नई दिल्ली, 20 नवम्बर : गर्भावस्था के दौरान महिला का ब्लड शुगर या डायबिटीज हाई होना एक बड़ी मेडिकल समस्या बनकर उभर रहा है। इससे ना सिर्फ गर्भवती महिला बल्कि उसके नवजात शिशु की सेहत पर भी बुरा असर पड़ रहा है। यह जानकारी लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की निदेशक प्रोफेसर डॉ पिकी सक्सेना की स्टडी ‘गर्भावधि मधुमेह’ से सामने आई है।
डॉ सक्सेना ने बताया कि करीब दो वर्ष में संपन्न स्टडी के दौरान हमने 8 से 10 सप्ताह के गर्भ वाली 200 महिलाओं के स्वास्थ्य की नियमित निगरानी की। इस दौरान सभी गर्भवती महिलाओं के विभिन्न परीक्षणों के साथ ब्लड शुगर (14-16 सप्ताह, 24-28 सप्ताह और 32-34 सप्ताह के बीच) जांच की गई, जिसमें खाना खाने के दो घंटे बाद वाला टेस्ट (पोस्ट प्रेन्डियल ब्लड ग्लूकोज) भी शामिल था। टेस्ट से सामने आया कि जिन महिलाओं का ब्लड शुगर लेवल 110 से ज्यादा था, उनमें से 95% महिलाओं को आगे चलकर ना सिर्फ जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस (जीडीएम) हो गई। बल्कि हाई बीपी, यूटीआई और वजाइनल इंफेक्शन के मामलों के साथ प्रसव पीड़ा अवधि में बढ़ोतरी, गर्भ गिरना, समय से पहले प्रसव होना, प्रसव के दौरान ज्यादा रक्तस्राव (पीपीएच) होना और सी -सेक्शन सर्जरी के मामले भी बढ़ गए।
उन्होंने बताया कि हाई ब्लड शुगर की समस्या से पीड़ित मां के गर्भ से जन्मे बच्चों में डायबिटीज, हृदय रोग, किडनी रोग, मैक्रोसोमिया और मोटापे के साथ मेटाबोलिक कॉम्प्लीकेशन्स व सांस संबंधी अनेक दिक्कतें पाई जाती हैं। वहीं, कन्या शिशुओं में एक अतिरिक्त समस्या ‘पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस)’ विकसित होने के लक्षण पाए जाते हैं। इस वजह से उसे भविष्य में अनियमित माहवारी, फर्टिलिटी में कमी और चेहरे पर अनचाहे बाल उग आने जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
डॉ सक्सेना ने कहा कि गर्भावधि मधुमेह की स्टडी से जिन स्वास्थ्य समस्याओं का पूर्वानुमान लगाया गया है उनका समाधान भी संभव है। इससे बचाव के लिए गर्भवती महिलाओं को अपने लाइफ स्टाइल में बदलाव लाने और उचित डाइट (कार्बोहाइड्रेट व चिकनाई की मात्रा कम और प्रोटीन की मात्रा ज्यादा) लेने के साथ अपने ब्लड प्रेशर, मोटापे और ब्लड शुगर को नियंत्रित करना होगा। साथ ही ब्लड शुगर जांच भी नियमित करानी होगी। इससे जहां मां और शिशु को डायबिटीज के दुष्प्रभावों से बचाया जा सकेगा। वहीं, उनकी सेहत की भी रक्षा हो सकेगी।
क्या होता है मैक्रोसोमिया
इसका मतलब है, शिशु का आकार सामान्य से ज्यादा बड़ा होना। ऐसे बच्चों को आगे चलकर ब्लड शुगर और मोटापे के साथ मेटाबोलिक सिंड्रोम हो जाता है। इस सिंड्रोम के कारण हृदय रोग, स्ट्रोक और मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है। आम तौर पर, 4,000 ग्राम (8 पाउंड, 13 औंस) या उससे ज्यादा वजन वाले शिशुओं को मैक्रोसोमिया माना जाता है। दुनिया भर में, करीब 9% शिशुओं का वजन 4,000 ग्राम से ज्यादा होता है।