नई दिल्ली, 30 अक्तूबर : दिवाली के बाद दिल्ली की वायु गुणवत्ता बेहद खराब श्रेणी में पहुंचने के कारण आंखों से संबंधित समस्याओं में 60% तक इजाफा हो गया है। इससे जहां लोगों की आंखों में एलर्जी, सूखापन, जलन और अत्यधिक पानी आने की समस्याएं बढ़ गई हैं। वहीं फेफड़ों को भी नुकसान पहुंच रहा है।
एम्स के आरपी सेंटर में नेत्र रोग के प्रोफेसर डॉ. राजेश सिन्हा ने कहा, पिछले कुछ दिनों में, आंखों में सूखापन, जलन और पानी आने की समस्या से पीड़ित मरीजों की संख्या में लगभग 50% से 60% की वृद्धि हुई है। उनमें से कई शिकायत करते हैं कि उनकी आंखें भारी या किरकिरी जैसी महसूस होती हैं जो प्रदूषण से प्रेरित नेत्र संबंधी एलर्जी के लक्षण हैं। खराब वायु गुणवत्ता के कारण स्वस्थ व्यक्ति भी जलन का अनुभव कर रहे हैं।
हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (पीएम 2.5 और पीएम 10) आंखों की सतह पर जम सकते हैं, टीयर फिल्म को नुकसान पहुंचा सकते हैं और सूजन पैदा कर सकते हैं। यदि निवारक उपायों की अनदेखी की जाती है, तो लगातार जलन अंततः संक्रमण या दृष्टि के अस्थायी धुंधलेपन का कारण बन सकती है। जो लोग पहले से ही एलर्जी या ड्राई आईज की बीमारी से ग्रस्त हैं, उनके लिए जोखिम बहुत अधिक है।
वहीं डॉ हरबंस लाल ने कहा, दिवाली की रात से ही दिल्ली की वायु गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में बनी हुई है, जिससे नागरिक हांफ रहे हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ऐसी जहरीली हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से आंखों की गंभीर बीमारियां हो सकती हैं, खासकर उन लोगों में जो लंबे समय तक बाहर रहते हैं, जैसे ट्रैफिक पुलिस, डिलीवरी एजेंट और स्कूली बच्चे।
डॉ सिन्हा ने कहा, पर्यावरण के सीधे संपर्क में आने के कारण और प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर सबसे पहले प्रभावित होने वाले अंगों में आंखें भी शामिल हैं। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन कण जैसे प्रदूषक आंखों की नमी के साथ प्रतिक्रिया करते हैं, जिससे रासायनिक जलन और सूजन होती है। राजेश सिन्हा ने कहा, इस मौसम में अपनी आंखों की सुरक्षा करना उतना ही जरूरी है जितना कि अपने फेफड़ों की सुरक्षा करना।
सिन्हा ने कहा, चश्मा पहनना और लुब्रिकेंट ड्रॉप्स का इस्तेमाल करना, जैसे छोटे-छोटे कदम भी बड़ा बदलाव ला सकते हैं। बच्चों की आंखें ज्यादा संवेदनशील होती हैं जो घर से बाहर ज्यादा समय बिताने के चलते एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस और संक्रमण होने का खतरा बढ़ा देती हैं। दूसरी ओर, बुज़ुर्गों में अक्सर आंसू कम बनते हैं, जिससे उनकी आंखें ज्यादा शुष्क हो जाती हैं और जलन होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए, प्रदूषण के चरम समय में घर के अंदर ही रहना चाहिए ताकि आंखों में अच्छी चिकनाई बनी रहे।
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