नई दिल्ली, 24 जुलाई : भारत में हर मिनट दो लोग दिल के दौरे या कार्डियक अरेस्ट के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं। अगर उन्हें तत्काल कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सी.पी.आर.) की सुविधा मिल जाए तो प्रतिवर्ष कार्डियक अरेस्ट के चलते होने वाली 45 लाख मौतों में से आधे से लेकर एक-चौथाई तक की कमी आ सकती है।
यह जानकारी एम्स दिल्ली के इमरजेंसी मेडिसिन विभाग की ओर से आयोजित सीपीआर प्रचार कार्यक्रम के दौरान प्रोफेसर डॉ. संजीव भोई ने दी। उन्होंने कहा कि कार्डियक अरेस्ट या दिल के दौरे के मामले में सीपीआर बेहद कारगर उपाय है जिसे प्रत्येक व्यक्ति को सीखना चाहिए। इस संबंध में पीड़ित के परिजन और आसपास के लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि दिल का दौरा पड़ने की स्थिति में यही लोग पीड़ित के सर्वथा निकट होते हैं। लिहाजा, एम्स स्कूली बच्चों को सीपीआर की ट्रेनिंग देने की सिफारिश करता है।
डॉ भोई ने अपनी सिफारिश के समर्थन में एक अध्ययन का ब्यौरा दिया जो उन्होंने आईसीएमआर के वित्तीय सहयोग से दिल्ली के 15 स्कूलों के 4500 छात्रों के साथ तीन वर्ष तक किया था। इस दौरान छठी से बारहवीं कक्षा तक के बच्चे सीपीआर सीखने के प्रति काफी उत्सुक दिखे और सीपीआर सीखकर अपने कौशल का सफल प्रदर्शन करने में भी कामयाब रहे। मगर, पीड़ित को सीपीआर देने के मामले में ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के बच्चे (शारीरिक क्षमता के मद्देनजर) ज्यादा उपयुक्त पाए गए।
उन्होंने कहा, स्कूली बच्चे सीपीआर की ट्रेनिंग लेकर कार्डियक अरेस्ट से होने वाली मौतों में कमी लाने में मददगार साबित हो सकते हैं। क्यूंकि ज्ञान और कौशल सीखने के लिए बच्चों के पास उर्वर दिमाग और उत्साह होता है। डॉ. संजीव भोई ने कहा, कई यूरोपीय देश इसके लाभों को पहचानते हैं जिसके चलते वहां आस-पास के लोग ही पीड़ित को सी.पी.आर. देकर उसकी जान बचा लेते हैं। उन्होंने कहा, कई देशों में, 50% दिल के दौरे के पीड़ितों को आस-पास के लोगों से ही सी.पी.आर. मिल जाता है, जबकि भारत में महज 0-10% मामलों में ही सीपीआर मिल पाता है।
कार्यक्रम के दौरान नीति आयोग के सदस्य डॉ विनोद पॉल , एनसीईआरटी के निदेशक प्रो दिनेश प्रसाद सकलानी, एम्स के निदेशक डॉ एम श्रीनिवास, एनएचआरएससी के सलाहकार डॉ के मदन गोपाल, केंद्रीय स्वास्थ्य शिक्षा ब्यूरो के डीडीजी डॉ गौरी सेनगुप्ता और डब्ल्यूएचओ/एसईएआरओ के पूर्व (सेवानिवृत्त) डॉ पतंजलि देव नायर मौजूद रहे।