नई दिल्ली, 1 सितम्बर : अब ओरल कैंसर के संदिग्ध मरीजों की जांच बायोप्सी टेस्ट के बिना भी संपन्न हो सकेगी। इसके लिए जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) के डॉक्टरों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो न सिर्फ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) पर आधारित है। बल्कि सटीक, सुरक्षित और घाव रहित भी है।
इस तकनीक का विकास डॉ. तनवीर अहमद के मार्गदर्शन में पीएचडी करने वाली छात्रा निशा चौधरी ने सात साल में संपन्न किया है। उन्होंने बताया कि हमने देश के विभिन्न अस्पतालों की मदद से एक ऐसा डेटासेट विकसित किया है जिसे ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस (ओएसएमएफ) और ओरल स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (ओएससीसी) के सटीक निदान और पहचान के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा। निशा ने बताया कि यह दुनिया का ऐसा पहला कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) संचालित ओरल कैंसर डेटाबेस है जिसमें 10 लाख से अधिक छवियों की जांच के बाद 3 लाख से अधिक उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली ऊतक छवियों को शामिल किया गया है।
उन्होंने बताया कि फिलहाल ओरल कैंसर की जांच के लिए बायोप्सी टेस्ट सबसे सटीक माना जाता है। इसके लिए मरीज के शरीर से उसकी कोशिकाओं का नमूना (मांस का छोटा टुकड़ा) निकाला जाता है। फिर इस नमूने का विश्लेषण करके पता लगाया जाता है कि उसमें कैंसर है या नहीं, या कैंसर से जुड़े कोई शुरुआती बदलाव तो नहीं हैं। मगर, जेएमआई के मल्टीडिसीप्लिनरी सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च एंड स्टडीज की शोध टीम द्वारा विकसित डेटासेट बायोप्सी के बिना ही मरीज के कैंसरग्रस्त (ओरल कैंसर) होने या न होने की पुष्टि कर देता है। साथ ही ओरल कैंसर का इलाज भी बताता है।
वहीं, डॉ तनवीर ने बताया कि इस संबंध में हमने पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया है। जल्द ही इस डेटासेट की सुविधा सभी कैंसर विशेषज्ञों को ऑनलाइन उपलब्ध होगी और वह दूर दराज के ग्रामीण इलाकों में भी ओरल कैंसर को डिटेक्ट कर सकेंगे जिससे सरकार के कैंसर रोधी अभियान में मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि ओरल कैंसर हिस्टोलॉजी इमेज डेटाबेस के लिए रांची इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (झारखंड) के डॉ अर्पिता राय, एम्स दिल्ली के डॉ दीपिका मिश्रा, मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज (दिल्ली) के डॉ ऑगस्टीन और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (यूपी) के डॉ अखिलेश कुमार की मदद ली गई।






