Agra : कृष्ण कला ‘जरदोजी’ को सरकारी साथ की दरकार

Agra News : (डॉ रंजना बंसल, संरक्षक, आगरा जरदोजी डेवलपमेंट फाउंडेशन) जब भी आगरा का जिक्र आता है, तो जहन में सबसे पहली तस्वीर ताजमहल की उभरती है. निसंदेह, मोहब्बत की निशानी ताज अनमोल है, और इसने आगरा को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई है. लेकिन जरदोजी कारीगिरी भी आगरा का एक अनमोल रत्न है, जिसे ताजमहल की तरह ही संरक्षण की ज़रूरत है.
आगरा संस्कृति, सभ्यता और गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए है. जरदोजी इस संस्कृति, सभ्यता और इतिहास का अभिन्न अंग है. हालांकि, इसके बावजूद जिस तरह का प्यार, अपनापन और सहयोग इसे सरकारी स्तर पर मिलना चाहिए था, वो अब तक नहीं मिला है.
भारत में इसका अपना एक अलग एवं समृद्ध इतिहास है. इसने न केवल भारतीय नारी के सौन्दर्य को निखारा, बल्कि हम सबके अराध्य बांके बिहारी की मोहकता में भी चार-चाँद लगा दिए. मथुरा में बांके बिहारी,राधा कृष्ण की पोशाक इसी कला से तैयार होती रही है. लिहाजा इसे ‘कृष्ण कला’ कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.
जिस तरह से जीवित रहने के लिए हमें भोजन,पानी एवं ओक्सीजन की जरूरत होती है. कला को प्यार, अपनेपन और सहयोग की दरकार होती है. दुर्भाग्य से कृष्ण कला को अब तक इससे महरूम ही रही है. आधुनिकता के साथ कदमताल जितना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है संस्कृति को संजोकर रखना. कृष्ण कला एक पारंपरिक कढ़ाई शैली है, जिसमें महीन धागों और मोतियों का भी इस्तेमाल किया जाता है. जब कारीगर अपने हुनर से इन धागों को अलग-अलग आकार में ढालता है, तो आंखें आश्चर्य से फटी रह जाती हैं.
यह कला वैदिक युग से जुड़ी हुई है, भगवान राम और श्रीकृष्ण के समय की, जब चांदी और सोने के तारों से की गई कढ़ाई शाही परिधानों की शोभा बढ़ाया करती थी – और भगवान श्रीकृष्ण से अधिक शाही भला कौन हो सकता है. ऋग्वेद में इस कला का उल्लेख “Hrinaypeshas” नाम से हुआ है. मौर्य और गुप्त काल में यह कला “कलाबत्तू” के रूप में प्रचलित रही. मुगल काल में रानी नूरजहाँ ने इसे नया नाम “जरदोजी” दिया. ‘जर’ का अर्थ है सोना, और ‘दोजी’ का अर्थ है कढ़ाई. अपने शासनकाल के दौरान ब्रिटिश भी इस कला से अत्यधिक प्रभावित थे.
आगरा और जरदोजी का रिश्ता दशकों पुराना है. यहां इसकी कारीगरी मुगल शासन काल से चली आ रही है. ताजगंज क्षेत्र में शायद ही ऐसा कोई घर हो, जहां कृष्ण कला का काम नहीं किया जाता हो. हालांकि, अब इसका दायरा सिमटता जा रहा है. ताजमहल के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता. संरक्षण के बिना भी यह इमारत दुनिया को आकर्षित करती रहेगी और इसलिए उसका संरक्षण सरकार की आवश्यक मजबूरी हो सकती है. लेकिन कृष्ण कला बिना संरक्षण एवं समर्थन के अब जीवित नहीं रह पायेगी. इसने अपने दम पर एक लंबा सफर तय कर लिया है, मगर आगे के सफर के लिए उसे सरकार का साथ चाहिए. पर्याप्त सरकारी समर्थन के अभाव में कृष्ण कला में पारंगत कारीगर कम होते जा रहे हैं. इस कला को जीवित रखने वालों के लिए गुजर-बसर भी मुश्किल है, क्योंकि अब न तो इस काम की पहले वाली डिमांड है और न दाम.
खुशी की बात है कि कृष्ण कला को ‘जीवित’ रखने के लिए अब सामाजिक तौर पर प्रयास शुरू हो गए हैं. आगरा जरदोजी डेवलपमेंट एसोसिएशन द्वारा हाल ही में ‘जरदोजी हमारी धरोहर, हमारी पहचान’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जहां कृष्ण कला की बारीकी, ऐतिहासिक महत्व और भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा हुई. इस दौरान, कई महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए. मसलन, इसे ‘ एक जनपद-एक उत्पाद’ योजना और GI टैग दिलवाने की मांग दोहराई जाएगी, इसे कृष्ण कला के नाम से प्रचारित किया जाएगा और शहर के हर होटल में इसका प्रदर्शन किया जाएगा. मुख्यमंत्री से कृष्ण कला को कौशल विकास योजना में शामिल करने का आग्रह किया जाएगा आदि. सामाजिक स्तर पर इस तरह के प्रयास कृष्ण कला और उसके कलाकारों के लिए एक उम्मीद है. और हमें उम्मीद करनी चाहिए कि उनकी यह उम्मीद पूरी होगी.
अब इस कला की पहचान को फिर से स्थापित करने का समय आ गया है. यह कला भगवान श्रीकृष्ण, जो 64 कलाओं के ज्ञाता माने जाते हैं, की प्रिय कला है. यह कृष्ण के अग्रवन, की कला है, इसमें मोर और पारंपरिक भारतीय डिज़ाइन प्रमुखता से दर्शाए जाते हैं, यह कला शाही वैभव का प्रतीक है — वह वैभव जो श्रीकृष्ण के युग से लेकर अकबर के आगरा तक फैला हुआ है. कृष्ण कला या कृष्ण कारी को पुनर्जीवित किए जाने, संजोए जाने और वैश्विक मंच तक पहुंचाए जाने की ज़रूर है. अब समय आ गया है कि हम अपनी जड़ों को पहचानें, और जैसा कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने कहा है – “विरासत से विकास की ओर”, हमें सभी को मिलकर कृष्ण कारी को उस ऊंचाई तक पहुँचाना है जिसकी यह वास्तव में हकदार है.
कृष्ण कला एक ऐतिहासिक कला है और इसे कला के रूप में ही देखा जाना चाहिए. इसका संरक्षण हमारी सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है. सरकार का थोड़ा सहयोग भी, इस कला के लिए अमृत साबित होगा और यह ताजमहल की तरह आगरा की पहचान विश्व स्तर पर नए सिरे से गढ़ने के लिए तैयार हो जाएगी.