
New Delhi : दिल्ली की ऐतिहासिक और रूहानी विरासत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया दरगाह इस साल धनतेरस के पावन अवसर पर एक बार फिर आध्यात्मिकता, इंसानियत और राष्ट्रीय एकता के केंद्र के रूप में जगमगा उठी। यह शाम दीयों की रोशनी, रंगीन चिराग़ों की जगमगाहट और सूफ़ियाना कव्वालियों की मधुर ध्वनि से सराबोर थी, जिसने माहौल को पूरी तरह से भक्तिमय और रूहानी बना दिया। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (MRM) द्वारा आयोजित वार्षिक ‘जश्ने-चिराग़’ कार्यक्रम, हमेशा की तरह, भारत की बहुलतावादी संस्कृति, मज़बूत राष्ट्रीय भावना और धर्मों के बीच सौहार्द का अद्भुत प्रतीक बना।
भारतीयता का मूल मंत्र: पूजा पद्धतियाँ एक, संदेश अनेक
इस आयोजन ने यह सिद्ध किया कि भारत में त्यौहार और पूजा पद्धतियाँ, चाहे वे किसी भी धर्म से संबंधित हों, अंततः एक ही संदेश देती हैं—प्रेम, शांति और भाईचारा। दरगाह की पवित्रता में, देश के विभिन्न हिस्सों से आए अक़ीदतमंदों ने एक साथ प्रार्थना की, जिससे यह संदेश स्पष्ट हो गया कि भारतीयता की पहचान किसी एक धर्म में नहीं, बल्कि सभी धर्मों के सम्मान और सह-अस्तित्व में निहित है।
इंद्रेश कुमार का राष्ट्रीय आह्वान: नशामुक्त, दंगामुक्त और पर्यावरण युक्त भारत
मंच के संरक्षक और मार्गदर्शक श्री इंद्रेश कुमार ने दरगाह पर चादर चढ़ाकर पूरे देश और दुनिया की अमन-शांति और खुशहाली के लिए दुआ की। इस अवसर पर उन्होंने देश को एक सशक्त और निर्णायक संदेश दिया, जिसमें उन्होंने समाज के सामने खड़ी तीन सबसे बड़ी चुनौतियों को रेखांकित किया: “आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है कि हम भारत को नशामुक्त, दंगामुक्त और पर्यावरण युक्त राष्ट्र बनाएं, और इसके साथ ही, तालीम (शिक्षा), तरक्की (प्रगति) और तहज़ीब (सभ्यता) को अपनाएं।”
वैश्विक हिंसा के बीच भारत का शांति मॉडल
इंद्रेश कुमार ने वैश्विक परिदृश्य पर चल रही हिंसा, युद्ध और वैर-भाव की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की; इज़रायल-फ़िलिस्तीन, यूक्रेन-रूस, पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान, सूडान और यमन जैसे क्षेत्रों का उदाहरण देते हुए, उन्होंने बताया कि कैसे दुनिया के अनेक हिस्से युद्ध की आग में झुलस रहे हैं और कैसे लोग नफ़रत के चलते एक-दूसरे के दुश्मन बन गए हैं। इसके विपरीत, उन्होंने भारत की महान परंपरा की ओर ध्यान आकर्षित किया, जो हमेशा से शांति, करुणा, अहिंसा और प्रेम का संदेश देती आई है।
‘अहिंसा ही भारतीयता की आत्मा’: राष्ट्रनिर्माण का व्यापक एजेंडा
उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “यह बुद्ध, विवेकानंद, राम, गुरुनानक और गांधी की धरती है। भारत ने कभी हिंसा नहीं, बल्कि अहिंसा और सह-अस्तित्व को अपनाया। यही भारतीयता की आत्मा है और यही विश्व को मार्ग दिखा सकती है।” उनका यह आह्वान केवल धार्मिक सद्भाव तक सीमित नहीं था, बल्कि यह राष्ट्रनिर्माण और सामाजिक सुधार का एक व्यापक एजेंडा था, जिसे मुस्लिम समाज को आगे बढ़कर अपनाना चाहिए।
सूफ़ी सरगम और दुआओं से सराबोर दरगाह का माहौल
दरगाह का माहौल सूफ़ियाना सरगम और भक्ति की भावना से सराबोर हो गया; कव्वालियों की मधुर लय, चिराग़ों की रौशनी और अक़ीदतमंदों की सामूहिक दुआओं से पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊँचाई पर पहुँच गया। देशभर से आए श्रद्धालुओं ने एक स्वर में सामूहिक रूप से दुआ मांगी— “ए खुदा, इस मुल्क में अमन कायम रख।” दरगाह के अध्यक्ष अफ़सर निज़ामी और सलमी निज़ामी ने इस अवसर पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह सदियों से मोहब्बत, इंसानियत और एकता का प्रतीक रही है, और यहाँ से दिया गया कोई भी संदेश हमेशा समाज में सकारात्मक बदलाव लाता है।
सूफ़ी परंपरा और राष्ट्रवाद: एकता की मज़बूत राह
उन्होंने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के इस पवित्र स्थान से कार्यक्रम करने की पहल की सराहना करते हुए कहा कि “यह आयोजन यह साबित करता है कि सूफ़ी परंपरा और राष्ट्रवाद एक ही दिशा में मज़बूती से बढ़ सकते हैं। यही भारत की असली पहचान है — जहां धर्म, संस्कृति और राष्ट्रीयता एक दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं।” इस भावना को आगे बढ़ाते हुए, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (NCMEI) के कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. शाहिद अख्तर ने भारत की एकता, शिक्षा और सामाजिक जागरूकता पर विशेष बल दिया।
डॉ. शाहिद अख्तर: तालीम, तहज़ीब और तरक़्क़ी ही असली जवाब
उन्होंने कहा कि “आज की दुनिया को सबसे ज़्यादा ज़रूरत है तालीम, तहज़ीब और तरक़्क़ी की। जब समाज शिक्षित होगा, संवाद करेगा और एक-दूसरे की इज़्ज़त करेगा, तो न तो जंग रहेगी, न नफ़रत। भारत का मुस्लिम समाज इन मूल्यों को अपनाकर पूरे देश को एक नई दिशा दे सकता है।” उन्होंने यह भी कहा कि भारत की असली ताकत उसकी विविधता में है, और विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के बीच मौजूद एकता ही भारतीय सभ्यता की सबसे बड़ी पूंजी है, जिसे मुस्लिम राष्ट्रीय मंच जैसे संगठन सामाजिक और धार्मिक संवाद के माध्यम से मजबूत कर रहे हैं।
डॉ. शालिनी अली: दिलों की रोशनी से भारत को सशक्त बनाने का संदेश
महिला प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय संयोजक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. शालिनी अली ने अपने वक्तव्य में धनतेरस के मूल अर्थ को समझाया और कहा कि यह दिन हमें याद दिलाता है कि असली रोशनी केवल दीयों से नहीं, बल्कि दिलों में भी जलनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि “आज मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने दरगाह से जो संदेश दिया है, वह धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक और नैतिक भी है — नशा छोड़ो, नफ़रत छोड़ो, और मिलकर भारत को आगे बढ़ाओ।” उन्होंने भारत के सशक्तिकरण में महिला शक्ति की केंद्रीय भूमिका पर ज़ोर दिया और कहा कि अगर महिलाएं समाज के हर क्षेत्र में नेतृत्व करेंगी तो भारत और भी सशक्त बनेगा, और इस दिशा में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का महिला विंग पूरे देश में शिक्षा, पर्यावरण और समाज सेवा के क्षेत्र में अद्भुत काम कर रहा है।
शाहिद सईद का दो टूक संदेश: भारत मोहब्बत से चलता है
वरिष्ठ पत्रकार और मंच के राष्ट्रीय संयोजक शाहिद सईद ने मीडिया और समाज की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला और कहा कि ऐसे समय में जब मीडिया और राजनीति का एक हिस्सा नफ़रत फैलाने में व्यस्त हों, तब ऐसे कार्यक्रम समाज को सही दिशा देने का काम करते हैं। उन्होंने पुरजोर तरीके से कहा कि “दरगाह से उठने वाला यह अमन का संदेश मीडिया और सत्ता — दोनों को याद दिलाता है कि भारत नफ़रत से नहीं, मोहब्बत से चलता है। जो लोग भारत को तोड़ना चाहते हैं, वे उसकी रूह से अनजान हैं। भारत हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है और रहेगा।” उन्होंने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच जैसे संगठनों की भूमिका को आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण बताया, जो संवाद, सद्भाव और राष्ट्रनिर्माण का एक मज़बूत पुल बन रहे हैं।
विभिन्न तबकों की भागीदारी: राष्ट्रीय एकता के लिए सामूहिक दुआ
इस महत्वपूर्ण आयोजन में मंच के राष्ट्रीय संयोजक मोहम्मद अफ़ज़ाल, अधिवक्ता और समाजसेवी ताहिर रहीम, हाफ़िज़ साबरीन, इमरान चौधरी, डॉ. सफीना, शाकिर अली, ठाकुर राजा रईस, कर्नल ताहिर, गौहर आसिफ सहित समाज के विभिन्न तबकों से अनेक गणमान्य हस्तियां मौजूद रहीं। इन सभी उपस्थित लोगों ने मिलकर देश की शांति और एकता के लिए सामूहिक रूप से दुआ मांगी और भारत की महान सूफ़ी परंपरा को सम्मान दिया। लोगों ने देर शाम तक कव्वालियों का आनंद लिया, और चिराग़ों की जगमगाहट में एकता, मोहब्बत और भाईचारे की रोशनी दूर-दूर तक फैलती रही।
भारत: एक विचार, एक सभ्यता, विश्व शांति का मार्गदर्शक
अपने समापन संबोधन में इंद्रेश कुमार ने एक बार फिर दोहराया कि भारत केवल एक देश नहीं, एक विचार और एक सभ्यता है, जो पूरे विश्व को अहिंसा, प्रेम और सह-अस्तित्व का रास्ता दिखाता है। उन्होंने कहा कि “भारत का संविधान हर नागरिक को बराबरी, स्वतंत्रता और सम्मान देता है। अगर पूरी दुनिया भारत के इस मॉडल को अपनाए, तो युद्ध और नफ़रत की जगह संवाद और विकास की राह खुलेगी।”
राष्ट्रनिर्माण का सिद्धांत: भारत पहले, इंसानियत सर्वोपरि
इंद्रेश कुमार ने यह भी स्पष्ट किया कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का मूल उद्देश्य केवल धार्मिक संवाद नहीं, बल्कि राष्ट्रीय पुनर्निर्माण है, जिसके तहत सभी नागरिक मिलकर “भारत पहले, इंसानियत सर्वोपरि” के सिद्धांत को अपनाएं। कार्यक्रम के समापन पर दरगाह में सामूहिक दुआ हुई, जहां लोगों ने हाथ उठाकर देश की सलामती, तरक़्क़ी और एकता की अंतिम दुआ मांगी। धनतेरस की इस पवित्र शाम को मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने यह साबित कर दिया कि भारतीय मुसलमान की पहचान शिक्षा, तहज़ीब और तरक़्क़ी से है, न कि किसी भी प्रकार की कट्टरता से। दरगाह से उठी यह शांति और सद्भाव की आवाज़ अब पूरे देश में गूंज रही है: “भारत अमन का पैग़ाम देने वाला देश है, और रहेगा।”