डायरेक्ट सॉकेट : दिव्यांगों को महज 4 घंटे में मिल सकेंगे कृत्रिम अंग
-सफदरजंग ने 200 कर्मियों को दिया डायरेक्ट सॉकेट प्रौद्योगिकी का प्रशिक्षण
नई दिल्ली, 29 सितम्बर: सही फिटिंग वाले कृत्रिम अंग जहां दिव्यांग लोगों के दैनिक जीवन को आसान बनाते हैं। वहीं, फिटिंग में कमी होने से उनका जीवन दुश्वार हो जाता है। ऐसे ही लोगों की सुविधा के लिए सफदरजंग अस्पताल ने कृत्रिम अंग निर्माण के दौरान अत्याधुनिक ‘डायरेक्ट सॉकेट प्रौद्योगिकी’ इस्तेमाल करने का फैसला किया है।
ऑर्थोटिक एंड प्रोस्थेटिक एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष राजेश दास ने कहा, डायरेक्ट सॉकेट जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को सबसे आगे लाकर, हम न केवल अपने पेशेवरों के कौशल को बढ़ा रहे हैं, बल्कि उन अनगिनत व्यक्तियों के लिए जीवन की बेहतर गुणवत्ता का मार्ग भी प्रशस्त कर रहे हैं जो प्रोस्थेटिक उपकरणों पर निर्भर हैं। यह कार्यक्रम स्वास्थ्य सेवा में नवाचार और उत्कृष्टता को आगे बढ़ाने में पेशेवर संघों और चिकित्सा संस्थानों के बीच सहयोग की शक्ति का प्रमाण है।”
यह जानकारी भौतिक चिकित्सा और पुनर्वास (पीएमआर) विभाग के प्रमुख डॉ अजय गुप्ता ने रविवार को दी। उन्होंने बताया कि पीएमआर को फिजियोट्री भी कहा जाता है। इसके तहत हमारे विभाग के जरिये दिव्यांगों को पारंपरिक विधि से बने कृत्रिम अंग उपलब्ध कराए जाते हैं। इस दौरान दिव्यांग व्यक्ति के प्रारंभिक मूल्यांकन से लेकर अंतिम डिलीवरी तक औसतन 16 सप्ताह तक का समय लग जाता है और अक्सर इसकी फिटिंग में भी शिकायत पाई जाती है।
इन समस्याओं के मद्देनजर पीएमआर विभाग ने ‘डायरेक्ट सॉकेट प्रौद्योगिकी’ से कृत्रिम अंग तैयार करने के लिए सतत पुनर्वास शिक्षा (सीआरई) कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें सफदरजंग अस्पताल सहित विभिन्न चिकित्सा संस्थानों के करीब 200 स्वास्थ्य पेशेवरों ने अत्याधुनिक तकनीक संबंधी प्रशिक्षण प्राप्त किया और अपने कौशल में इजाफा किया। गुप्ता के मुताबिक इस प्रशिक्षण से उन अनगिनत दिव्यांग व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में भी इजाफा होगा जो प्रोस्थेटिक उपकरणों या कृत्रिम अंगों पर निर्भर हैं।
उन्होंने बताया कि डायरेक्ट सॉकेट सिस्टम के साथ एक निश्चित प्रोस्थेटिक सॉकेट (कृत्रिम अंग) को कई हफ्तों के बजाय केवल कुछ घंटों में ही एक दिव्यांग व्यक्ति के हाथ या पैर पर बनाया जा सकता है। यह वास्तविक समय में रोगी के हाथ या पैर पर बनाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सॉकेट बेहतर फिट होता है, और सॉकेट के सही ढंग से फिट न होने की संभावना कम हो जाती है। सीआरई में चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वंदना तलवार के साथ ऑर्थोटिक एंड प्रोस्थेटिक एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष राजेश दास भी मौजूद रहे।
क्या है डायरेक्ट सॉकेट ?
डायरेक्ट सॉकेट में अंतिम सॉकेट को मोल्ड के बजाय सीधे मरीज के पैर पर लेमिनेट किया जाता है। सबसे पहले, दिव्यांग व्यक्ति को एक विशेष कास्टिंग लाइनर पहनाया जाता है। साथ ही एक सिलिकॉन सुरक्षात्मक आवरण भी पहनाया जाता है। इसके बाद सॉकेट के लिए सामग्री को अंग पर लगाया जाता है और सॉकेट को कठोर बनाने के लिए उसमें रेजिन मिलाया जाता है। सॉकेट के सख्त हो जाने के बाद, प्रोस्थेटिस्ट ट्रिमलाइन खींचता है और दिव्यांग व्यक्ति उसी दिन करीब घंटे बाद एक नया निश्चित सॉकेट या कृत्रिम अंग लेकर बाहर आ जाते हैं।