
West Bengal News : (अमर देव पासवान) 11 जुलाई से सावन का महीना शुरू होने वाला है, ऐसे मे देश के तमाम शिवालय शिव भक्तों के आगमन के लिये पूरी तरह तैयार हो चुके हैं, यहाँ तक की शिवालयों मे आने वाले तमाम शिव भक्तों को किसी तरह की कोई समस्या ना हो उसके लिए कई तरह की वेवस्थाएं की गई हैं, जिसमे शिव भक्तों सुरक्षा वेवस्था का भी पूरा ख्याल रखा गया है। अगर हम बात करें पश्चिम बंगाल आसनसोल के बराकर स्थित सिद्धेश्वरी मंदिर की तो यह मंदिर वह दामोदर नदी के किनारे निर्मित है। जिस मंदिर के बारे मे कोलकाता के पुरातत्व विभाग की अगर माने तो यह मंदिर सातवीं से लेकर नौवीं शताब्दी मे पाल युग के समय बनाया गया था। जिसमे पाँच मंदिरों का जिक्र किया गया है। ऐसे मे चार मंदिर तो दिखाई देते हैं पर पांचवा मंदिर कहीं दिखाई नही देता। ऐसे में शिव भक्तों की पांचवे मंदिर को लेकर अलग-अलग धारनाए हैं।
कुछ भक्त कहते हैं की पांचवा मंदिर अदृश्य है तो कुछ कहते हैं पांचवा मंदिर बनने से पहले मुर्गे ने डांक दे दी थी। जिस कारन मंदिर का निर्माण नही हो सका और उस मंदिर की जगह पर श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा याचना करते ही हैं साथ में उनको जलाभिषेक भी करते हैं। सिद्धेश्वरी मंदिर के मुख्य द्वार पर बनी दो मंदिरों मे स्थापित एक साथ तीन-तीन शिव लिंग स्थापित है। जिन मंदिरों को कोलकाता पुरातत्व विभाग ने भगवान गणेश व छिन्नमस्तिका महिसासुर मर्दनी मंदिर बताया है। जिन दोनों मंदिरों मे बाकायदा भगवान गणेश और छिन्नमस्तिका महिसासुर मर्दनी की मूर्ति भी बैठाई गई है। इसके अलावा सिद्धेश्वरी मंदिर परिसर मे मौजूद बाकि के अन्य और दो मंदिरों की हम बात करें तो उन दोनों मंदिरों में से एक मंदिर मे भगवान शिव के एक शिवलिंग तो दूसरे मे एक साथ पाँच शिवलिंग स्थापित किए गए हैं। जिस मंदिर मे एक साथ पाँच शिवलिंग स्थापित हैं। उस मंदिर को कोलकाता पुरातत्व विभाग ने माँ गौरी का मंदिर बताया है। जिस मंदिर मे भगवान शिव के एक साथ स्थापित पाँच शिव लिंगों के साथ-साथ माँ गौरी भी विराजमान है। जिसे भक्त पंचानन मंदिर के नाम से भी जानते हैं।
वहीं मंदिर के मुख्य द्वार के ठीक सामने मौजूद एक और अन्य मंदिर मे भगवान शिव की एक शिवलिंग स्थापित है। जिसे भगवान शिव का प्रतिक माना जाता है। मंदिर के पुजारी की अगर माने तो उनके पूर्वजों को मंदिर के बारे मे ज्यादा जानकारी थी उन्होंने मंदिर के बारे मे अगर कुछ सुना है तो यह सुना है की पांचवा मंदिर अदृश्य है। सिद्धेश्वरी मंदिर परिसर मे बने चार मंदिर अपने आप बने हैं, मंदिर का निर्माण किसी ने नही किया। पांचवा मंदिर जब बनना शुरू हुआ था उसी समय मुर्गे ने डांक दे दी थी, जिस कारन मंदिर का निर्माण नही हो सका और मंदिर बनने से पहले ही अधूरा रह गया। जिस कारन लोग मंदिर वाले स्थान पर पूजा करते हैं और उस स्थान को अदृश्य मंदिर कहा जाता है।
सिद्धेश्वरी मंदिर परिसर मे मौजूद चारों मंदिरों मे स्थापित शिव लिंगों के कई अर्थ निकलकर सामने आते हैं, जिनमे से पहला अर्थ यह है की चारों मंदिरों मे कुल 12 शिवलिंग स्थापित हैं। ऐसे मे सिद्धेश्वरी मंदिर मे पूजा करने आने वाले भक्त 12 ज्योतिलिंग के तौर पर देखते हैं। जिसका दर्शन करने से ही भक्तों की सारी मनोकामनाएं और कष्ट दूर हो जाते हैं, साथ ही अगर हम दूसरे अर्थ की बात करें तो मुख्य द्वार पर मौजूद दो मंदिरों मे स्थापित तीन-तीन शिवलिंग है, जिनको भक्त त्रिदेव या फिर त्रिपुरारी के रूप मे पूजते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, ऐसे मे प्रत्येक शिवलिंग एक देवता का प्रतिनिधित्व करता है। जिसमे ब्रह्मा (सृजन), विष्णु (पालन) और महेश (संहार) ऐसे मे अगर हम तीसरे अर्थ की अगर बात करें तो एक मंदिर मे एक साथ पाँच शिवलिंग स्थापित है।
हालांकि पुरातत्व विभाग उस मंदिर को माँ गौरी का मंदिर बताते हैं। मगर भक्त मंदिर मे माँ गौरी के साथ विराजमान पांचो शिवलिंग को पंचानन महराज के रूप मे भगवान शिव को पूजते हैं। जिनको भक्त सद्योजात, वामदेव, अघोर, तत्पुरुष और ईशान के नाम से भी जानते हैं। भगवान शिव को पंचानन इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनके पांच मुख हैं, जो उनके पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) और पांच कार्यों (सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह) का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसके अलावा चौथे मंदिर मे एक ही शिव लिंग स्थापित है, जो खुद भगवान शिव का प्रतीक है, जो निराकार, अनंत और ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है, शिवलिंग, ‘शिव’ और ‘लिंग’ शब्दों से मिलकर बना है। ‘शिव’ का अर्थ है ‘शुभ’ या ‘कल्याण’ और ‘लिंग’ का अर्थ है ‘प्रतीक’ या ‘चिन्ह, शिवलिंग भगवान शिव के निराकार रूप का प्रतीक है, जो कि ब्रह्मांड की शुरुआत और अंत से परे है. ऐसे मे बराकर स्थित सिद्धेश्वरी मंदिर परिसर मे एक साथ मौजूद भगवान शिव के यह तमाम रूप अपने भक्तों का कल्याण करने के लिये साक्षात विराजमान हैं।