फोर्टिस अस्पताल शालीमार बाग के डिपार्टमेंट ऑफ प्लास्टिक, कॉस्मेटिक एंड रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के प्रमुख भी हैं। अगर क्रू चाहे तो वह इस मामले में उक्त यात्री की मदद कर सकते हैं।
इसके बाद एयर हॉस्टेस और सह-पायलट ने डॉ गुप्ता से मरीज को मेडिकल सहायता देने का अनुरोध किया क्योंकि उन्हें लग रहा था कि मरीज की बिगड़ती हालत के चलते उन्हें जहाज वापस मोड़ना पड़ सकता है। इससे पहले वह मरीज को राहत देने के लिए ड्राइ आइस दे चुके थे। लेकिन आधा घंटा बीतने के बाद भी मरीज को कोई आराम नहीं मिला था और वह पेशाब नहीं कर पा रहे थे जिसकी वजह से उनकी हालत और बिगड़ने लगी थी। क्रू के सदस्यों ने मरीज को उपचार के लिए हवाई जहाज की पिछली पैंट्री में ले जाकर लिटाया।
डॉ गुप्ता ने फ्लाइट में उपलब्ध मेडिकल किट से यूरीनरी कैथेटर, ज़ायलोकेन जेली (जो कि लोकल एनेस्थेटिक जेल होता है), सीरिंज तथा ग्लव्स आदि की मदद से ही मरीज को कैथेटराइज किया और करीब 800 मिलीलीटर पेशाब उनके शरीर से बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की। मरीज को इससे काफी राहत मिली और उनके मूत्राशय का आकार भी कुछ कम हो गया जो पहले सामान्य से काफी ज्यादा आकार में था। उन्होंने कहा, अगर मरीज का समय पर उपचार नहीं किया जाता तो उन्हें मूत्रमार्ग में संक्रमण का जोखिम हो सकता था, या उनके मूत्राशय और गुर्दों को भी नुकसान पहुंच सकता था। ऐसी स्थिति में मरीज के गुर्दे काम करना भी बंद कर सकते हैं या अन्य कोई परेशानी भी हो सकती थी।