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उत्तर प्रदेश, नोएडा: क्रोनिक एसिड रिफ्लेक्स का सफल इलाज

उत्तर प्रदेश, नोएडा: क्रोनिक एसिड रिफ्लेक्स का सफल इलाज

अजीत कुमार

उत्तर प्रदेश, नोएडा। फोर्टिस हॉस्पिटल नोएडा के डॉक्टरों ने प्रदेश में एंडोस्कोपिक फंडोप्लिकेशन से पहली बार सफल उपचार किया। यह पेट के वाल्व की मरम्मत करने की मिनीमॅली इन्वेसिव प्रक्रिया है। इसे पिछले 2 साल से गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लेक्स रोग से पीड़ित 45 साल की एक महिला के उपचार के लिए इस्तेमाल किया गया। गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स रोग एक सामान्य कंडीशन है जिसमें पेट का एसिड लगातार पीछे की ओर लौटता (रिफ्लक्स) है। भोजन नली में पहुंचकर जलन और इंफ्लेमेशन का कारण बनता है। अस्पताल का दावा है कि प्रदेश का ये पहला मामला है।

डॉ. सुश्रुत सिंह, एडिशनल डायरेक्टर गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने एडवांस टेक्नोलॉजी की सहायता से इस प्रक्रिया को केवल 45 मिनट में पूरा किया। महिला को एक ही दिन में स्थिर अवस्था में अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई।मरीज हाइटस हर्निया के कारण गंभीर किस्म के एसिड रिफ्लक्स से पीड़ित थी। हाइटस हर्निया उस स्थिति में होता है जब पेट का एक हिस्सा डायफ्राम के बाहर छाती तक चला जाता है। लाइफस्टाइल में बदलाव और अन्य कई तौर-तरीकों को अपनाने के बावजूद मरीज के लक्षण लगातार गंभीर बने हुए थे।इस प्रकार की रिफ्रेक्टरी गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स का आमतौर से लैपरोस्कोपिक सर्जरी में इलाज किया जाता है। जिसमें सर्जन मामूली चीरा लगाकर वाल्व की मरम्मत कर उसे कसता है। लेकिन इस मामले में मरीज की जांच और उनके परिजनों के साथ मामले की पूरी चर्चा करने के बाद डॉक्टरों ने इस नई प्रक्रिया एंडोस्कोपिक फंडोप्लिकेशन से इलाज का विकल्प चुना।इस गैर-सर्जिकल प्रक्रिया में मुंह के रास्ते छोटे आकार की क्लिपों को मरीज के शरीर में डाला गया और इनसे पेट के वाल्व को कसा गया। मरीज की तुरंत रिकवरी के बाद उसी दिन अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई, जबकि लैपरोस्कोपिक सर्जिकल रिपेयर के मामलों में 2 से 3 दिनों तक अस्पताल में ही रूकना पड़ता है।

बड़े आकार का नहीं लगता चीरा
डॉ. सुश्रुत सिंह ने बताया कि “मरीज के पेट और इसोफेगस के बीच मौजूद वाल्व को कसने के लिए मिनीमॅली इन्वेसिव सर्जरी का सहारा लिया गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि पेट का एसिड लौट कर भोजन नली में न जाए।इस मामले में पारंपरिक सर्जरी की तरह बड़े आकार का चीरा लगाने की जरूरत नहीं होती। इसकी बजाय मुंह के रास्ते छोटे आकार के टूल्स को शरीर के अंदर भेजकर रिपेअर की जाती है। इस प्रक्रिया में न कोई चीरा लगाया जाता है और न ही त्वचा पर कोई घाव होता है

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