उत्तर प्रदेश, नोएडा: नोएडा में डॉक्टरों ने दुर्लभ सर्जरी कर किडनी ट्रांसप्लांट किया
उत्तर प्रदेश, नोएडा: -डोनर की किडनी से हटाया ट्यूमर फिर किया गया ट्रांसप्लांट, छह दिन में मिल गई छुट्टी

अजीत कुमार
उत्तर प्रदेश, नोएडा। नोएडा के सेक्टर-128 स्थित मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल नोएडा में डॉक्टरों की टीम ने एक दुर्लभ और जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इस प्रक्रिया में एक एबीओ-इन्कंपेटिबल किडनी ट्रांसप्लांट किया गया। जिसमें डोनर की किडनी से एक ट्यूमर भी हटाया गया। इस तरह का ऑपरेशन ट्रांसप्लांट सर्जरी में बहुत ही कम मामलों में किया गया है।
60 साल के मरीज जिनका ब्लड ग्रुप बी पाजीटिव था, दो सालों से डायलिसिस पर थे। उन्हें जल्द किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता थी। उनके लिए उपयुक्त डोनर उनकी 58 साल की पत्नी ही थीं। जिनका ब्लड ग्रुप ए पाजीटिव था, जो इन्कंपेटिबल था।
अन्य कोई विकल्प न होने के कारण ट्रांसप्लांट टीम ने इस चुनौती पूर्ण प्रक्रिया को करने का निर्णय लिया। सर्जरी से पहले की जांच के दौरान, डोनर की बाई किडनी में लगभग 4.2 सेंटीमीटर का बे नाइन ट्यूमर पाया गया, जो एक गोल्फ बॉल के आकार के बराबर था, जिससे सर्जरी और अधिक जटिल हो गई।
पहले ट्यूमर निकालने के लिए बेंच सर्जरी
यूरोलॉजी, रोबोटिक्स व किडनी ट्रांसप्लांट विभाग के सीनियर डायरेक्टर डॉ. अमित के देवरा ने बताया कि “अधिकांश मामलों में इस तरह के ट्यूमर को किडनी निकालने के बाद ‘बेंच सर्जरी’ तकनीक से हटाया जाता है। लेकिन इस सर्जरी में ट्यूमर हटाना और एबीओ-इन्कंपेटिबल ट्रांसप्लांट एक साथ करना बहुत अधिक को-ऑर्डिनेशन और प्रिसिशन की मांग करता है।”
उन्होंने आगे बताया, “एबीओ-इन्कंपेटिबल ट्रांसप्लांट में मरीज के रक्त में मौजूद एंटीबॉडी को कम करने के लिए प्लाज्माफेरेसिस की आवश्यकता होती है, ताकि ऑर्गन रीजैक्शन का खतरा घटाया जा सके। हालांकि, इससे प्लेटलेट और क्लॉटिंग फैक्टर भी कम हो जाते हैं, जिससे ब्लीडिंग का खतरा बढ़ता है। मरीज को सर्जरी से पहले दो बार प्लाज्माफेरेसिस दी गई। पूरे ऑपरेशन के दौरान क्लॉटिंग प्रोफाइल की सावधानीपूर्वक निगरानी की गई।”
ट्यूमर हटाया फिर ट्रांसप्लांट
सर्जरी के दौरान डोनर की किडनी सफलतापूर्वक निकाली गई। ट्यूमर को ‘बेंच’ पर हटाया गया और फिर वह किडनी, मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट की गई। यह सब एक प्रिसाइज़ और वेल को ऑर्डिनेटेड सर्जिकल टाइमलाइन के अंतर्गत हुआ। ट्रांसप्लांट सफल रहा और नई किडनी ने तुरंत काम करना शुरू कर दिया। मरीज को छठे दिन अस्पताल से छुट्टी मिल गई और अब डोनर व मरीज दोनों स्वस्थ हैं।नेफ्रोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट विभाग के डायरेक्टर डॉ. विजय सिन्हा ने बताया, “एबीओ-इन्कंपेटिबल ट्रांसप्लांट में इम्यूनोलोजिकल रिस्क अधिक होता है और इसके लिए विशेष तैयारी, डीसेंसिटाइजेशन और क्लोज फॉलो अप की आवश्यकता होती है। इस मामले को विशेष बनाता है डोनर किडनी में ट्यूमर की मौजूदगी, जो इसे और अधिक जटिल बनाती है।
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