
New Delhi/Mumbai (मिताली चंदोला, एडिटर, स्पेशल प्रोजेक्ट्स) : मुंबई की एक विशेष अदालत ने पूर्व महाराष्ट्र मंत्री नवाब मलिक और उनके परिवार से जुड़े रियल एस्टेट फर्म मलिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की डिस्चार्ज याचिका खारिज करते हुए साफ कहा है कि उनके खिलाफ आरोप तय करने के लिए “पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं।” यह फैसला न सिर्फ कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है, बल्कि उन ताक़तवर नेटवर्क्स पर भी रोशनी डालता है जहां राजनीति, रियल एस्टेट और अंडरवर्ल्ड एक-दूसरे से टकराते हैं।
2022 में दर्ज ईडी केस में आरोप है कि नवाब मलिक और उनके परिवार द्वारा संचालित सॉलिडस इन्वेस्टमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड और मलिक इन्फ्रास्ट्रक्चर ने दाऊद इब्राहिम गिरोह से जुड़े लोगों—हसीना पारकर, सलीम पटेल और सरदार खान—के माध्यम से कब्जाए गए कुर्ला स्थित एक विवादित संपत्ति की मनी लॉन्ड्रिंग में भूमिका निभाई। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इस संपत्ति को पहले ही पीएमएलए के तहत कुर्क किया जा चुका है और इन कंपनियों के माध्यम से प्राप्त किराया भी “प्रोसीड्स ऑफ क्राइम” की श्रेणी में आता है।
मलिक इन्फ्रास्ट्रक्चर ने यह तर्क दिया था कि कंपनी 2010–11 के लीज़ एग्रीमेंट से पहले अस्तित्व में ही नहीं थी, इसलिए उससे पहले की कोई भी गतिविधि उसके खिलाफ लागू नहीं होती। लेकिन विशेष न्यायाधीश एस. आर. नवंदर ने इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि उपलब्ध सामग्री अभियोजन के लिए पर्याप्त है।
अदालत ने सभी आरोपियों—जिसमें नवाब मलिक भी शामिल हैं—को 18 नवंबर 2025 को अनिवार्य रूप से उपस्थित रहने का आदेश दिया है, जब पीएमएलए की धारा 3 और 70 के तहत आरोप तय किए जाएंगे। फरवरी 2022 में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए गए मलिक इस समय जमानत पर बाहर हैं।
इस पूरे मामले का सबसे असहज प्रश्न यही है:
जब अपराध की जड़ें सत्ता के गलियारों तक फैल जाएँ, तब सच का पीछा कौन करेगा—और किस कीमत पर?





