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कार्यस्थल पर सुरक्षा को लेकर डॉक्टर भयभीत : सर्वे

-डॉक्टर, नर्स, इंटर्न, रेजिडेंट और फार्मासिस्ट बोले- सुरक्षा उपायों को किया जाए दुरुस्त

नई दिल्ली, 22 अक्तूबर: देश के तमाम चिकित्सा संस्थान अपने स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों ( एचसीडब्ल्यू ) को सुरक्षित माहौल देने में नाकाम साबित हो रहे हैं। जिसके पीछे अस्पताल के डार्क स्पॉट पर लाइट के साथ सीसीटीवी कैमरे, पैनिक अलार्म और सिक्योरिटी गार्ड जैसी मूलभूत सुविधाओं के नदारद होने से लेकर अनेक संस्थानों में बाउंड्री वॉल तक न होने की समस्या प्रमुख है।

यह जानकारी सफदरजंग अस्पताल के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर निदेशक डॉ जुगल किशोर ने एक सर्वेक्षण के हवाले से दी। उन्होंने बताया कि सफदरजंग अस्पताल और एम्स दिल्ली के विशेषज्ञों ने हाल ही में एक सर्वे संपन्न किया है जिसमें 869 महिलाओं और 697 पुरुषों समेत कुल 1566 लोगों (एचसीडब्ल्यू) ने एक वृहद प्रश्नावली का उत्तर दिया। जिससे भारतीय स्वास्थ्य संस्थानों में कार्यस्थल संरक्षा और सुरक्षा की चिंताजनक स्थिति उजागर हुई है। इन उत्तरदाताओं में डॉक्टर, नर्स, इंटर्न, रेजिडेंट और फार्मासिस्ट शामिल थे।

आधे से अधिक एचसीडब्ल्यू ने कहा कि वह काम पर असुरक्षित महसूस करते हैं, जिनमें से 78% से अधिक को ड्यूटी पर खतरों का सामना करना पड़ा है। प्रमुख मुद्दों में अपर्याप्त सुरक्षा कर्मी, अप्रभावी आपातकालीन अलार्म सिस्टम और आईसीयू और मनोरोग वार्ड जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में उचित सुरक्षा उपायों की कमी शामिल है। 90% से अधिक संस्थानों में प्रवेश करने वाले लोगों की जांच नहीं होती जिससे खतरनाक वस्तुएं अस्पताल में पहुंच जाती है। लगभग 75% अस्पताल असुरक्षित हैं।

सर्वे में राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेजों में कार्यस्थल सुरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण असंतोष भी पाया गया, जहां असंतोष दर निजी संस्थानों की तुलना में चार गुना अधिक है। इसके अलावा, 81% ने हिंसा के गवाह होने की सूचना दी, फिर भी 44% का मानना है कि घटनाओं को ठीक से संभाला नहीं गया, और 80% को आपातकालीन संपर्क या प्रोटोकॉल के बारे में जानकारी नहीं थी।

सर्वे में उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में सुरक्षा को मजबूत करने, सुरक्षाकर्मियों की संख्या बढ़ाने, ड्यूटी रूम की स्थितियों में सुधार करने और हिंसा से निपटने के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल लागू करने की सिफारिश की गई है। नियमित सुरक्षा प्रशिक्षण और कानूनी ढांचों की वकालत करने के लिए राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग का भी सुझाव दिया गया। ताकि स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता और डॉक्टर-रोगी संबंधों को बेहतर बनाने के साथ कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

क्या चाहते हैं डॉक्टर ?
उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में मजबूत सुरक्षा उपायों के साथ आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली।
बेहतर लाइट, सीसीटीवी और परिवहन विकल्पों के साथ रात्रिकालीन सुरक्षा में सुधार।
पर्याप्त संख्या में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती जो स्थानीय पुलिस के साथ समन्वय करे।
स्वास्थ्य कर्मियों के लिए बेसिक सुविधाओं के साथ ड्यूटी रूम में सुधार।
हिंसा से निपटने के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल, सुलभ आपातकालीन संपर्क और गोपनीय रिपोर्टिंग प्रणाली।
नियमित सुरक्षा प्रशिक्षण, अभ्यास, जागरूकता अभियान और ऑडिट के आयोजन।
स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए एकीकृत, कानूनी ढांचा बनाने हेतु नीतिगत परिवर्तन।

क्या कहता है सर्वेक्षण ?
58.2% स्वास्थ्यकर्मी कार्यस्थल पर स्वयं को महसूस करते हैं असुरक्षित
78.4% ड्यूटी पर दी गई धमकी
62.6% पुरुष पेशेवरों ने असुरक्षित महसूस किया,
54.6% महिला पेशेवरों
63% राज्य संचालित मेडिकल कॉलेजों में सुरक्षा कर्मियों की संख्या से नाखुश
70% उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में आपातकालीन अलार्म खराब, प्रवेश नियंत्रण और सुरक्षा में कमी

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